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बिहार : अब राज्य में दवा दुकानों की छापेमारी पर करानी होगी वीडियोग्राफी

पटना : स्वास्थ्य विभाग ने नया आदेश जारी कर राज्य में दवा दुकानों की छापेमारी के समय वीडियोग्राफी कराना अनिवार्य कर दिया है. अभी तक औषधि निरीक्षक बिना वीडियोग्राफी कराये किसी दुकान से दवाओं का सैंपल उठाकर जांच के लिए ड्रग लैबोरेट्री भेज देते थे. समस्या यह है कि न तो स्वास्थ्य विभाग के पास […]

पटना : स्वास्थ्य विभाग ने नया आदेश जारी कर राज्य में दवा दुकानों की छापेमारी के समय वीडियोग्राफी कराना अनिवार्य कर दिया है. अभी तक औषधि निरीक्षक बिना वीडियोग्राफी कराये किसी दुकान से दवाओं का सैंपल उठाकर जांच के लिए ड्रग लैबोरेट्री भेज देते थे. समस्या यह है कि न तो स्वास्थ्य विभाग के पास और नहीं सिविल सर्जनों के पास वीडियोग्राफर हैं. पूरे प्रदेश में 40 हजार लाइसेंस प्राप्त दवा दुकानें हैं.
इनकी नियमित अंतराल के बाद औषधि निरीक्षकों द्वारा जांच की जाती है. वीडियोग्राफर नहीं रहने के कारण दवा दुकानों की छापेमारी अब समस्या बन गयी है. स्वास्थ्य विभाग द्वारा वीडियोग्राफरों की व्यवस्था किये बगैर नया आदेश जारी किया गया है. इसी बीच आदेश निकाला दिया गया कि बिना वीडियोग्राफी कराये किसी भी दवा दुकान में औषधि निरीक्षकों द्वारा जांच नहीं किया जायेगा.
इसे सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया गया है. राज्य में कुल 122 औषधि निरीक्षक हैं. विभाग का निर्देश है कि एक औषधि निरीक्षक औसतन प्रति माह पांच दवाओं का सैंपल लेकर राज्य औषधि प्रयोगशाला (ड्रग लेबोरेटरी) में जांच के लिए भेजेगा. वीडियोग्राफरों के बिना 122 औषधि निरीक्षकों द्वारा पिछले एक सप्ताह से किसी भी संस्थान से दवाओं का सैंपल उठाने की हिम्मत नहीं हो रही है.
पहले स्वास्थ्य विभाग द्वारा इन वीडियोग्राफरों के लिए टेंडर जारी करना होगा. या तो राज्य स्तर पर या जिला स्तर पर पहले टेंडर जारी होगा. उसके बाद न्यूनतम दर वाले वीडियोग्राफरों को सूचीबद्ध करना होगा. अभी तक इसकी प्रक्रिया ही शुरू नहीं हुई है. बहुत तेजी में काम होगा तो हर जिला में टेंडर पूरा करने में एक माह से अधिक समय गुजर जायेगी. रही बात वीडियोग्राफर की तो इसके होने से औषधि निरीक्षकों को उनके ऊपर ही निर्भर हो जाने पड़ेगा.
औषधि निरीक्षकों को वीडियोग्राफरों के अनुसार छापेमारी करनी होगी या उनको एक दिन पहले बताना होगा कि कब छापेमारी की जानी है जब वह उपलब्ध रहे. इसमें गोपनीयता भंग होने की पूरी संभावना है. रही बात छापेमारी के दौरान वीडियोग्राफी कराने की तो यह बात तो ड्रग इंस्पेक्टरों पर ही निर्भर है कि वह क्या वीडियोग्राफी कराते हैं. इसके लिए वीडियोग्राफरों को शुरू से अंत तक हर मिनट और सेकेंड की वीडियोग्राफी होगी तब ही पता चलेगा कि छापेमारी में क्या हुई.
अन्यथा ड्रग इंस्पेक्टर अगर अपनी मर्जी से वीडियोग्राफी करायेंगे तो सरकार का यह आदेश भी बेमानी साबित होगा.
ड्रग लेबोरेटरी का नहीं मिलता सपोर्ट
औषधि निरीक्षकों के हाथ पहले से ही बंधे हैं. दवाओं के सैंपल लेने के बाद लेबोरेटरी से सपोर्ट नहीं मिल रहा है. जितनी दवाओं का सैंपल औषधि प्रयोगशाला भेजा जाता है उसमें से 75 प्रतिशत की जांच ही नहीं होती. नतीजा है कि औषधि निरीक्षक भी पर्याप्त संख्या में दवाओं का सैंपल नहीं उठा पाते हैं. इससे बाजार में घटिया, निम्नस्तरीय, मिस ब्रांडेड और बिना बिल की दवाएं बेची जा रही है. इस पर अंकुश लगाने के लिए कोई सिस्टम ही खड़ा नहीं किया जाता. बिहार में ड्रग लैबोट्री में माइक्रोबायोलाजिकल दवाओं के जांच की कोई व्यवस्था ही नहीं है.

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