जीएसटी विशेष : व्यापारी बस इतना चाहें, आसान हों जीएसटी की राहें

पटना : जीएसटी भले ही पूरे देश में लागू हो गया है, लेकिन बहुत से व्यापारियों के लिए इसकी जटिलताएं समझ से परे हैं. जीएसटी के बारे में पूरी जानकारी नहीं होने के कारण छोटे कारोबारी विशेषकर वस्त्र व्यापारी काफी डरे हुए हैं. जिनके पास जानकारी है, वे भी जीएसटी के दायरे में नहीं आना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 25, 2017 9:00 AM
पटना : जीएसटी भले ही पूरे देश में लागू हो गया है, लेकिन बहुत से व्यापारियों के लिए इसकी जटिलताएं समझ से परे हैं. जीएसटी के बारे में पूरी जानकारी नहीं होने के कारण छोटे कारोबारी विशेषकर वस्त्र व्यापारी काफी डरे हुए हैं.
जिनके पास जानकारी है, वे भी जीएसटी के दायरे में नहीं आना चाहते. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के वस्त्र व्यापारी जीएसटी का निबंधन कराने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं. इस कारण थोक व्यापारी उन्हें माल देने से बच रहे हैं. क्रेडिट नहीं मिलने का भय उन्हें सता रहा है.
लेकिन सच्चाई यह है कि जब तक छोटे कारोबारी जीएसटी में निबंधन नहीं करायेंगे तो उन्हें क्रेडिट का लाभ नहीं मिलेगा. ये बातें रविवार को प्रभात खबर कार्यालय में जीएसटी पर वस्त्र व्यापारियों और विशेषज्ञों की परिचर्चा में उभर कर सामने आयीं
इस दौरान विशेषज्ञों ने कहा कि बाजार में काफी अनिश्चितता है. त्योहार का सीजन होने के बावजूद वस्त्र मंडी का कारोबार काफी सुस्त है. ऐसे में सरकार को जीएसटी की पेचीदगी कम करनी चाहिए और कंपोजिशन स्कीम का लाभ दो करोड़ तक के व्यवसाय पर देना चाहिए. हर माह रिटर्न के बदले त्रैमासिक या साल में एक बार रिटर्न भरने की व्यवस्था होनी चाहिए.
परिचर्चा में उभर कर आये तथ्य
सरकार को जीएसटी को और सरल करना चाहिए
रिटर्न भरने में भी बदलाव जरूरी है
हर माह के बदले त्रैमासिक रिटर्न से कारोबारियों की परेशानी कम होगी
खाता-बही को हर माह अपडेट रखना पड़ेगा
रिटर्न समय पर भरने के लिए सरकार को स्किल्ड लोगों को बहाल करना चाहिए
एचएसीएन की सीमा 1.5 करोड़ से बढ़ा कर पांच करोड़ करना चाहिए
सरकार को प्रक्रिया में बदलाव करना चाहिए ताकि कारोबारी समय सीमा के अंदर अपना रिटर्न जमा कर सकें
सर्वर सही से काम नहीं करने से समय पर रिटर्न फाइल नहीं हो पा रहा है और फाइन भी देना पड़ रहा है
खुदरा वस्त्र विक्रेताओं को स्टॉक मेंटेन करने में बहुत परेशानी हो रही है
व्यापारियों की समस्याएं
परिचर्चा में आये कारोबारियों ने बताया कि बड़ी संख्या में वस्त्र व्यापारी जीएसटी से नहीं जुड़े हैं क्योंकि कानून काफी कड़ा है. उन्हें डर है कि इसके दायरे में एक बार आ गये तो मोटा कर हर माह भरना पड़ेगा. इसके अलावा बहुत से कारोबारी खर्च बढ़ने को लेकर भी जीएसटी से दूर रहना चाहते हैं.
अधिकांश कारोबारियों ने कहा कि सरकार को टैक्स देना चाहते हैं लेकिन रिटर्न भरने की तकनीकी प्रक्रिया काफी जटिल है. ग्रामीण इलाके के कारोबारी जटिल प्रक्रिया के कारण इससे दूर ही रहना चाहते हैं. कारोबारी एकमतथे कि जीएसटी और आसान बने तथा इससे जुड़ी समस्याएं दूर हो, इसके लिए मिल कर आवाज उठानी होगी तभी सरकार जागेगी.
