बिहार : अस्पतालों-बाजारों के शौचालयों को ठीक कराये सरकार
सुरेंद्र किशोर राजनीतिक विश्लेषक बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय और नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा इन दिनों अपने-अपने विभाग के कामों को ठीकठाक करने के लिए सक्रिय नजर आ रहे हैं. अच्छी बात है. उत्साह और अच्छी मंशा को देख कर उम्मीद की जा सकती है कि इन विभागों में बेहतरी आयेगी. पर पुराने […]
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक विश्लेषक
बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय और नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा इन दिनों अपने-अपने विभाग के कामों को ठीकठाक करने के लिए सक्रिय नजर आ रहे हैं. अच्छी बात है. उत्साह और अच्छी मंशा को देख कर उम्मीद की जा सकती है कि इन विभागों में बेहतरी आयेगी. पर पुराने अनुभव बताते हैं कि शुरुआती उत्साह पर उस समय पानी फिर जाता है जब वास्तविकता से पाला पड़ता है.
दरअसल, आम लोगों से संबंधित इन विभागों को भीषण भ्रष्टाचार ने जितनी मजबूती से जकड़ रखा है, उसमें कुछ परिणामदायक काम कर पाना असंभव नहीं तो बहुत कठिन जरूर है. न तो सभी सरकारी डाॅक्टरों को उनकी ड्यूटी पर हाजिर कराना आसान काम है और न ही नगरों की सफाई कराना. देखना है कि नये मंत्री कितना सफल होते हैं! मेरी शुभकामना है. हां, ये मंत्री द्वय अपने-अपने महकमे के तहत आने वाले शौचालयों को ही ठीक कर पाएं तो भी वे नाम कमा लेंगे. किसी व्यक्ति की सफाई पसंदगी की जांच इससे नहीं होती कि वह अपना ड्राइंग रूम कितना साफ रखता है बल्कि इससे होती है कि वह शौचालय और रसोई घर के साथ कैसा सलूक करता है. सन 1972 के मुख्यमंत्री केदार पांडे सिर्फ एक काम के लिए आज भी यदा-कदा याद किये जाते हैं.
उनकी सरकार ने परीक्षाओं में कदाचार को बिलकुल ही समाप्त कर दिया था. क्या पटना के मौर्यलोक के शौचालयों को ठीक करना आज आसान काम है? वर्षों के अनुभव बताते हैं कि इस काम में बड़े-बड़े हुक्मरान फेल कर गये हैं. उधर उपयोग करने लायक शौचालय के अभाव में मौर्यलोक जाने वाले हजारों स्त्री-पुरुषों को कितनी परेशानी होती है, वह वे ही जानते हैं. इसका लोगों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है.
वहां अभी जो शौचालय है, वह नरक तुल्य है. उसमें कोई प्रवेश भी नहीं करना चाहता. यही हालत राज्य के अन्य मार्केट के शौचालयों का है. कई स्थानों में तो शौचालय हैं ही नहीं. इससे अधिक मुश्किल काम तो है सरकारी अस्पतालों और निजी क्लिनिकों के शौचालयों को इस्तेमाल लायक बनाना. अनेक निजी क्लिनिकों में तो शौचालय का कोई प्रावधान ही नहीं होता है.
कहीं- कहीं हैं भी तो उनमें से अधिकतर इस्तेमाल लायक नहीं होते, जबकि चिकित्सकों की आय कम नहीं है. वैसे विभिन्न पैथों से जुड़े वैसे चिकित्सकों के क्लिनिक में भी शौचालय नहीं है, जहां रोज सैकड़ों मरीज और उनके परिजन जाते हैं और वहां घंटों बैठते हैं. इस मानवीय पक्ष की ओर संबंधित मंत्री ध्यान देंगे तो उन्हें लोगबाग याद रखेंगे.
भ्रष्टाचार के खिलाफ हाईकोर्ट की पहल सराहनीय : एक निजी चैनल ने स्टिंग आॅपरेशन के जरिये पटना लोअर कोर्ट के कुछ कर्मचारियों को रिश्वत लेते पकड़ा और पटना हाईकोर्ट ने तत्काल उन्हें निलंबित कर दिया. हाईकोर्ट की इस पहल की सराहना हो रही है. इस कदम से हाईकोर्ट से लोगों की उम्मीदें बढ़ी हैं. दरअसल ऐसा भ्रष्टाचार सिर्फ पटना कोर्ट तक ही सीमित नहीं है. हाईकोर्ट से उम्मीद बंधी है कि वह अन्य जिलों की ओर भी ध्यान देगा.
कचहरियों में ऐसी घूसखोारी की खबरें पहले भी मिलती रही हैं. पर ताजा स्टिंग आॅपरेशन में जिस तरह क्लर्क निर्भीक होकर बेशर्मी से और अधिकारपूर्ण ढंग से पैसे ऐंठते हुए देखे जा रहे हैं, उससे लगता है कि हाल के वर्षों में भ्रष्ट कर्मी अधिक निर्भीक हो गये हैं.
