# Triple Talaq : इस्लाम में ”तलाक, हलाला और खुला” की क्या है हकीकत, जानें
पटना : यूं तो तलाक कोई अच्छी चीज नहीं है और सभी लोग इसको नापसंद करते हैं. इस्लाम में भी यह एक बुरी बात समझी जाती है, लेकिन इसका मतलब यह हरगिज नहीं कि तलाक का हक ही इंसानों से छीन लिया जाये. पति-पत्नी में अगर किसी तरह भी निबाह नहीं हो पा रहा है, […]
पटना : यूं तो तलाक कोई अच्छी चीज नहीं है और सभी लोग इसको नापसंद करते हैं. इस्लाम में भी यह एक बुरी बात समझी जाती है, लेकिन इसका मतलब यह हरगिज नहीं कि तलाक का हक ही इंसानों से छीन लिया जाये. पति-पत्नी में अगर किसी तरह भी निबाह नहीं हो पा रहा है, तो अपनी जिंदगी जहन्नुम बनाने से बहतर है कि वो अलग हो कर अपनी जिंदगी का सफर अपनी मर्जी से पूरा करें, जो कि इनसान होने के नाते उनका हक है, इसीलिए दुनिया भर के कानून में तलाक की गुंजाइश मौजूद है.
तलाक
पैगंबरों के दीन (धर्म) में भी तलाक की गुंजाइश हमेशा से रही
दीन-ए-इब्राहीम की रिवायात के मुताबिक, अरब जाहिलियत के दौर में भी तलाक से अनजान नहीं थे, उनका इतिहास बताता है कि तलाक का कानून उनके यहां भी लगभग वही था, जो अब इस्लाम में है. लेकिन, कुछ बिदअतें उन्होंने इसमें भी दाखिल कर दी थी.
किसी जोड़े में तलाक की नौबत आने से पहले हर किसी की यह कोशिश होनी चाहिए कि जो रिश्ते की डोर एक बार बंध गयी है, उसे मुमकिन हद तक टूटने से बचाया जाये.
जब किसी पति-पत्नी का झगड़ा बढ़ता दिखायी दे, तो अल्लाह ने कुरान में उनके करीबी रिश्तेदारों और उनका भला चाहनेवालों को यह हिदायत दी है कि वो आगे बढ़ें और मामले को सुधारने की कोशिश करें. इसका तरीका कुरान ने यह बतलाया है कि- ‘एक फैसला करनेवाला शौहर के खानदान में से मुकर्रर करें और एक फैसला करनेवाला बीवी के खानदान में से चुनें और वो दोनों ‘जज’ मिल कर उनमें सुलह कराने की कोशिश करें. इससे उम्मीद है कि जिस झगड़े को पति-पत्नी नहीं सुलझा सकें, वह खानदान के बुजुर्ग और दूसरे हमदर्द लोगों के बीच में आने से सुलझ जाये’.
कुरान ने इसे कुछ यूं बयान किया है- ‘और अगर तुम्हें शौहर-बीवी में फूट पड़ जाने का अंदेशा हो, तो एक हकम (जज) मर्द के लोगों में से और एक औरत के लोगों में से मुकर्रर कर दो, अगर शौहर-बीवी दोनों सुलह चाहेंगे, तो अल्लाह उनके बीच सुलह करा देगा. बेशक अल्लाह सब कुछ जाननेवाला और सब की खबर रखनेवाला है’. (सूरेह निसा-35).
इसके बावजूद अगर शौहर-बीवी दोनों या दोनों में से किसी एक ने तलाक का फैसला कर ही लिया है, तो शौहर-बीवी के खास दिनों (Menstruation) के आने का इंतजार करे, और खास दिनों के गुजर जाने के बाद जब बीवी पाक हो जाये, तो बिना हमबिस्तर हुए कम-से-कम दो जुम्मेदार लोगों को गवाह बना कर उनके सामने बीवी को एक तलाक दे, यानी शौहर-बीवी से सिर्फ इतना कहे कि ‘मैं तुम्हे तलाक देता हूं’.
तलाक हर हाल में एक ही दी जायेगी दो या तीन या सौ नहीं. जो लोग जिहालत की हदें पार करते हुए दो तीन या हजार तलाक बोल देते हैं, यह इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ अमल है और बहुत बड़ा गुनाह है. अल्लाह के रसूल (सल्लाहू अलैहि वसल्लम) के फरमान के मुताबिक, जो ऐसा बोलता है, वह इस्लामी शरीयत और कुरान का मजाक उड़ा रहा होता है.
