हर रोज 100 से अधिक लोग होते डॉग बाइट का शिकार
पटना : एक ओर कुत्तों का आतंक चरम पर है तो दूसरी ओर नगर निगम या कोई अन्य एजेंसी इससे बचाव का प्रयास नहीं कर रही है. इसके कारण न केवल लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है बल्कि हर वर्ष रेबीज की वजह से दर्जनों लोगों की मौत भी हो रही है. […]
पटना : एक ओर कुत्तों का आतंक चरम पर है तो दूसरी ओर नगर निगम या कोई अन्य एजेंसी इससे बचाव का प्रयास नहीं कर रही है. इसके कारण न केवल लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है बल्कि हर वर्ष रेबीज की वजह से दर्जनों लोगों की मौत भी हो रही है.
पटना में हर रोज 100 से अधिक लोग डॉग बाइट का शिकार हो रहे हैं. पीएमसीएच के एंटी रेबीज टीकाकरण केंद्र पर हर रोज ऐसे 40-50 लोगों की भीड़ उमड़ती है. लगभग आधे लोग जागरूकता की कमी या डॉग बाइट को हल्के में लेने की वजह से टीकाकरण केंद्र तक पहुंच ही नहीं पाते.
केवल आईडीएच में होता है रेबीज का इलाज
रेबीज का टीका प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के साथ-साथ जिला और अनुमंडल स्तर के अस्पतालों में भी दिया जाता है, लेकिन रेबीज हो जाने पर उसका इलाज प्रदेश के केवल चार संक्रामक रोग अस्पताल (आईडीएच) में होता है. इनमें भी भागलपुर, दरभंगा और गया स्थित संक्रामक रोग अस्पताल की स्थिति खराब है. केवल पटना के अगमकुआं स्थित संक्रामक रोग अस्पताल की स्थिति थोड़ी ठीक है, हालांकि वहां भी रेबीज के इलाज की कोई खास व्यवस्था नहीं है. रेबीज के मरीजों को पानी चढ़ाकर और कंपोज खिलाकर केवल अंतिम क्षणों में होनेवाले कष्ट को कम करने का प्रयास किया जाता है.
नसबंदी पर कोर्ट की रोक : कुत्तों की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण पाने का एक कारगर उपाय उनकी नसबंदी हो सकता थी, लेकिन वर्षों तक नगर निगम इस विषय पर मौन रहा.
2011 में इसके लिए एक टेंडर भी निकाला गया पर कोई संवेदक सामने नहीं आया . पिछले दिनों पेटा और पीपुल्स फॉर एनीमल जैसे पशुओं के अधिकार के लिए लड़ने वाले संगठनों की अपील पर कुत्तों की नसबंदी पर कोर्ट ने रोक लगा दी. इसके बाद ये मामला वहीं रूक गया, लेकिन शहर की गलियों में बढ़ रहे कुत्तों पर किसी का ध्यान नहीं गया. कई बार कुत्ते कुत्ते लड़ते-लड़ते बीच सड़क में भी आ जाते हैं, जिससे दोपहिया वाहन चालक उलझकर गिर जाते हैं.
बाहर छाेड़ने का भी नहीं हो रहा प्रयास : 22-23 वर्ष पहले तक नगर निगम कुत्तों को पकड़ कर शहर से बाहर ले जाकर छाेड़ने का नियमित प्रयास करता था, लेकिन यह प्रयास भी अब नहीं दिखाई दे रहा है.
वजह बताया जा रही है कि अब ऐसे खाली जगह नहीं उपलब्ध हैं जहां बड़ी संख्या में कुत्तों को छोड़ा जा सके. साथ ही, पशु अधिकारवादी संगठन भी इनका विरोध कर रहे हैं कि यदि खाली जगहों में इन्हें छोड़ा गया तो इनके लिए भोजन तलाशना संभव नहीं होगा. कोर्ट भी अपने आदेश में इस तरह के किसी प्रयास के विरोध में मंतव्य दे चुका है. फिलहाल इस परेशानी को रोकने का कारगर कदम कहीं से नहीं उठाया जा रहा है.