पटना : बिहार में सरकार और शिक्षक संघ आमने-सामने आ गये हैं. मामला रिजल्ट खराब होने पर उन्हें जबरन रिटायर करने का है. जानकारी के मुताबिक शिक्षक संघ इस बात को लेकर अब आर-पार के मूड में है. शिक्षक संघों ने एक स्वर में सरकार के फैसले का विरोध करते हुए कहा है कि सरकार शिक्षकों में भय का माहौल बना रही है. सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि इंटर की परीक्षा में शून्य रिजल्ट वाले विद्यालयों के शिक्षकों की अनिवार्य रिटायरमेंट की कार्रवाई की जद में फिलहाल कोई नियोजित शिक्षक नहीं आयेंगे. पहले से पदस्थापित पुराने वेतनमान वाले शिक्षकों को हटाया जायेगा. नियमानुसार शून्य रिजल्ट वाले विद्यालयों के पुराने वेतनमान वाले शिक्षकों को पहले रिटायर किया जायेगा. नियोजित शिक्षकों के लिए प्रदेश में लागू शिक्षक नियोजन नियमावली में अनिवार्य रिटायरमेंट का प्रावधान नहीं है, हालांकि यह बिहार सर्विस कोड के तहत पुराने शिक्षकों पर लागू है.
जानकारों की मानें तो नियोजित शिक्षकों को रिटायर करने से पहले शिक्षा विभाग को कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी और नियमावली में संशोधन करना होगा. गुरुवार को हुई शिक्षा विभाग की समीक्षा बैठक में सीएम नीतीश कुमार ने मैट्रिक व इंटरमीडिएट परीक्षा 2017 में जिन विद्यालयों के सभी बच्चे फेल हैं, वहां के हेडमास्टर, संबंधित शिक्षक, डीपीओ माध्यमिक व डीईओ पर कार्रवाई का निर्देश दिया था. पिछले माह मुख्यमंत्री के निर्देश पर माध्यमिक -उच्च माध्यमिक शिक्षा की बेहतरी के लिए शिक्षा विभाग द्वारा तैयार एक्शन प्लान में भी ऐसे शिक्षकों को तीन माह में अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का निर्णय लिया गया था.
वहीं दूसरी ओर शिक्षक संघ का आरोप है कि राज्य सरकार शिक्षकों में भय का माहौल पैदा करना चाहती है. संघों ने अपने एक साथ दिये गये बयान में कहा है कि सबसे पहले विद्यालय सेवा बोर्ड जैसी संस्था का गठन कर विषय के हिसाब से शिक्षकों की नियुक्ति जरूरी है. उसके बाद ही कुछ हो सकता है. संघों के मुताबिक, जबरन रिटायरमेंट की बात ठीक नहीं है. बिहार में शिक्षकों की विषय वार काफी कमी है. शिक्षकों की नियुक्ति पहले जरूरी है. सरकार उसके पहले ही हटाने की बात कर रही है, जो उचित नहीं है. संघों ने कहा कि शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए तुरंत कदम उठाना चाहिए.
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