पटना : गया से गिरफ्तार अहमदाबाद बम ब्लास्ट का मुख्य आरोपी तौसीफ खान सिर्फ सरवर खान के निजी स्कूल मुमताज पब्लिक हाइ स्कूल में गणित का पाठ ही नहीं पढ़ाता था. बल्कि, कई स्थानीय युवाओं को उसने आतंक का पाठ भी पढ़ाया था. कुछ युवाओं को उसने स्लीपर सेल के रूप में ट्रेनिंग भी दी है. यह खुलासा हाल में एनआइए, आइबी, बिहार और गुजरात एटीएस की टीम की पूछताछ में हुई है. सुरक्षा एजेंसियों ने उससे कई पहलुओं पर गहन पूछताछ की है. इस दौरान कई सनसनीखेज बातें सामने आयी हैं.
यह पता चला कि करीब आठ साल से गया में छिप कर रहने वाला तौसीफ गया में छिप कर रहने के दौरान वह बीच में एक-दो बार बांग्लादेश में संचालित हूजी (हरकत-उल-जिहाद) के आतंकी कैंप में जाकर ट्रेनिंग भी ली थी. इसमें स्लीपर सेल की ट्रेनिंग भी खासतौर से दी गयी थी. इस ट्रेनिंग के मॉड्यूल के आधार पर ही तौसीफ ने गया के स्थानीय युवाओं को गुमराह करके स्लीपर सेल की तरह ट्रेनिंग दी है.
हालांकि, अभी तक यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है कि कितनी संख्या में युवाओं को ट्रेनिंग दी गयी है. फिर भी शुरुआती जानकारी के मुताबिक, पांच-छह युवाओं को ट्रेनिंग दी है और ये युवा इससे निरंतर संपर्क में भी थे. फिलहाल इन युवाओं की तलाश चल रही है. यह भी संभावना व्यक्त की जा रही है कि सुरक्षा एजेंसियां इन संदिग्ध युवाओं से भी पूछताछ की जा सकती है. इसके अलावा पूछताछ में यह भी जानकारी सामने आयी है कि निजी स्कूल के संचालक सरवर खान ने भी इसे संरक्षण देने के साथ-साथ आसपास के इलाके में आतंकी गतिविधि से युवाओं को जोड़ने में अहम भूमिका निभायी है.
गौरतलब है कि सरवर खान सिम्मी का प्रमुख रह चुका है और वह पहले से ही इस तरह की मानसिकता का प्रचार-प्रसार भी करता रहा है. इसी कारण से उसने इतने समय तक तौसीफ को अपने यहां पनाह दे रखी थी. तौसीफ से मिली जानकारी के आधार पर कुछ अन्य लोगों से भी पूछताछ हो सकती है. फिलहाल उसकी दी तमाम जानकारी की क्रॉस चेकिंग का काम चल रहा है.
आठ साल से रह रहा था, फिर भी नहीं चला पता
तौसीफ खान आठ साल से गया के करमोनी इलाके में सरवर खान के संरक्षण में रह रहा था. फिर भी राज्य एटीएस को इसकी भनक तक नहीं लगी. यह सबसे अहम सवाल है कि आखिर इतने दिनों तक रहने के बाद भी किसी कोई जानकारी नहीं मिली. हालांकि एटीएस के अधिकारी इसका कारण बताते हैं कि वह आम व्यक्ति की तरह रह जरूर रहा था, लेकिन काफी गोपनीयता बनाये रखता था. मोबाइल का प्रयोग बहुत कम करता था. किसी अनजान व्यक्ति से मिलना-जुलना नहीं के बराबर करते था. इस तरह की ऐतिहात के कारण वह ट्रेस में नहीं आ रहा था. कुछ विभागीय सूत्र इसे इंटेलिजेंस की नाकामी भी बताते हैं. अगर वह कैफे का उपयोग नहीं करता और कैफे वाला इसकी सूचना पुलिस को नहीं देता, तो शायद पकड़ में नहीं आ पाता.