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मदद मांग कर की पूरी पढ़ाई, बने बिहार ASP के सुरक्षागार्ड, अब करते हैं दुसरों की मदद

विकास कुमार भभुआ : अपने देश में करोड़ों लोग गरीब हैं. पर, बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो गरीबी से सबक लेकर गरीबों की मदद के लिए आजीवन काम करते हैं.भागलपुर जिले के नाथनगर के भीमकीता निवासी व फिलहाल कैमूर में तैनात पुलिस के जवान मनीष आनंद को जब गरीबी से दो चार होना पड़ा, […]

विकास कुमार
भभुआ : अपने देश में करोड़ों लोग गरीब हैं. पर, बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो गरीबी से सबक लेकर गरीबों की मदद के लिए आजीवन काम करते हैं.भागलपुर जिले के नाथनगर के भीमकीता निवासी व फिलहाल कैमूर में तैनात पुलिस के जवान मनीष आनंद को जब गरीबी से दो चार होना पड़ा, तो उन्होंने होश संभालते ही असहाय लोगों को मदद पहुंचाने का ठान लिया. वह पिछले 10 साल से इस काम में लगे हैं. मनीष आनंद फिलहाल एएसपी अभियान राजीव रंजन के सुरक्षागार्ड हैं.
गौरतलब है कि मनीष के पिता सुबोध यादव भागलपुर में कपड़े का कारोबार करते थे. 2003-04 में उनकी तबीयत काफी खराब हुई. इलाज में बहुत सारा पैसा लग गया. मनीष के पिता सुबोध यादव घर में इकलौते कमानेवाले थे.
उनके बीमार होने के बाद मनीष के घर की आर्थिक स्थित काफी चरमरा गयी. मनीष को पढ़ाई के लिए भी दूसरों से मदद मांगनी पड़ी. दूसरों की मदद से मनीष जैसे-तैसे मैट्रिक व इंटर तक की पढ़ाई की. 2013 में उनका बिहार पुलिस में सिपाही के पद पर बहाली हुआ और कैमूर जिले में तैनात कर दिया गया. स्थिति तब और सुधर गयी, जब चार दिन के अंतर पर बड़े भाई का भी बैंक में चयन हो गया. इसके बाद मनीष की माली हालत ठीक हुई.
2003-04 में पिता की बीमारी के बाद आयी दिक्कतों ने उन्हें अच्छा सबक दिया और गरीब व असहाय लोगों की मदद करने का निश्चय किया.
पिछले पांच वर्षों से सिपाही की नौकरी करते हुए गरीबों को पहुंचा रहे मदद
मदद करनेवालों से रुपये नहीं, लेते हैं सिर्फ सामान : भभुआ में डीपीएस, डीएवी, मदर शकुंतला के बच्चों ने गरीब व असहाय बच्चों की मदद के लिए कपड़े से लेकर किताब तक मनीष आनंद को दिये, ताकि वह उनलोगों की मदद कर सके.
मनीष ने स्वेच्छा चाइल्ड एजुकेशन पुअर हेल्थ चैरिटी इसका नाम दिया है. हालांकि, यह कोई रजिस्टर्ड संस्था नहीं है. लेकिन, मनीष ने यह निश्चय किया है कि जो लोग मदद करना चाहते हैं, वे कपड़े, किताब, पेंसिल दे सकते हैं. लेकिन, मदद के रूप में उसने नकद पैसा नहीं लेने का निश्चय किया है, उनका कहना है कि जो लोग मदद करना चाहते हैं, सीधे सामान खरीद कर ही दे दें.
संपन्न घर के बच्चों की पुरानी किताबें गरीबों तक पहुंचायीं
सिपाही के पद पर रहते हुए कम तनख्वाह मन में अधिक से अधिक गरीब असहाय लोगों की मदद की इच्छा में सबसे बड़ा बाधक बन रहा था.
मनीष ने गरीबों की मदद के लिए एक नया रास्ता तैयार किया. संपन्न व वैसे लोग जो गरीबों की सहायता करना चाहते हैं, उन संपन्न लोगों के बच्चों की पुरानी किताबों को लेकर गरीब असहाय बच्चों के बीच में वितरित किया. लोगों से कॉपी व पेन मदद के रूप में लेकर गरीब बच्चों के बीच वितरित कर उनका दाखिला स्कूलों में कराया.
मनीष ने अपने जीवन में एपीजे अब्दुल कलाम, मदर टरेसा, दशरथ मांझी को आदर्श बनाया है. पिछले साल वह दशरथ मांझी के गांव गया जिले के गहलौर में जाकर 65 बच्चों के बीच किताबें, पेंसिल आदि व 15 महिलाओं के बीच साड़ी, आठ बुजुर्ग पुरुषों के बीच धोती व चादर वितरित किया. यह सारे सामान वह लोगों के घरों व उनके दरवाजे पर जाकर उनसे मदद के रूप में लेते हैं और फिर गरीबों के बीच में बांट देते हैं.
बाढ़पीड़ितों की मदद के लिए इकट्ठा कर रहे कपड़े
उत्तरी बिहार में बाढ़ से हुई भीषण तबाही में पीड़ितों को मदद पहुंचाने के लिए मनीष कपड़े इकट्ठा कर रहे हैं. भभुआ में वह घर-घर जाकर लोगों से पुराने कपड़े इकट्ठा कर रहे है. पुराने कपड़ों की धुलाई व सिलाई के लिए दर्जी व सफाईकर्मियों को भी ठीक किये हुए हैं. धुलाई होने के बाद उन्हें प्लास्टिक में पैक करा कर बाढ़पीड़ितों के बीच में बांटने की योजना बनायी है.

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