इस एक तलाक के बाद बीवी तीन महीने यानी तीन-तीन हैज (जिन्हें इद्दत कहा जाता है और अगर वह गर्भवती है, तो बच्चा होने तक) तक शौहर के ही घर में रहेगी और उसका खर्च भी शौहर ही के जिम्मे रहेगा. लेकिन, उनके बिस्तर अलग रहेंगे. कुरान ने सूरेह तलाक में हुक्म फरमाया है कि इद्दत पूरी होने से पहले ना तो बीवी को ससुराल से निकाला जाये और ना ही वह खुद निकले. इसकी वजह कुरान ने यह बतलायी है कि इससे उम्मीद है कि इद्दत के दौरान शौहर-बीवी में सुलह हो जाये और वे तलाक का फैसला वापस लेने को तैयार हो जाएं.
अक्ल की रोशनी से अगर इस हुक्म पर गौर किया जाये, तो मालूम होगा कि इसमें बड़ी अच्छी हिकमत है, हर मआशरे (समाज) में बीच में आज भड़कानेवाले लोग मौजूद होते ही हैं, अगर बीवी तलाक मिलते ही अपनी मां के घर चली जाये, तो ऐसे लोगों को दोनों तरफ कान भरने का मौका मिल जायेगा. इसलिए यह जरूरी है कि बीवी इद्दत का वक्त शौहर ही के घर गुजारे.
फिर अगर शौहर-बीवी में इद्दत के दौरान सुलह हो जाये, तो फिर से वे दोनों बिना कुछ किये शौहर-बीवी की हैसियत से रह सकते हैं. इसके लिए उन्हें सिर्फ इतना करना होगा कि जिन गवाहों के सामने तलाक दी थी, उनको खबर कर दें कि हमने अपना फैसला बदल लिया है. कानून में इसे ही ‘रुजू’ करना कहते हैं और यह जिंदगी में दो बार किया जा सकता है. इससे ज्यादा नहीं. (सूरेह बक्राह-229)
शौहर रुजू ना करे, तो इद्दत के पूरा होने पर शौहर-बीवी का रिश्ता खत्म हो जायेगा. लिहाजा कुरआन ने यह हिदायत फरमायी है कि इद्दत अगर पूरी होने वाली है, तो शौहर को यह फैसला कर लेना चाहिए कि उसे बीवी को रोकना है या रुखसत करना है. दोनों ही सूरतों में अल्लाह का हुक्म है कि मामला भले तरीके से किया जाये, सूरेह बक्राह में हिदायत फरमायी है कि अगर बीवी को रोकने का फैसला किया है, तो यह रोकना बीवी को परेशान करने के लिए हरगिज नहीं होना चाहिए, बल्कि सिर्फ भलाई के लिए ही रोका जाये.
अल्लाह कुरआन में फरमाता है- ‘और जब तुम औरतों को तलाक दो और वो अपनी इद्दत के खात्मे पर पहुंच जाये, तो या तो उन्हें भले तरीके से रोक लो या भले तरीके से रुखसत कर दो, और उन्हें नुकसान पहुंचाने के इरादे से ना रोको कि उन पर जुल्म करो. याद रखो कि जो कोई ऐसा करेगा, वह दर हकीकत अपने ही ऊपर जुल्म ढायेगा. अल्लाह की आयतों को मजाक ना बनाओ और अपने ऊपर अल्लाह की नेमतों को याद रखो और उस कानून और हिकमत को याद रखो, जो अल्लाह ने उतारी है, जिसकी वो तुम्हें नसीहत करता है. अल्लाह से डरते रहो और ध्यान रहे के अल्लाह हर चीज़ से वाकिफ है’. – (सूरेह बक्राह-231)
अगर उन्होंने इद्दत के दौरान रुजू नहीं किया और इद्दत का वक्त खत्म हो गया, तो अब उनका रिश्ता खत्म हो जायेगा, अब उन्हें जुदा होना है. इस मौके पर कुरान ने कम-से-कम दो जगह (सूरेह बक्राह आयत 229 और सूरेह निसा आयत 20 में) इस बात पर बहुत जोर दिया है कि मर्द ने जो कुछ बीवी को पहले गहने, कीमती सामान, रुपये या कोई जायदाद तोहफे के तौर पर दे रखी थी, उसका वापस लेना शौहर के लिए बिल्कुल जायज नहीं है. वह सब माल जो बीवी को तलाक से पहले दिया था, वह अब भी बीवी का ही रहेगा और वह उस माल को अपने साथ लेकर ही घर से जायेगी. शौहर के लिए वह माल वापस मांगना या लेना या बीवी पर माल वापस करने के लिए किसी तरह का दबाव बनाना बिल्कुल जायज नहीं है.
