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बिहार : यह कैसी ”लविंग एंड केयरिंग” कि नालंदा से गोद ली हुई बेटी की अमेरिका में मौत

नालंदा से गोद ली हुई बच्ची की अमेरिका में मौत के बाद खड़े हुए सवाल राजेश कुमार सिंह पटना : बिहार के नालंदा से गोद ली गयी शेरीन (मूल नाम सरस्वती) की अमेरिका में हुई मौत ने कई सवाल खड़े किये हैं. सरकार की तमाम छानबीन के बाद ऐसे दंपति को एक बच्ची को कैसे […]

नालंदा से गोद ली हुई बच्ची की अमेरिका में मौत के बाद खड़े हुए सवाल
राजेश कुमार सिंह
पटना : बिहार के नालंदा से गोद ली गयी शेरीन (मूल नाम सरस्वती) की अमेरिका में हुई मौत ने कई सवाल खड़े किये हैं. सरकार की तमाम छानबीन के बाद ऐसे दंपति को एक बच्ची को कैसे सौंप दिया गया, जो न तो केयरिंग था और न ही लविंग.
जबकि गोद देने से पहले सबसे पहले यही देखा जाता है कि संबंधित व्यक्ति बच्चों के प्रति कितना ‘लविंग और केयरिंग’ है. खैर, यह जांचना आसान भी नहीं है. बच्चों को गोद लेने की जो प्रक्रिया है, उस पर ही सवाल उठना लाजिमी है. शेरीन सात अक्तूबर की रात उस वक्त लापता हो गयी थी, जब उसके पिता वेस्ले मैथ्यूज ने दूध पूरा नहीं पीने पर उसे सजा के तौर पर देर रात घर से निकाल दिया था.
मैथ्यूज को बच्ची को छोड़ने और उसकी जान खतरे में डालने के आरोप में आठ अक्तूबर को गिरफ्तार किया गया था. उसे बाद में 2,50,000 डॉलर की जमानत पर रिहा कर दिया गया था. अमेरिकी पुलिस को कुछ दिन पहले सड़क के नीचे सुरंग से एक बच्ची का शव मिला़ आशंका जतायी जा रही है कि यह शव लापता हुई तीन वर्षीया भारतीय बच्ची शेरीन का है. शेरीन को वेस्ले मैथ्यूज (37) ने बिहार के बिहारशरीफ स्थित नालंदा मदर टेरेसा अनाथ आश्रम से दो साल पहले गोद लिया था.
मैथ्यूज मूलत: केरल का रहने वाला है. मैथ्यूज ने कबूल किया था कि उसने शेरीन को रात करीब तीन बजे घर से बाहर निकाल दिया था और उसे एक बड़े पेड़ के पास खड़े होने को कहा था. 15 मिनट बाद वह शेरीन को देखने गया तो वह वहां नहीं मिली. उसे इस बात की जानकारी थी कि इलाके में जंगली जानवर हैं. उसने घटना की जानकारी पुलिस को पांच घंटे बाद दी थी.
बॉक्स :
पहले से ही एक बच्ची है मैथ्यूज को
नालंदा मदर टेरेसा अनाथ अश्राम की संचालिका बबीता कुमारी ने बताया कि गोद लेने वाले अमेरिकी दंपति वेस्ले मैथ्यूज को पूर्व से भी एक बच्ची थी, जिसके कारण वह उन्हें सरस्वती को गोद देने के मूड में नहीं थी. ऑथोराइज्ड फॉरनर एडॉप्शन एजेंसी के आग्रह के बाद सरस्वती को वेस्ले मैथ्यूज को गोद दिया गया था.नालंदा मदर टेरेसा अनाथ आश्रम से सरस्वती को गोद लेते अमेरिकी दपंति वेस्ले मैथ्यूज व उनकी पत्नी.
कहीं सरस्वती को भी घरेलू नौकर बनाने की तो मंशा नहीं थी
अमेरिका में श्रम महंगा है, जिससे वहां नौकरों की कीमत काफी ज्यादा होती है. मैथ्यूज दंपति ने जो हरकत की है, इससे अाशंका गहराने लगी है. कहीं गोद लेकर ये दंपति सरस्वती को नौकर तो नहीं बनाना चाहते थे. मैथ्यूज ने बच्ची के साथ जो भी व्यवहार किया, वह एक बाप नहीं कर सकता था. कहीं मथ्यूज दंपति ने सरस्वती को गोद लेकर उसे बड़ा होने पर नौकर की तरह रखने की योजना तो नहीं बनायी थी, यह सवाल अब भी अनुत्तरित है.
बिहार ने रखी मांग
गोद लेने से पहले मनौवज्ञानिक करें जांच-परख
बिहार की ‘सरस्वती’ की अमेरिका में मौत के बाद केंद्र सरकार भी हरकत में आयी. आनन-फानन सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (कारा) ने दिल्ली में बैठक बुलायी थी. 24 अक्तूबर को हुई बैठक में देश भर से एडॉप्शन से संबंधित विभागों के अधिकारी शामिल हुए. बिहार से समाज कल्याण निदेशालय के निदेशक सुनील कुमार भी शामिल हुए. बैठक में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी भी थीं.
यहां जोर-शोर से सरस्वती की मौत का मामला उठा. अधिकारियों ने मंथन किया कि आखिर कमी कहां रह जा रही है. खासतौर से बिहार की ओर से जोरदार तरीके से बात रखी गयी. सुनील कुमार ने गोद लेने की प्रक्रिया में बदलाव का सुझाव दिया. उन्होंने कहा, लविंग व केयरिंग को बच्चा देने का नियम है.
आवेदन की प्रक्रिया में कोई दोष नहीं, पर प्रारूप में थोड़ा बदलाव करके इस तरह की घटनाओं से बचा जा सकता है. उन्होंने कहा कि कोई लविंग और केयरिंग है कि नहीं, इसे किसी मशीन से नहीं जांचा जा सकता. जाहिर है यह मनौवज्ञानिक ही बता पायेंगे. इसलिए कम-से-कम इसको प्रक्रिया में शामिल करना होगा. फिर उन्होंने कहा कि सभी तरह की प्रक्रिया पूरी करने के बाद एनओसी दे दी जाती है और दंपति आकर बच्चे को ले जाते हैं. दंपति को प्रक्रिया पूरी करने से पहले मनौवज्ञानिक के सामने पेश करना चाहिए, ताकि उनकी मन:स्थिति को समझा जा सके.
यह भी जानें
एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक िवश्व में करीब 1.05 करोड़ बच्चे घरेलू मजदूर के रूप में काम कर रहे हैं.अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का कहना है कि कई ऐसी दशाओं में काम कर रहे हैं, जो खतरनाक हैं और कभी-कभी उनकी दशा गुलामों जैसे हो जाती है.
रिपोर्ट यह भी बताती है कि बच्चों को लेकर शारीरिक व यौन हिंसा की आशंका भी काफी अधिक है. ज्यादातर बाल श्रमिक 14 साल से कम उम्र के हैं और उनमें 71% से अधिक लड़कियां हैं.

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