सर्विस डिलिवरी : निजी ”सेवा” बिना नहीं मिलता सरकारी सेवाओं का लाभ
भ्रष्टाचार के तले दबा आम इंसान, सरकारी बाबू कड़े कानून का उड़ा रहे हैं मजाक सुमित पटना : चांदमारी रोड के अमित ने पासपोर्ट के लिए अप्लाइ किया. वेरिफिकेशन के लिए जब आवेदन थाने पहुंचा तो अनुसंधानकर्ता (आइओ) ने मुलाकात करने के बावजूद अमित को एडवर्स (अनुपस्थित) दिखा कर पासपोर्ट कार्यालय को रिपोर्ट भेज दी. […]
भ्रष्टाचार के तले दबा आम इंसान, सरकारी बाबू कड़े कानून का उड़ा रहे हैं मजाक
सुमित
पटना : चांदमारी रोड के अमित ने पासपोर्ट के लिए अप्लाइ किया. वेरिफिकेशन के लिए जब आवेदन थाने पहुंचा तो अनुसंधानकर्ता (आइओ) ने मुलाकात करने के बावजूद अमित को एडवर्स (अनुपस्थित) दिखा कर पासपोर्ट कार्यालय को रिपोर्ट भेज दी. आवेदक को जब पासपोर्ट कार्यालय से इसकी जानकारी मिली तो उसने एसएसपी सेशिकायत की, मगर सुनवाई नहीं हुई. उसे दोबारा एफिडेबिट करा कर पासपोर्ट कार्यालय में आवेदन करना पड़ा. इस बार वेरिफिकेशन कॉल आते ही उसने आइओ से संपर्क किया और तत्काल पैसे देकर किसी तरह काम कराया.
मछुआटोली की किरण देवी का प्रोबेट केस सिविल कोर्ट में चल रहा था. प्रोपर्टी वैल्यूएशन के लिए कोर्ट ने
उनका कागज समाहरणालय के विधि शाखा में भेजा. इसकी वैल्यूएशन रिपोर्ट अंचल कार्यालय के माध्यम से करा कर वापस विधि शाखा के माध्यम से हाेते हुये सिविल कोर्ट को भेजी जानी थी. मुश्किल से एक हफ्ते में होने वाला यह काम डेढ़ साल में पूरा हुआ. इस बीच आवेदिका ने कई बार कार्यलयों का चक्कर लगाया, लेिकन बगैर ‘सेवा’ उनकी कहीं पर भी सुनवाई नहीं हुई. आखिरकार जरूरत पड़ने पर आवेदिका ने अंचल व विधि शाखा में पैसे दिये.
पोस्टल पार्क के अरुण कुमार मकान बनवा रहे हैं. इसको लेकर उन्होंने नजदीक से ट्रक पर बालू मंगवाया था, जिसे देर रात सड़क किनारे उतरवाया जा रहा था. रात दो बजे से लेकर सुबह पांच बजे के बीच चिरैयाटांड़ मुख्य सड़क पर अलग-अलग थानों की चार बार पुलिस जिप्सी गुजरी. हर बार ड्राइवर को धमका कर ‘ खर्चा-पानी ‘ मांगा गया. एक-दो बार तो ड्राइवर ने बहस कर पल्ला छुड़ाया, लेकिन जब बार-बार जिप्सियां पहुंचने लगी तो उनको दो बार 50-50 रुपये देने पड़े.
यह तीन केस महज उदाहरण हैं. यह बताने के लिए की छोटी-छोटी चीजों के लिए आम लोगों को कितना संघर्ष करना पड़ता है. भ्रष्टाचार के खिलाफ केंद्र व राज्य सरकारों ने कड़े कानून बना रखे हैं, लेकिन आम जिंदगी में हर एक शख्स को इस भ्रष्टाचार से जूझना पड़ता है.
सरकारी बाबुओं की निजी सेवा किये बगैर सरकारी सेवा का लाभ नहीं मिलता. कुछ लोग तो भ्रष्टाचार का डट कर मुकाबला करने की हिम्मत दिखाते हैं, लेकिन अधिकांश इसकी जटिलताओं का शिकार होकर टूट जाते हैं. मजबूरन भ्रष्टाचार को बढ़ावा देकर वो इसी भ्रष्ट व्यवस्था का अंग बन जाते हैं. वर्तमान माहौल में सरकारी महकमों में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि लोग इस माध्यम से होने वाली आय को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं और इसके लिए आवेदक को हर तरह के कष्ट देने से भी नहीं हिचकते.
