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बिहार : दहेज प्रथा और बाल विवाह को जड़ से मिटाने का लें संकल्प : नीतीश कुमार
नीतीश कुमार मुख्यमंत्री, बिहार बाल विवाह और दहेज प्रथा सबसे बड़ी सामाजिक कुरीति है, इसे जड़ से मिटाना जरूरी है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 148वीं जयंती पर राज्य में दहेज और बाल विवाह के खिलाफ महाअभियान की शुरुआत की है. विभिन्न जिलों के स्कूली बच्चों द्वारा तैयार चित्रों की प्रदर्शनी को देखा. विवाह और दहेज […]
नीतीश कुमार
मुख्यमंत्री, बिहार
बाल विवाह और दहेज प्रथा सबसे बड़ी सामाजिक कुरीति है, इसे जड़ से मिटाना जरूरी है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 148वीं जयंती पर राज्य में दहेज और बाल विवाह के खिलाफ महाअभियान की शुरुआत की है. विभिन्न जिलों के स्कूली बच्चों द्वारा तैयार चित्रों की प्रदर्शनी को देखा.
विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ लोगों को शुरू हुए अभियान की सफलता के लिए सभागार में पांच हजार से ज्यादा महिलाओं को शपथ दिलायी गयी. दहेज प्रथा व बाल विवाह के खिलाफ मैं लघु फिल्म का साक्षी रहा. मेरा मानना है कि दहेज और बाल विवाह एक बड़ी सामाजिक कुरीति है, जिसे जड़ से मिटाना जरूरी है.
2015 के आंकड़ों पर गौर किया जाये, तो महिला अपराध में बिहार का 26वां स्थान है, पर दहेज मृत्यु के दर्ज मामलों की संख्या में हमारे प्रदेश का स्थान देश में दूसरा है. राज्य के प्रत्येक 10 में से चार लड़कियों का विवाह बालपन में ही हो जाता है, जिसके कारण 15 से 19 आयु वर्ग की 12़2 प्रतिशत किशोरियां मां बन जाती हैं या गर्भावस्था में रहती हैं.
हम लोगों ने नारी सशक्तिकरण के लिए काफी उपाय किये हैं, जिसमें पंचायती राज संस्थाओं एवं नगर निकायों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देने पर काम किया गया. हमने 2006 में पंचायती राज संस्थाओं में और 2007 में नगर निकायों में आधी आबादी के बराबर उन्हें पचास प्रतिशत आरक्षण दिया.
उसके बाद हमने प्राथमिक शिक्षकों के नियोजन में भी पचास प्रतिशत आरक्षण महिलाओं को दिया. लड़कियों में अशिक्षा के सबसे बड़े कारणों में से एक गरीबी है. अभिभावक पोशाक की कमी के कारण लड़कियों को स्कूल नहीं भेजते थे, इसके लिए हमने मिडिल स्कूल में पढ़ रही लड़कियों के लिए बालिका पोशाक योजना शुरू की.
इससे मध्य विद्यालयों में लड़कियों की संख्या बढ़ी. इसके बाद हमने नौवीं कक्षा की लड़कियों के लिए बालिका साइकिल योजना की शुरुआत की. पहले पटना में भी लड़कियों को साइकिल चलाते हुए नहीं देखा जाता था, गांव में पहले जब लड़कियां साइकिल चलाती दिख जाती थीं, तो यह कहा जाता था कि लड़की हाथ से निकल गयी. आज घर-घर से लड़कियां साइकिल चलाकर स्कूल जाती हैं.
अब लोगों की सोच बदल गयी, जिससे उनमें प्रसन्नता आयी है. जिस समय यह योजना शुरू की गयी थी, उस समय नौवीं कक्षा में लड़कियों की संख्या एक लाख 70 हजार से भी कम थी, जो आज नौ लाख से ज्यादा पहुंच गयी है.
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