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अररिया लोस उपचुनाव : प्रदेश कांग्रेस में उभरे मतभेद, अशोक चौधरी व कौकब कादरी आमने-सामने

पटना : अररिया लोकसभा सीट पर उपचुनाव लड़ने के मुद्दे पर खेमों में बंटे बिहार प्रदेश कांग्रेस का मतभेद एक बार फिर सामने आ गया है. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी के नेतृत्व वाला गुट जहां पार्टी के अररिया लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव लड़ने पर जोर दे रहा है, वहीं पार्टी का मौजूदा प्रदेश […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 17, 2017 10:49 AM

पटना : अररिया लोकसभा सीट पर उपचुनाव लड़ने के मुद्दे पर खेमों में बंटे बिहार प्रदेश कांग्रेस का मतभेद एक बार फिर सामने आ गया है. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी के नेतृत्व वाला गुट जहां पार्टी के अररिया लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव लड़ने पर जोर दे रहा है, वहीं पार्टी का मौजूदा प्रदेश नेतृत्व इस तरह की राय को खारिज कर रहा है. उसका कहना है कि लालू प्रसाद से सलाह-मशविरा करने के बाद पार्टी आला कमान इस बारे में फैसला करेगा.

मालूम हो कि राजद सांसद तसलीमुद्दीन की गत सितंबर में हुई मौत के बाद अररिया लोकसभा सीट खाली हुई थी. चुनाव आयोग ने अब तक अररिया संसदीय सीट पर उपचुनाव के तारीख की घोषणा नहीं की है. वहीं, राजद के राष्ट्रीय महासचिव शिवानंद तिवारी के मुताबिक, राजद प्रत्याशी ने यहां से जीत दर्ज की थी. जीत का अंतर भी करीब तीन लाख से ज्यादा था. ऐसे में अररिया की सीट राजद का होना चाहिए. बिहार में राजद-कांग्रेस का मतलब लालू प्रसाद-सोनिया गांधी होता है. इसलिए चुनाव में राजद की भूमिका क्या होगी, यह राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ही तय करेंगे.

बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी (बीपीसीसी) के पूर्व अध्यक्ष अशोक चौधरी ने कहा, ‘मेरा मानना है कि हमें अररिया में उपचुनाव लड़ने के लिए प्रस्ताव के साथ आगे आना चाहिए. लोकसभा सीट पर अच्छी खासी संख्या में अल्पसंख्यक आबादी है. हम वहां जीत के प्रति आश्वस्त हो सकते हैं.’ चौधरी ने कहा, ‘एक राष्ट्रीय दल के तौर पर हमें अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए हर अवसर का इस्तेमाल करना चाहिए. उपचुनावों में जीत उद्देश्य की काफी बेहतर तरीके से पूर्ति करते हैं. हमने पंजाब के गुरदासपुर और मध्य प्रदेश के चित्रकूट में वैसा देखा है. अररिया हमारी एक और उपलब्धि हो सकती है. बिहार कांग्रेस के भीतर परस्पर विरोधाभासी विचारों का महत्व प्रतिद्वंद्वी खेमों के अलग-अलग झुकाव रखने के मद्देनजर है.’

एक ओर जहां चौधरी के खेमे का झुकाव बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ है, वहीं अंतरिम प्रदेश अध्यक्ष कौकब कादरी खेमे का झुकाव साफ तौर पर लालू प्रसाद नीत राजद के पक्ष में है. बिहार में महागठबंधन के विघटन के साथ ही बिहार कांग्रेस के भीतर गुटीय संघर्ष गहरा गया. महागठबंधन में राजद और जदयू भी शामिल थे.

चौधरी को कुछ महीने पहले बीपीसीसी अध्यक्ष के पद से हटाया गया था, जब राजद के साथ ज्यादा सहज महसूस करनेवाले पार्टी के भीतर के प्रतिद्वंद्वी धड़े ने आरोप लगाया था कि वह प्रदेश इकाई को बांटने और नयी सरकार में शामिल होने की कोशिश कर रहे हैं. नीतीश कुमार ने महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद गत जुलाई में भाजपा के समर्थन से राज्य में नयी सरकार बनायी थी.

कादरी ने चौधरी के सुझाव को खारिज करते हुए कहा कि यह उनकी निजी राय हो सकती है. हालांकि, यह सुझाव अनावश्यक दिया गया. उन्होंने कहा कि पार्टी आला कमान सीट के खाली होने से भलीभांति अवगत है. इस बारे में राजद प्रमुख लालू प्रसाद से बातचीत कर इस बारे में निर्णय किया जायेगा. कादरी ने कहा, जो लोग ऐसे विषयों पर निर्णय लेने को अधिकृत नहीं हैं उन्हें इस तरह की बयानबाजी से बचना चाहिए. इस बीच, राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने भी चौधरी के विचार को नकारते हुए कहा कि यह अपनी राजनैतिक किस्मत को फिर से चमकाने के लिए अलग-थलग पड़ गये व्यक्ति का हताशापूर्ण प्रयास है. उन्होंने कहा, ‘वह बीपीसीसी के अध्यक्ष नहीं हैं, ऐसे में उन्होंने किस अधिकार से इस तरह का बयान दिया. कांग्रेस नेतृत्व भलीभांति जानता है कि वह सीट राजद की थी. मैं नहीं मानता कि इस तरह की शरारत से दोनों दलों के बीच कोई भ्रम पैदा होगा.’

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