पटना : मिड डे मील की दाल में गिरकर पांच वर्ष के मासूम की मौत

पटना : बिहार के सरकारी स्कूलों से गाहे-बगाहे लापरवाही की बातें सामने आती रहती हैं. खासकर मिड डे मिल को लेकर कई बार बड़ी घटनाएं भी हो चुकी हैं, लेकिन स्कूल के साथ शिक्षा विभाग भी संभलने का नाम नहीं लेते हैं. कुछ इसी तरह की घटना राजधानी पटना से सटे खुशरुपुर प्रखंड के सरकारी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 9, 2017 10:18 AM

पटना : बिहार के सरकारी स्कूलों से गाहे-बगाहे लापरवाही की बातें सामने आती रहती हैं. खासकर मिड डे मिल को लेकर कई बार बड़ी घटनाएं भी हो चुकी हैं, लेकिन स्कूल के साथ शिक्षा विभाग भी संभलने का नाम नहीं लेते हैं. कुछ इसी तरह की घटना राजधानी पटना से सटे खुशरुपुर प्रखंड के सरकारी स्कूल में हुई है, जिसके बारे में जानकर आपकी रूह कांप जायेगी. जानकारी के मुताबिक मिड डे मिल के लिए बन रही दाल में गिरकर एक मासूम की मौत हो गयी है.

बताया जा रहा है कि स्कूल ने इतनी लापरवाही की कि शिक्षकों द्वारा इसकी जानकारी शिक्षा विभाग के अधिकारियों तक को नहीं दी गयी. शनिवार यानी आज जब उस बच्चे की मौत हो गयी, तब लोगों को घटना के बारे में जानकारी मिली. स्थानीय मीडिया के मुताबिक खुसरुपुर प्रखंड के बड़ा हसनपुर स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यालय में गर्म दाल में डूबकर 5 साल के बच्चे के मौत की खबर आयी है. मौत का कारण बच्चे का दाल भरी टब में गिरना बताया जा रहा है.

मृतक बच्चा उत्क्रमित मध्य विद्यालय बड़ा हसनपुर के रसोइया का बेटा गुड्डू कुमारबतायाजा रहा है. रसोईया विद्यालय में दाल बना रही थी. उसी समय उसका 5 साल का बेटा गुड्डू दाल में गिर गया था. हैरानी की बात है कि गर्म दाल में मासूम बच्चे के गिरने के बाद विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक ने घटना की जानकारी न तो थाना को दी और न ही शिक्षा विभाग के अधिकारियों को घटना की जानकारी दी गई. आज इलाज के दौरान जब बच्चे की मौत हो गयी, तब जाकर मामला खुला.

संवेदनहीनता की पराकाष्ठा देखिए कि जब इस बारे में शिक्षा विभाग के अधिकारियों से मीडिया ने पूछा तो अधिकारियों ने कहा कि वह स्कूल का छात्र नहीं था. खुसरुपुर प्रखंड के प्रखंड शिक्षा प्रसार अधिकारी राकेश सिन्हा ने बताया कि बच्चा गुरुवार को दाल भरे टब में गिरने से घायल हो गया था और आज इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. बीईईओ के अनुसार जिस बच्चे की मौत हुई है वह उस विद्यालय का छात्र नहीं था. माना जा रहा है कि रसोइया की लापरवाही या फिर दूसरे कार्यों में व्यस्तता के कारण इस तरह की बड़ी घटना हो गई.

बिहार में इससे पूर्व भी मिड डे मील के दौरान बड़ी घटनाएं सामने आ चुकी हैं. 16 जुलाई 2013 में छपरा के गंडामन धर्मसती विद्यालय में विषाक्त भोजन करने से 23 बच्चों की मौत हो गयी थी. भारत में सरकार की मदद से चलाई जाने वाली दूसरी स्कीमों की तरह इस मामले में भी अलग-अलग राज्यों में योजना के लागू होना का स्तर अलग-अलग है. दक्षिणी राज्य तमिलनाडु, केरल और ओड़िशा में ये बेहतर तरीके से लागू हो रहा है, तो बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में इसके कार्यान्वयन को बहुत बेहतर किया जा सकता है. स्कूल में मुफ्त भोजन दिए जाने की योजना की शुरूआत चेन्नई में 1925 में हुई थी. वजह चाहे जो भी हो बिहार को अपने 70,000 स्कूलों में मिड डे मील योजना को बेहतर तरीके से लागू करने की जरूरत है.

साल 2010 में योजना आयोग की एक स्टडी में पाया गया कि बिहार के स्कूलों के 70 प्रतिशत छात्र भोजन की गुणवत्ता से नाखुश थे. उनमें से बहुत सारे बच्चों की शिकायत थी कि उन्हें खाने की मात्रा कम मिलती है. एक तिहाई स्कूलों का कहना था कि उनके पास भोजन तैयार करने के लिए बर्तन मौजूद नहीं है.इस स्टडी में स्कूलों को अनाज की सप्लाइ में आने वाले दिक्कतों की बात भी सामने आई. लेकिन इन सबके बावजूद ये पाया गया कि योजना के आठ साल पहले लागू किये जाने के बाद से अधिक छात्रों ने स्कूल आना शुरू कर दिया है.

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