ऐसी निर्भीकता उनमें कैसे आयी? इसकी जड़में जाना होगा. हाईकोर्ट प्रशासन को इस मनोवृत्ति के पीछे के कारणों की जांच करनी चाहिए. तभी इस समस्या का समाधान हो पायेगा और गरीब व निःसहाय वादी-प्रतिवादी राहत पा सकेंगे.
भ्रष्टाचार चीन में अधिक या भारत में? : चीन में यह कहा जा रहा है कि यदि चीन खुद को सोवियत संघ की तरह तबाह होने से बचाना चाहता है तो उसे भ्रष्टाचार से और मजबूती से लड़ना होगा.
क्या भारत के हुक्मरान और विरोधी दलों के नेतागण इस बात पर आकलन करेंगे कि हमारे यहां चीन से कम भ्रष्टाचार है या अधिक? यदि इस देश में भ्रष्टाचार बढ़ता गया तो इस देश का एक दिन क्या हाल होगा? भारत में क्यों भ्रष्टाचार हमेशा ही एक राजनीतिक मुद्दा बन जाता है? क्या भ्रष्टाचार कभी देशहित का मुद्दा भी बनेगा? कुछ अपवादों को छोड़ दें तो देश के हर कोने से और हर महकमे से भीषण भ्रष्टाचार की खबरें आ रही हैं.
भ्रष्टाचार को लेकर दिग्गजों की चिंता पुरानी : महात्मा गांधी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने इस देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर समय-समय पर गहरी चिंता व्यक्त की है, पर भ्रष्टाचार है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है. महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘भ्रष्टाचार को लोकतंत्र की अपरिहार्य उपज नहीं बनने दिया जाना चाहिए.’ जवाहर लाल नेहरू ने आजादी के तत्काल बाद ही कहा था कि ‘भ्रष्टाचारियों को नजदीक के लैम्प पोस्ट से लटका दिया जाना चाहिए.’
1988 में मधु लिमये ने कहा था कि ‘इस मुल्क के शक्तिशाली लोग इस देश को बेच कर खा रहे हैं.’ 1998 में मनमोहन सिंह ने कहा कि ‘इस देश की पूरी व्यवस्था सड़ चुकी है.’ 2008 में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बीएन अग्रवाल और न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी ने कहा कि ‘भगवान भी इस देश को नहीं बचा सकता.’2003 में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह ने कहा था कि ‘राजनेता कैंसर हैं जिनका इलाज संभव नहीं है.’
1998 में केंद्रीय ग्रामीण विकास सचिव एनसी सक्सेना ने कहा था कि ‘भ्रष्टाचार में जोखिम कम और मुनाफा अधिक है.’ 1997 में तो संसद ने राजनीति के अपराधीकरण और भ्रष्टाचार के खिलाफ मिलकर अभियान चलाने के लिए सर्वसम्मत प्रस्ताव पास किया था. इन सब के बावजूद चीजें सुधरती नजर नंहीं आ रही हैं. जो थोड़े से लोग भ्रष्टाचार के महा दानव के खिलाफ अभियान शुरू करते हैं, उनके खिलाफ ही ताकतवर शक्तियां उठ खड़ी हो जाती हैं.
एक भूली-बिसरी याद : सन् 1986 में पुष्पा भारती ने इन शब्दों में इंदिरा गांधी को याद किया था, ‘इंदिरा जी के जन्म दिवस पर सोनिया हमेशा चावल और चने से बने कश्मीरी व्यंजन ‘सरवारी’ और मीठे चावल बनवाती थी. नेहरू परिवार में हर मांगलिक अवसर पर ये चीजें जरूर पकती हैं.
पर अब उनका मन नहीं होता. एक हूक सी उठती है जी में. पर समय चक्र तो घूमेगा ही और 19 नवंबर आयेगा ही. सोनिया चुपचाप मां के कमरे के सामने वाले दरवाजे पर आम की पत्तियों का तोरण लगवा देंगी. प्रियंका के साथ कमरे के हर कोने में फूल सजा देंगी. चादरें, तकियों के गिलाफ, मेजपोश और तौलिये, सभी कुछ नये रखवा देंगी. कमरे का माहौल तो नया हो जायेगा, पर क्या होगा उन यादों का जो हमेशा पुरानी ही होती हैं!’
और अंत में : भौतिकशास्त्री स्टीफेन हाॅकिन्स ने हाल में यह कहा है कि ‘सन 2600 तक पृथ्वी आग का गोला बन जायेगी.’ हाॅकिन्स की ऐसी भविष्यवाणियां पढ़ कर अनेक लोग उसका मजाक उड़ाते हैं. पर दिल्ली में भी पर्यावरण का जो हाल है, उसे देख कर आप हाॅकिन्स की बातें हवा में उड़ा सकते हैं?