‘आधी आबादी’ जो ग्रुप चलाकर करती हैं मदद
पटना. आधी आबादी यानी समाज की सशक्त आबादी. आज ये किसी भी कीमत पर पुरुषों से कम नहीं हैं. क्षेत्र चाहे जो भी हो, आधी आबादी ने अपनी योग्यता को जरूरत पड़ने पर साबित जरूर किया है. आमतौर पर रक्तदान करने में पुरुषों की अच्छी-खासी संख्या देखने को मिलती है लेकिन शहर में कुछ ऐसी […]
पटना. आधी आबादी यानी समाज की सशक्त आबादी. आज ये किसी भी कीमत पर पुरुषों से कम नहीं हैं. क्षेत्र चाहे जो भी हो, आधी आबादी ने अपनी योग्यता को जरूरत पड़ने पर साबित जरूर किया है. आमतौर पर रक्तदान करने में पुरुषों की अच्छी-खासी संख्या देखने को मिलती है लेकिन शहर में कुछ ऐसी भी लड़कियां हैं जो खुद तो रक्तदान करती ही हैं, दूसरों को भी इस कार्य के लिए प्रेरित करती हैं. इनका मानना है कि ब्लड डोनेट करने से न केवल आप दूसरों को नया जीवन दे सकते हैं बल्कि समय आने पर अपने लिए ब्लड की जरूरत को भी पूरा करते हैं. रक्तदान को महादान बना रहा है इनका यू ब्लड बैंक इनके बारे में बता रहे हैं सुजीत कुमार
दूसरों को किया मोटिवेट
शिखा बताती हैं, पहले तो मैं खुद इस ग्रुप से जुड़ी उसके बाद मैंने लड़कों और विशेष रूप से लड़कियों को इस ग्रुप से जुड़ने के लिए पहल किया. कुछ ने इससे जुड़ने की बात कही तो कुछ ने सहमति तक नहीं दिया लेकिन फिर भी मैं अपने काम में लगी रही. हां इतना जरूर हुआ कि धीरे-धीरे पांच लड़कियों ने मेरा साथ देने का निर्णय लिया. इसमें भी खास बात यह थी कि कुछ लड़कियों ने रक्त को लेकर दिक्कत का सामना किया था. इसलिए उन्होंने मेरा साथ दिया. फिर जब हमारे पस एक के बाद एक लड़कियां जुड़ती गयीं तो कामयाबी भी मिलती गयी़
सूचना का होता है आदान-प्रदान
शिखा बताती हैं, ग्रुप में हम सभी एक-दूसरे से जुड़ हुए हैं़ जैसे ही हमारे पास को ब्लड की जरूरत की सूचना हमारे पास आती है तो हम सभी एक-दूसरे से संपर्क करते हैं और ब्लड डोनेट के लिए पहुंच जाते हैं. वह कहती हैं, शुरू में एक-दो बार ब्लड डोनेशन के वक्त लड़कियों के मनोबल को बढ़ाने के लिए मैं खुद उनके साथ जाती थी. इसका असर भी देखने को मिला और दूसरी मेंबर्स मदद के लिए खुल कर सामने आने लगें. वह कहती हैं, उनका ब्लड ग्रुप ओ (पॉजिटीव) है वहीं आफरीन, राधा व शेफाली का ब्लड ग्रुप बी (पॉजिटीव) है, जबकि तनिष्का और खुशी का ब्लड ग्रुप ओ (पॉजिटीव) है.
बढ़ाता जा रहा है कारवां
शिखा कहती हैं, एक आह्वान और थोड़ी पहल पर जब छह लड़कियां मुझसे जुड़ सकती हैं तो और क्यों नहीं जुड़ सकती हैं? मेरी कोशिश इस कारवां को और आगे बढ़ाने का है ताकि हम सब दूसरों की जरूरत के वक्त काम आ सकें और लोगों को भी यह संदेश जाए कि आधी आबादी किसी भी कार्य में पीछे नहीं है. वह कहती हैं 22 सितंबर से अभी तक उनका ग्रुप करीब 40 बार रक्तदान कर चुका है. उनके ग्रुप की हर मेंबर्स रक्तदान करती हैं. शिखा बताती हैं कि रक्तदान करने से हीमोग्लोबिन में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आती.
अब घर वाले भी देने लगे हैं मेरा साथ
शिखा कहती हैं, ब्लड डोनेशन के लिए लड़कियों को जोड़ने का सबसे बड़ा उद्देश्य सामाजिक भ्रांतियों को दूर करने व लोगों को काम के द्वारा जवाब देने को लेकर था. शुरू में जब मैं रक्तदान करने के लिए जाती थी तो बिना किसी तरह की जांच किये मुझसे यह कहा जाता था कि हीमोग्लोबिन कम है, इसलिए आप रक्तदान नहीं कर सकती हैं. ये सुन कर मुझे अच्छा नहीं लगता था. मैं खुशकिस्मत हूं कि मेरे घर वालों ने इस कार्य के लिए मुझे सपोर्ट किया़ हालांकि मेरी ऐसी कई दोस्त हैं, जिन्होंने पहली बार घर वालों को बिना बताये अपना रक्तदान किया था. फिर मैंने उनको सपोर्ट किया और उनको यह समझाया कि रक्तदान करने के बारे में घरवालों को जरूर बताये. मैं खुद उनके घर गयी और उनके पैरेंट्स को समझाने की कोशिश की. मेरी पहल का असर हुआ और अब तो घर वाले भी मेरा साथ देने लगे हैं.