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बिहार : चंपारण सत्याग्रह की देन थी अहिंसा: अरविंद मोहन
पटना . महात्मा गांधी ने अहिंसा की नीति अपनाकर देश को आजाद करवाया. यह नीति उन्हें चंपारण सत्याग्रह से मिली. वहां के लोगों को निर्भय बनाया. इसी रास्ते पर चल कर 1947 में देश को आजादी मिली. ये बातें वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन ने कहीं. वे बुधवार को किशन पटनायक स्मृति व्याख्यान के अवसर पर […]
पटना . महात्मा गांधी ने अहिंसा की नीति अपनाकर देश को आजाद करवाया. यह नीति उन्हें चंपारण सत्याग्रह से मिली. वहां के लोगों को निर्भय बनाया. इसी रास्ते पर चल कर 1947 में देश को आजादी मिली.
ये बातें वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन ने कहीं. वे बुधवार को किशन पटनायक स्मृति व्याख्यान के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. इसका विषय था चंपारण सत्याग्रह को क्यों याद करें? समाजवादी नेता किशन पटनायक के बारे में उन्होंने कहा कि वे अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते थे. उन्होंने अपने विचारों से कभी समझौता नहीं किया. अरविंद मोहन ने कहा कि महात्मा गांधी के चंपारण पहुंचने से पहले स्थानीय लोगों ने एक अंग्रेज अधिकारी की पिटाई की थी.
उसके शरीर की 55-56 हड्डियां टूटी और मौत हो गयी थी. 1917 में गांधी के चंपारण पहुंचने के बाद एक भी हिंसा नहीं हुई, जबकि अंग्रेज ऐसा चाहते थे. यह गांधी जी का ही प्रभाव था कि जब कानून तोड़ने के एक मामले में कोर्ट में उनकी पेशी हुई, तो उनके पक्ष में गवाही देने के लिए 25 हजार लोग पहुंचे. वहीं, आज के आंदोलन इसलिए असफल हो जाते हैं, क्योंकि उनमें हिंसा का सहारा लिया जाने लगा है.सरकार को आसानी से उन्हें कुचलने का मौका मिल जाता है.
गांधी के तीन काम अधूरे रहे गये : उन्होंने कहा कि चंपारण आंदोलन खत्म होते ही वे देश के स्वतंत्रता संग्राम में लग गये. इस कारण उनके तीन काम अधूरे रह गये. इसमें पहला यह है कि आंदोलन का नतीजा उस समय तुरंत वैसा सामने नहीं आया जैसा वे चाहते थे. दूसरा यह है कि वे वहां एक आधुनिक गोशाला बनाना चाहते थे और तीसरा यह है कि वे ग्रामीण विश्वविद्यालय बनाना चाहते थे.
समतावादी समाज की बात कहते थे किशन पटनायक : इस दौरान वरिष्ठ पत्रकार गंगा प्रसाद ने कहा कि समाजवादी नेता किशन पटनायक ने समाज में हर स्तर पर समता की बात की. वे बाजारवाद, उपभोक्तावाद और भ्रष्टाचार के विरोधी थे. उन्होंने कहा कि लोकसभा और विधानसभा में मजबूत विपक्ष नहीं है.
उन्होंने कहा कि जो उम्मीदवार चुनाव हार जाते हैं उन्हें विधान परिषद में चुन कर ले आया जाता है. लोकतंत्र में जनता द्वारा चुन कर आने की जरूरत है. ऐसे में विधान परिषद की जरूरत नहीं है.
सिद्धांतवादी थे किशन पटनायक
कार्यक्रम में पूर्व सांसद और स्वतंत्रता सेनानी सीताराम सिंह ने कहा कि किशन पटनायक को बीजू पटनायक और लालू प्रसाद जैसे नेताओं ने विभिन्न प्रकार का ऑफर दिया, लेकिन उन्होंने सहजता से इन्कार कर दिया. उन्होंने कहा कि अपना सिद्धांत नहीं बेचेंगे. वहीं रोशनाई प्रकाशन के प्रकाशक संजय भारती ने कहा कि किशन पटनायक कॉपीराइट के विरोधी थे. वे इसे पूंजीवादियों का खेल मानते थे. उनका कहना था कि बौद्धिक संपदा किसी की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं हो सकती.
इस कार्यक्रम में किशन पटनायक की पत्नी वीणा सहित देश के कई राज्यों से आये समाजवादी चिंतक और विचारक शामिल हुए. इस दौरान दो पुस्तकों का विमोचन पूर्व सांसद व स्वतंत्रता सेनानी सीताराम सिंह ने किया. इनमें किशन पटनायक: आत्म और कथ्य व विकास, विनाश और विकल्प-सच्चिदानंद सिन्हा शामिल हैं.
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