वस्त्र व्यवसाय में पहले किसी तरह का वैट या सेल्स टैक्स नहीं था. पिछले साल 500 रुपये प्रति मीटर से ऊपर के कपड़े और 2 हजार रुपये से ऊपर मूल्य की साड़ी के विक्रय मूल्य पर पांच फीसदी वैट लगता था. इस वैट के दायरे में कुल वस्त्र व्यवसाय के दस फीसदी व्यापारी आते थे. लेकिन अब सभी तरह के वस्त्रों पर जीएसटी लगाया जा चुका है.
विशेषज्ञों ने सुझाये रास्ते
जीएसटी काफी बढ़िया प्रणाली है. इससे अकाउंट में पारदर्शिता तथा सभी चीजें अपडेट रहती हैं. फिलहाल कारोबारियों को इसके रिटर्न प्रोसेस से थोड़ी परेशानी महसूस हो रही है. लेकिन आने वाले दिनों में स्थिति सामान्य हो जाने पर जीएसटी अच्छी प्रणाली साबित होगी. सरकार को जीएसटी ऑनलाइन प्रणाली में थोड़ा सुधार लाना चाहिए तभी सरकार की मंशा पूरी हो पायेगी.
राजेश मखरिया
विशेषज्ञ व काराेबारियों की राय
सरकार को व्यवसायी की समस्याओं के प्रति और संवेदनशील होने की आवश्यकता है. कम से कम छह माह तक लेट रिटर्न फाइल करने पर पेनल्टी नहीं लगना चाहिए. रिटर्न समय पर भरने के लिए सरकार को स्किल्ड लोगों को बहाल करना चाहिए. एचएसीएन बहुत बड़ा मुद्दा है. कोई कारोबारी दूसरे राज्य में भी अब अपना कारोबार अासानी से शुरू कर सकता है.
सुनील सर्राफ, एडवोकेट व टैक्स विशेषज्ञ
जीएसटी के लिए अधिकांश व्यापारी तैयार नहीं हैं. वे अब भी परंपरागत तरीके से कारोबार करना चाहते हैं. सरकार को जीएसटी को और सरल करना चाहिए. साथ ही कंपोजिशन स्कीम का लाभ दो करोड़ तक के व्यवसाय पर देना चाहिए. त्रैमासिक रिटर्न से कारोबारियों की परेशानी कम होगी. जीएसटी की समस्याओं को लेकर व्यापारी वर्ग को राष्ट्रीय स्तर पर आवाज उठानी चाहिए.
राजेश कुमार खेतान, सीए व जीएसटी विशेषज्ञ
जीएसटी में रिवर्स चार्ज व एडवांस पेमेंट पर टैक्स होने की वजह से लाभ और हानि अकाउंट में कोई समायोजन नहीं कर सकता. खाता-बही को हर माह अपडेट रखना पड़ेगा. जो छोटे व्यापारी यह समझ रहे हैं कि इस जंजाल में क्यों पड़ें, तो आने वाले दिनों में उनको खामियाजा भुगतना पड़ेगा.
मशेंद्र कुमार मशी, सीए व जीएसटी विशेषज्ञ
जीएसटी लागू तो कर दिया गया, लेकिन इसके तकनीकी पहलू पर ध्यान नहीं दिया गया. छोटे व्यापारियों पर इसका उलटा प्रभाव देखा जा रहा है, वे इससे परेशान हैं. सरकार को प्रक्रिया में बदलाव करना चाहिए ताकि कारोबारी समय सीमा के अंदर अपना रिटर्न जमा कर सकें. छोटे कारोबारी अतिरिक्त खर्च के बोझ से बचने के लिए जीएसटी में निबंधन नहीं करा रहे हैं.
राज कुमार अग्रवाल
आने वाले समय में जीएसटी से व्यापार में सुविधा होगी और सरकार को भी अधिक कर मिलेगा. नयी व्यवस्था में टैक्स की चोरी संभव नहीं है. जीएसटी थोड़ा जटिल है, इसे व्यापारी पूरी तरह समझ नहीं पाये हैं. इससे उन्हें परेशानी हो रही है. सरकार को अभी छूट देनी चाहिए. सर्वर सही से काम नहीं करने से समय पर रिटर्न फाइल नहीं हो पा रहा है और फाइन भी देना पड़ रहा है.
मनोज कुमार अग्रवाल
खुदरा वस्त्र विक्रेताओं को स्टॉक मेंटेन करने में बहुत परेशानी हो रही है. इस व्यवसाय में प्राय: ऐसा होता है कि कोई कपड़ा तुरंत बिकता है तथा कई डिजाइन पुराना होने पर सालों भर पड़ा रह जाता है. रिटर्न का पैटर्न महीने में तीन न होकर त्रैमासिक होना चाहिए. कारोबारियों को एकजुट होकर सरकार पर दबाव डालना चाहिए.
शिव कुमार

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