निकाल ली तोड़ सरकारी योजनाओं की भी
सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार पर रोक लगाने को लेकर बिहार सरकार ने आरटीपीएस लागू की. मई 2011 में इसके लागू होने पर खूब जोर से प्रचार-प्रसार हुआ. लेकिन मामला ठंडा पड़ते ही व्यवस्था पुरानी पटरी पर लौट गयी. अब तो सरकारी दलालों ने इस व्यवस्था का भी तोड़ ढूंढ निकाला है.
सेवाओं के लिए समय सीमा निर्धारित होने के बावजूद जबरन विलंब कर उनको दलालों से काम कराने के लिए मजबूर किया जाता है. वरीय अधिकारियों के पास अपील की प्रक्रिया भी काफी जटिल व लापरवाह भरी होने की वजह से एक तो लोग जाने की हिम्मत नहीं दिखाते. अगर भूले-भटके चले भी गये तो उनको तारीख पर तारीख देकर लंबे न्याय प्रक्रिया में उलझ जाते हैं.
न्याय की गारंटी नहीं सिर्फ तारीख पर तारीख
पीजीआरएस 06 जून 2015 से पूरे बिहार में लागू हुई. इसके लिए अनुमंडल व जिला स्तर पर विशेष अधिकारी अधिसूचित किये गये हैं. किसी भी तरह की शिकायत पर 60 दिन के अंदर निबटारे का प्रावधान है. लेकिन, इसके आवेदक तारीखों में ही उलझ कर रहे जाते हैं.
अधिकांश तारीखों पर संबंधित अधिकारी या तो उपस्थित ही नहीं होते, या फिर अपने जगह किसी दूसरे को भेज कर महज खानापूर्ति कर देते हैं. कभी-कभार बगैर उचित कारण बताये आवेदन खारिज भी कर दिया जाता है. ऐसे में अगर प्रथम या द्वितीय अपील में भी जाएं तो उनको कम से कम 120 दिन का समय लगेगा. इसके बाद भी न्यास मिलेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं.
सेवा-शिकायत करने के लिए क्या-क्या प्रावधान
आरटीपीएस
– (लोक सेवा का अधिकार)
इसके तहत अधिकांश सरकारी सेवाएं प्रदान करने के लिए निर्धारित समय-सीमा निर्धारित की गयी है. आवेदन को निर्धारित काउंटर पर जाकर जमा करना होता है, जहां पर निर्धारित तिथि को प्रमाण पत्र देने की सूचना दी जाती है.
अगर निर्धारित तिथि को प्रमाण पत्र न मिले, तो पहले 30 दिन के अंदर प्रथम अपीलीय पदाधिकारी के पास और फिर अगले 30 दिन के अंदर द्वितीय अपीलीय पदाधिकारी के पास अपील किये जाने का प्रावधान है. समय पर सेवा न देने की स्थिति में संबंधित पदाधिकारी पर जुर्माना लगाये जाने का प्रावधान है.
पीजीआरएस
– (बिहार जन शिकायत निवारण प्रणाली)
निर्धारित समय में शिकायतों के निवारण के लिए यह सेवा लागू की गयी. इसके तहत कोई भी व्यक्ति या समूह अनुमंडल या जिला कार्यालय के पीजीआरएस केंद्र पर परिवाद दायर कर सकता है.
परिवाद दायर होने पर तारीख निश्चित कर वादी-प्रतिवादी को साक्ष्य के साथ उपस्थित होकर अपना पक्ष रखने की नोटिस दी जाती है.
60 दिन के अंदर आवेदन पर निर्णय करना होता है. निर्धारित समय में निर्णय न होने या निर्णय से असंतुष्ट होने पर निर्णय के 30 दिन के भीतर प्रथम अपील में जा सकते हैं. प्रथम अपीलीय प्राधिकार के निर्णय के विरुद्ध अगले 30 दिन के अंदर अपील किया जा सकता है. अगर अपीलीय पदाधिकारी यह संतुष्ट हो कि आरोपी पदाधिकारी दोषी है तो उस पर 500 से 5000 रुपये तक का जुर्माना लगा सकता है.