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पैसे की उगाही कर प्राइवेट अस्पताल ने छोड़ा

पटना : सरकारी अस्पतालों की खामियों के बीच यदि आपको निजी अस्पतालों की कारस्तानी समझनी हो, तो आप किसी भी बड़े सरकारी अस्पताल का दौरा कर लीजिए. यह सही है कि सरकारी अस्पतालों में ज्यादातर मरीज गरीब और आर्थिक रूप से पिछड़े तबके से होते हैं. लेकिन यह भी एक तथ्य है कि इन अस्पतालों […]

पटना : सरकारी अस्पतालों की खामियों के बीच यदि आपको निजी अस्पतालों की कारस्तानी समझनी हो, तो आप किसी भी बड़े सरकारी अस्पताल का दौरा कर लीजिए. यह सही है कि सरकारी अस्पतालों में ज्यादातर मरीज गरीब और आर्थिक रूप से पिछड़े तबके से होते हैं.
लेकिन यह भी एक तथ्य है कि इन अस्पतालों में आपको पूरे प्रदेश से दो तिहाई ऐसे मरीज मिलेंगे, जो निजी अस्पतालों और कुछ डॉक्टरों के मारे हुए हैं. इनका दर्द ऐसा है, जो ये किसी को बता भी नहीं सकते. इनके परिजनों ने पहले प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया था. धूर्त अस्पतालों की टीम ने पहले इनका उपयोग किया और फिर जब मर्ज बढ़ गया, तो इन्हें पीएमसीएच रेफर कर दिया. प्रभात खबर की टीम कुछ ऐसे ही मरीज से मिली.
15 दिन झुलाया, 50 हजार लिया फिर कहा पीएमसीएच जाइए
बख्तियारपुर की रहनेवाली देवपरी देवी ने कहा कि कस्बे के ही एक निजी अस्पताल में थी. पंद्रह दिन अस्पताल वालाें ने बहाने से फंसा कर रखा. करीब 50 हजार की जमा पूंजी ले ली और फिर कहा पीएमसीएच जाइए.
पैसे खत्म हो गये तो लाना पड़ा सरकारी अस्पताल
माेतिहारी से आये तिलक भगत प्राइवेट अस्पताल से प्रताड़ित होने के बाद यहां पहुंचे हैं. उनके परिजनों ने भी पहले वहीं इलाज कराया था. जब स्थितियां नासूर हो गयीं, तो फिर उन्हें राज्य के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच में रेफर कर दिया.
हमलोग तो किसान हैं, अपनी सारी जमा पूंजी डॉक्टरों को दे दी
छपरा से आये नरेश कुमार ने कहा कि मुझे लकवा मार गया था, निजी अस्पताल में कहा गया कि बढ़िया से इलाज हो जायेगा. 30 हजार रुपये भी ले लिये गये, अब तक मर्ज नहीं गया. अब परिवारवाले यहां लेकर आये हैं.
पैर टूटा था, निजी अस्पताल ने ठीक से नहीं जोड़ा, अब यहां रेफर कर दिया
नालंदा से आयी सविता देवी का पैर एक महीना पहले टूटा था, लेकिन अभी भी वे स्ट्रेचर पर हैं. उन्होंने नूरसराय के एक अस्पताल में बीस दिनों तक दिखाया. 20-22 हजार रुपये भी ले लिये, अब यहां रेफर कर दिया.
पीएमसीएच में गंभीर स्थिति में आते हैं दो तिहाई मरीज
पीएमसीएच में दो तिहाई मरीज गंभीर स्थिति में आते हैं. उनकी स्थिति ये झोला छाप इतनी खराब कर चुके होते हैं कि हमलोगों को उसे देखने और ठीक करने में पसीने छूट जाते हैं. इसके बावजूद हमलोग हर संभव प्रयास करते हैं कि मरीज की जान बच जाये. झाेलाछाप लोगों पर लगाम लगना बहुत आवश्यक है, ताकि बड़े अस्पतालों की छवि ठीक रहे.
-डॉ अभिजीत, इमरजेंसी
इंचार्ज, पीएमसीएच

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