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बिहार शराबबंदी : जो हाथ परोसते थे ठर्रा, अब चखा रहे इडली-डोसा

11 महिला-पुरुषों को ट्रेनिंग के बाद मिला जॉब, पटना के गांधी मैदान में फूड पार्क के काउंटर पर ले रहे लाभ रविशंकर उपाध्याय पटना : जो हाथ कभी देसी दारू और ठर्रे परोसते थे, अब वही हाथ इडली-डोसा का स्वाद चखा रहे हैं. गांधी मैदान में अगस्त में खोले गये फूड पार्क में आपको किसी […]

11 महिला-पुरुषों को ट्रेनिंग के बाद मिला जॉब, पटना के गांधी मैदान में फूड पार्क के काउंटर पर ले रहे लाभ
रविशंकर उपाध्याय
पटना : जो हाथ कभी देसी दारू और ठर्रे परोसते थे, अब वही हाथ इडली-डोसा का स्वाद चखा रहे हैं. गांधी मैदान में अगस्त में खोले गये फूड पार्क में आपको किसी मंझे हुए होटल के बैरे की तरह वेल ड्रेस होकर साउथ इंडियन फूड खिलाने वाला यह समूह शराबबंदी के बाद आये बदलाव की सकारात्मक कहानी कह रहा है. यह कहानी बताती है कि सरकार का एक बेहतर कदम कैसे बदलाव लाता है.
श्रीकृष्ण स्मारक विकास समिति की ओर से गांधी मैदान में खोले गये तीन फूड पार्क में गेट नंबर छह पर एक काउंटर ऐसे महिला-पुरुषों का है, जो भट्ठी में शराब बनने के लिए रॉ मेटेरियल जमा करते थे, शराब का कारोबार करते थे और कुछ ऐसे भी हैं, जो शराब में डूबे रहते थे. पांच अप्रैल, 2016 को पूर्ण शराबबंदी के बाद इनके ये काम बंद हो गये. लेकिन इसके बाद इनकी जिंदगी बदल गयी.
एक संस्था ने कुल 556 लोगों को लेकर एक प्रोजेक्ट बनाया. सरकार की मदद से कुछ लोगों को हाजीपुर में स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट में साउथ इंडियन फूड बनाने की ट्रेनिंग दी गयी. इसके छह महीने के बाद ये स्ट्रीट वेंडर बन कर अपना रोजगार संचालित करने लगे, लेकिन कभी अतिक्रमण, तो कभी मौसम की मार से समस्या होने लगी.
इसी बीच गांधी मैदान और श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल का रखरखाव करने वाली श्रीकृष्ण स्मारक समिति की ओर से गांधी मैदान में टेस्ट ऑफ बिहार के नाम से फूड पार्क खोले गये. यहां समिति के पदेन अध्यक्ष पटना के कमिश्नर आनंद किशोर ने शराबबंदी से प्रभावित इस समूह को मुफ्त में जगह और सभी संसाधन उपलब्ध कराया और अब यह टीम गांधी मैदान में एक महीने से साउथ इंडियन फूड बना रही है और उससे रोज हजारों रुपये की आय भी कर रही है.
पटना के लोदीपुर, गर्दनीबाग और फुलवारीशरीफ की रहने वाली मुमताज, ममता, अनिता, संगीता और गुड़िया कहती हैं कि उनके जीवन में ऐसा बदलाव आया है कि उसकी कल्पना हमने कभी नहीं की थी. सब कुछ एक सपने के सरीखे लगता है. यहां राजधानी के सभी संभ्रांत लोग आते हैं और काफी बेहतर माहौल में हम उन्हें अपने जायके परोसते हैं. वे उस दौर को कभी नहीं याद करना चाहती हैं, जब शराब और शराबियों के इर्द-गिर्द पेट चलाने के लिए काम करना पड़ता था.
शराबबंदी के बाद शराब के बिजनेस में लगा यह समूह जिस प्रकार एक सम्मानित जिंदगी जी रहा है, वह सबके लिए प्रेरणादायक है. सभी लोगों को इससे प्रेरित होना चाहिए. एक अवसर को इन्होंने बेहतरी में बदल दिया और आज पूरा पटना इनके स्वाद की तारीफ करता नहीं अघा रहा है.
आनंद किशोर, कमिश्नर सह पदेन अध्यक्ष श्रीकृष्ण स्मारक विकास समिति, पटना

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