सृजन घोटाला : हाइकोर्ट ने 2 आरोपितों की जमानत मामले में सीबीआइ मांगी केस डायरी, 17 को सुनवाई

पटना : सीबीआई की विशेष अदालत ने सृजन घोटाले के दो आरोपियों की जमानत याचिका पर गुरुवार को सुनवाई की. विशेष मजिस्ट्रेट गायत्री कुमारी की अदालत में बैंक अधिकारी रहे सुधांशु कुमार झा और विजय कुमार गुप्ता की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई. कोर्ट ने सीबीआई से दोनोें ही मामले में केस डायरी की मांग […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 12, 2017 6:31 PM

पटना : सीबीआई की विशेष अदालत ने सृजन घोटाले के दो आरोपियों की जमानत याचिका पर गुरुवार को सुनवाई की. विशेष मजिस्ट्रेट गायत्री कुमारी की अदालत में बैंक अधिकारी रहे सुधांशु कुमार झा और विजय कुमार गुप्ता की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई. कोर्ट ने सीबीआई से दोनोें ही मामले में केस डायरी की मांग की है. 17 अक्तूबर को इस मामले की सुनवाई होगी. केस डायरी कोर्ट को मिल जाने के बाद कोई फैसला लिया जायेगा. गौरतलब है कि सृजन मामले में 17 आरोपितों को सीबीआई ने 14 दिनों की रिमांड पर लिया है. रिमांड पर लेकर इन सबों से पूछताछ होगी.

क्या है सृजन घोटाला, जानें

सृजन संस्था का पूरा नाम ‘सृजन महिला विकास सहयोग समिति’ है. इससे एकीकृत बिहार (अब झारखंड) के रांची में लाह अनुसंधान में वरीय वैज्ञानिक की पत्नी मनोरमा देवी के आत्मनिर्भर बनने की कहानी गुंथी हुई है. इसकी शुरुआत वर्ष 1993-94 में की गयी थी. वर्ष 1991 में जब मनोरमा देवी के पति का निधन हो गया, तब छह बच्चों की मां के कंधों पर परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी आ गयी. पति की मौत के करीब ढाई-तीन वर्षों बाद वर्ष 1993-94 में मनोरमा देवी ने दो महिलाओं के साथ सृजन संस्था की शुरुआत की. वर्ष 1996 में सहकारिता विभाग में को-ऑपरेटिव सोसाइटी के रूप में संस्था को मान्यता भी मिल गयी. को-ऑपरेटिव सोसाइटी के रूप में सदस्य महिलाओं के पैसे जमा भी लिये जाते थे, जिस पर उन्हें ब्याज भी मिलता था. आपातकाल में महिलाओं को संस्था कर्ज भी देने लगी.

वर्ष 2007-2008 में सृजन को-ऑपरेटिव बैंक खुल जाने के बाद से घोटाले का खेल शुरू होता है. भागलपुर ट्रेजरी के पैसे को सृजन को-ऑपरेटिव बैंक के खाते में ट्रांसफर करने और फिर वहां से सरकारी पैसे को बाजार में लगाया जाने लगा. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सृजन में स्वयं सहायता समूह के नाम पर कई फर्जी ग्रुप बनाये गये. उनके खाते भी खोले गये और इन खातों के जरिये नेताओं और नौकरशाहों का कालाधन सफेद किया जाने लगा. सरकारी विभाग के बैंकर्स चेक या सामान्य चेक के पीछे ‘सृजन समिति’ की मुहर लगाते हुए मनोरमा देवी हस्ताक्षर कर देती थीं. इस तरह उस चेक का भुगतान सृजन के उसी बैंक में खुले खाते में हो जाते थे. जब भी कभी संबंधित विभाग को अपने खाते की विवरणी चाहिए होती थी, तो फर्जी प्रिंटर से प्रिंट करा कर विवरणी दे दी जाती थी. इस तरह विभागीय ऑडिट में भी अवैध निकासी पकड़ में नहीं आ पाती थी.

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