सृजन घोटाला : कौन हैं केपी रमैया, जिनकी चिट्ठी के बाद संस्था के खाते में आने लगे पैसे?
पटना : बिहार के सृजन घोटाले की चर्चा इन दिनों राज्य और राज्य से बाहर भी है. अब सीबीआइ ने भी इस मामले की जांच हाथ में लेने को मंजूरी दे दी है.राबड़ी-तेजस्वी के नेतृत्व वाला विपक्षसत्तापक्ष पर हमलावर है. सवाल उठता है कि आखिर इस घोटाले का सृजन कब और कहां से शुरू हुआ […]
पटना : बिहार के सृजन घोटाले की चर्चा इन दिनों राज्य और राज्य से बाहर भी है. अब सीबीआइ ने भी इस मामले की जांच हाथ में लेने को मंजूरी दे दी है.राबड़ी-तेजस्वी के नेतृत्व वाला विपक्षसत्तापक्ष पर हमलावर है. सवाल उठता है कि आखिर इस घोटाले का सृजन कब और कहां से शुरू हुआ है. इस घोटाले को लेकर बार-बार एक आइएएस केपी रमैया का जिक्र किया जा रहा है. मीडिया के हाथ आये पत्र के हवाले से कहा जा रहा है कि भागलपुर में डीएम के रूप में रमैया ने ही18 दिसंबर 2003 को पत्र लिखा कर कहा था कि सृजन संस्थाका बैंक में खाता खोलकरउसेप्रोत्साहित किया जा सकता है. इसके बाद साल 2004 सेबीडीओउसकेखाते में पैसे देने लगे. यह इस तरह कायह पहला आदेश था. ऐसे में चर्चित आइएएस अफसर केपी रमैया की व्यक्तित्ववजीवन के सफर के बारे में जानना जरूरी है. हालांकि खबर यह भी है कि 20 साल चले पूरे घोटाले के कालखंड में 13 डीएम भागलपुर में पदस्थापित रहे. डीएम के अलावा दूसरे संबंधित पदाधिकारियों का भी डाटा बैंक तैयार कर आर्थिक अपराध इकाई व एसआइटी को भेजा जा रहा है, ताकि इस केस की जांच के लिए आवश्यकता अनुरूप इनसे पूछताछ की जा सके. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कह चुके हैं कि घोटाले का दोषी पाताल में होगा तब भी उसे ढूंढ कर कार्रवाई करेंगे.
बहरहाल बात कथित पहले पत्र को लेकर चर्चा में केपी रमैया की. रमैया का पूरा नाम कर्रा प्रसु रमैया है. पांच नवंबर 1954 को जन्मे रमैया मूल रूप से आंध्रप्रदेश के नेल्लौर जिले के रहने वाले हैं और वहां के जिला परिषद स्कूल से शुरुआती शिक्षा उन्होंने हासिल की. बाद मेें उन्होंने नेल्लौर के वीआर कॉलेज से और बाद में तिरुपति के वेंकटेश्वर यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में पीजी की डिग्री हासिल की. उन्होंने बीएड की डिग्री भी हासिल की और लॉ की पढ़ाई भी की. 1986 में वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए चुने गये और उन्हें बिहार कैडर मिला.
केपी रमैया 1989 में भभुआ के एसडीएम बने, फिर बाद में पटना सहितबारी-बारीसे दूसरे जिलों के डीएम बने. इसी क्रम में वे भागलपुर में भी पोस्टेड हुए. बाद में फिर पटना व तिरहुतप्रमंडल के कमिश्नर के रूप में काम किया. राज्य सरकार के एससी-एसटी विभाग के वे प्रधान सचिव भी रहे. जब नीतीश कुमार ने अपने शासन काल में महादलित आयोग का गठन किया तो केपी रमैया को उसका सचिव बनाया गया. यह आयोग दलितों के कल्याण के लिए नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षी योजना को कार्यरूप देने के लिए बनाया गया था.
बहरहाल, रमैया को और दूर तक का सफर करना था और उनके अंदर राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी थी. इसी को पूरा करने के लिए उन्होंने आइएएस की नौकरी से बाद में वीआरएस ले ली और मार्च 2014 के आरंभ में वे राज्य के सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गये. वे दलित समुदाय से आते हैं. ऐसे में जदयू ने लोकसभा चुनाव में उन्हें तब लोकसभा अध्यक्ष की पद पर रहीं कांग्रेस की बड़ी नेता मीरा कुमार के खिलाफ सासारामसुरक्षित सीट से मैदान में उतारा. रमैया चुनाव में यहां बुरी तरह फेल हुए और उन्हें एक लाख से भी कम वोट आया. यहां से भाजपा के छेदी पासवान जीत गये और मीरा कुमार अपनी सीट गंवा बैठीं. हालांकि दोनों का प्रदर्शन अच्छा रहा और रमैया उनके सामने कहीं नहीं टिके. उन्हें मात्र 93, 310 वोट मिले.
रमैया द्वारा तब चुनाव के लिए भरे नामांकन पत्र के साथ दाखिलहलफनामे में उनके पास की संपत्तियों व नकदी के ब्याैरेकेसाथ उनपर दर्ज मामलों काभी ब्यौरा था. उसहलफनामे के अनुसार,उनकीनकदीव चल संपत्तितो 71 लाख404 रुपये 15 पैसे की थी. वहीं, अचल संपत्ति 1.74 करोड़ की थी. हलफनामे में उन पर कई मामले दर्ज होने का ब्यौरा भी था. आइपीसी की धारा 323, 354, 385, 454 और 504 के तहत उनके खिलाफ मामला दर्ज होने का ब्यौरा संलग्न था. धारा 354 महिला को अपमानित करने के लिए बल प्रयोग से संबंधित है.