बिहार : हालात ने छुड़ाया पुरखों का डीह, फिर भी नहीं हुआ बदलाव, पी रहे दूषित पानी

प्रमोद झा, हनुमान नगर गांव, रजौली से लौटकर कहते हैं कि बाप-दादा की डीह को संभालने के लिए लोग उस जमीन को नहीं छोड़ते हैं. लेकिन, दूषित पानी ने पुरखों की डीह को छोड़ने को मजबूर किया. इसके बावजूद हालात में कोई बदलाव नहीं आया. लगभग 80 साल के अमीरक राजवंशी को पुरानी हरदिया में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 6, 2017 6:47 AM
प्रमोद झा, हनुमान नगर गांव, रजौली से लौटकर
कहते हैं कि बाप-दादा की डीह को संभालने के लिए लोग उस जमीन को नहीं छोड़ते हैं. लेकिन, दूषित पानी ने पुरखों की डीह को छोड़ने को मजबूर किया. इसके बावजूद हालात में कोई बदलाव नहीं आया.
लगभग 80 साल के अमीरक राजवंशी को पुरानी हरदिया में पुरखों की डीह को छोड़ने का आज भी मलाल है. उसने बताया कि इस उम्मीद से पुराने डीह को छोड़ कर नये जगह पर जाकर बसे कि फ्लोराइड युक्त दूषित पानी पीने से बच सके.
लेकिन, नये जगह पर भी दूषित पानी पीना मजबूरी है. अमरीक राजवंशी खुद दूषित पानी पीने से होनेवाली समस्या से ग्रसित हैं. 60 साल की उसकी पत्नी बचिया देवी भी कमर के नीचे के हिस्से में टेढ़ेपन को लेकर परेशानी में जी रही है. उसने अपनी भाषा में अपने दुख का बयां की. उसने बताया कि ‘हमनी सब बड़ी दिन से इहे पनिया (पानी) पी रहलियो हल. इहे पनिया(पानी) पीये से गोड़ा (पैर) व हाथा (हाथ) में बड़ी दर्द रह हको. हमनी के इहां के सभे बाला बुतरूअण (बाल-बच्चा) लांगड़-लूल (दिव्यांग) हो गेले हो. हमनी के कोई देखेवाला न हको बऊआ इहां.’
बसाया नया हनुमान नगर गांव
रजौली प्रखंड के पुरानी हरदिया में फ्लोराइड युक्त पानी पीने से शरीर पर होनेवाले टेढ़ेपन की समस्या से बचने के लिए कुछ लोगों ने पुराने डीह को छोड़ कर लगभग तीन किलोमीटर दूर बसने के लिए नये जगह की तलाश की. बसने वाले सभी महादलित परिवार के हैं.
रतन राजवंशी ने बताया कि 15 साल पहले पुरानी हरदिया से कुछ लोगों ने नये जगह पर फूस, ताड़ी के पत्ते आदि से छोटे-छोटे घर बनाये. इसके बाद और लोगों का आना शुरू हुआ. पास ही में श्रृंगी ऋषी पहाड़ी से सटे निचले इलाके में लोगों की संख्या बढ़ने लगी. बाद में सरकार की ओर से चार-चार डिसमिल जमीन मिली. लोगों ने गांव का नया नाम हनुमान नगर रखा. गांव में लगभग 40 घर है.
दो सौ लोगों पर एक चापाकल
पहले गांव के लोग आसपास के कुआं से पानी लाकर इस्तेमाल करते थे. बाद में एक चापाकल लगा. इसका इस्तेमाल दो सौ लोग करते हैं. 70 साल के तुलसी राजवंशी ने बताया कि चापाकल के खराब होने पर परेशानी होती है. खराबी को दूर करने के लिए कोई भी सरकारी कर्मी नहीं आता है. आपस में चंदा कर प्राइवेट मिस्त्री से ठीक कराते हैं. हमलोगों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने पर भी यह करना पड़ता है. गांव में स्कूल नहीं होने से बच्चे पढ़ाई से वंचित है.

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