भगवान विश्वकर्मा की पूजा रविवार को, इस मुहूर्त में करने से होगा बहुत लाभ : डॉ. श्रीपति त्रिपाठी

पटना : कहा जाता है कि निर्माण के नियंता भगवान विश्वकर्मा होते हैं. इस दिन निर्माण कार्य से जुड़े लोगों और वाहनों के अलावा फैक्ट्री और लौह कार्य करने वाले संस्थानों द्वारा भगवान विश्वकर्मा की पूजा धूमधाम से की जाती है. विश्वकर्मा पूजा के बारे में बात करते हुए डॉ. श्रीपति त्रिपाठी कहते हैं कि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 16, 2017 12:25 PM

पटना : कहा जाता है कि निर्माण के नियंता भगवान विश्वकर्मा होते हैं. इस दिन निर्माण कार्य से जुड़े लोगों और वाहनों के अलावा फैक्ट्री और लौह कार्य करने वाले संस्थानों द्वारा भगवान विश्वकर्मा की पूजा धूमधाम से की जाती है. विश्वकर्मा पूजा के बारे में बात करते हुए डॉ. श्रीपति त्रिपाठी कहते हैं कि आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है. रविवार के दिन ही विश्वकर्मा पूजा का संयोग शुभ फलदायी है. पंचांग के मुताबिक दिन के 12 बजकर 54 मिनट तक शुभ मुहूर्त है इस दौरान आप पूजा कर सकते हैं. रविवार को लौह मशीनरी, संयंत्रों, उपकरणों व वाहन आदि की पूजा होगी. आचार्य पंडित श्रीपति त्रिपाठी कहते हैं कि भगवान विश्वकर्मा को देव शिल्पी माना गया है. शास्त्रगत मान्यताओं के आधार पर सृष्टि की संरचनात्मक वस्तुओं की रचना भगवान विश्वकर्मा ने की है. भगवान विश्वकर्मा वास्तु के भी कारक देव हैं. विश्वकर्मा जयंती में भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित कर उनकी पूजा की जायेगी.

डॉ. श्रीपति कहते हैं कि ऐसी पौराणिक मान्यता है कि प्राचीन काल की जितने भी भव्य नगर थे और राजधानी थी, उसे भगवान विश्वकर्मा ने बनायी थी. विश्वकर्मा ने ही सतयुग का स्वर्ग लोक, तेत्रा की रावण की लंका और द्वापर की द्वारिका के साथ कलियुग का हस्तिनापुर निर्मित किया था. सुदामा के भवन का तत्काल निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा के हाथों हुआ था. जिन भक्तों को धन के साथ सुख-समृद्धि और सिद्धि की आवश्यकता होती है, वह मनोयोग से भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं. एक प्रचलित प्राचीन कथा के मुताबिक सृष्टि के आरंभ में नारायण अर्थात भगवान विष्णु ने भगवान सागर में शेषनाग शय्या पर प्रकट हुए. उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे. ब्रह्मा के पुत्र ‘धर्म’ तथा धर्म के पुत्र ‘वास्तुदेव’ हुए. कहा जाता है कि धर्म की ‘वस्तु’ नामक स्त्री से उत्पन्न ‘वास्तु’ सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे. उन्हीं वास्तुदेव की ‘अंगिरसी’ नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए. पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने.

डॉ. श्रीपति त्रिपाठी ने बताया कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा से उद्योग धंधों और कल कारखानों में उत्तरोतर वृद्धि और सुख शांति की बढ़ोतरी होती है. इस दिन पूरी तरह स्वच्छता के साथ अपने कल पूर्जों और कारखानों की साफ-सफाई के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करनी चाहिए. मूर्ति के साथ और फोटो और तस्वीर लगाकर भी उस दिन अपने मशीनों को बंद कर उनकी पूजा कर सकते हैं.

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