(नोट- अगर बीवी ने खुद तलाक मांगी थी, जबकि शौहर उसके सारे हक सही तरीके से अदा कर रहा था या बीवी खुली बदकारी पर उतर आयी थी, जिसके बाद उसको बीवी बनाये रखना मुमकिन नहीं रहा था, तो महर के अलावा उसको दिये हुए माल में से कुछ को वापस मांगना या लेना शौहर के लिए जायज है.)
अब इसके बाद बीवी आजाद है, वह चाहे जहां जाए और जिससे चाहे शादी करे. अब पहले शौहर का उस पर कोई हक बाकी नहीं रहा. इसके बाद तलाक देनेवाला मर्द और औरत जब कभी जिंदगी में दोबारा शादी करना चाहें, तो वह कर सकते हैं. इसके लिए उन्हें आम निकाह की तरह ही फिर से निकाह करना होगा और शौहर को महर देने होंगे और बीवी को महर लेने होंगे.
अब फर्ज करें कि दूसरी बार निकाह करने के बाद कुछ समय के बाद उनमे फिर से झगड़ा हो जाये और उनमें फिर से तलाक हो जाये, तो फिर से वही पूरी प्रक्रिया दोहरानी होगी.
अब फर्ज करें कि दूसरी बार भी तलाक के बाद वे दोनों आपस में शादी करना चाहें, तो शरीयत में तीसरी बार भी उन्हें निकाह करने की इजाजत है. लेकिन, अब अगर उनको तलाक हुई, तो यह तीसरी तलाक होगी, जिस के बाद ना तो रुजू कर सकते हैं और ना ही आपस में निकाह किया जा सकता है.
हलाला
अब चौथी बार उनकी आपस में निकाह करने की कोई गुंजाइश नहीं. लेकिन, सिर्फ ऐसे कि अपनी आजाद मर्जी से वह औरत किसी दूसरे मर्द से शादी करे और इत्तिफाक से उनका भी निभाना हो सके और वह दूसरा शौहर भी उसे तलाक दे दे या मर जाये, तो ही वह औरत पहले मर्द से निकाह कर सकती है. इसी को कानून में ‘हलाला’ कहते हैं.
लेकिन, याद रहे यह इत्तिफाक से हो तो जायज है. जान-बूझ कर या योजना बना कर किसी और मर्द से शादी करना और फिर उससे सिर्फ इसलिए तलाक लेना, ताकि पहले शौहर से निकाह जायज हो सके, यह साजिश सरासर नाजायज है. अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ऐसी साजिश करनेवालों पर लानत फरमायी है.
खुला
अगर सिर्फ बीवी तलाक चाहे, तो उसे शौहर से तलाक मांगनी होगी. अगर शौहर नेक इंसान होगा, तो जाहिर है वह बीवी को समझाने की कोशिश करेगा और फिर उसे एक तलाक दे देगा. लेकिन, अगर शौहर मांगने के बावजूद भी तलाक नहीं देता, तो बीवी के लिए इस्लाम में यह आसानी रखी गयी है कि वह शहर काजी (जज) के पास जाये और उससे शौहर से तलाक दिलवाने के लिए कहे. इस्लाम ने काजी को यह हक दे रखा है कि वह उनका रिश्ता खत्म करने का ऐलान कर दे, जिससे उनकी तलाक हो जायेगी. कानून में इसे ‘खुला’ कहा जाता है.
यही तलाक का सही तरीका है] लेकिन अफसोस की बात है कि हमारे यहां इस तरीके की खिलाफ वर्जी भी होती है. कुछ लोग बिना सोचे-समझे इस्लाम के खिलाफ तरीके से तलाक देते हैं, जिससे खुद भी परेशानी उठाते हैं और इस्लाम की भी बदनामी होती है.
(उम्मत-ए-नबी डॉट कॉम से साभार)