नयी दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने आज सवाल किया कि जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव द्वारा राज्यसभा से उन्हें अयोग्य ठहराए जाने को चुनौती देने वाली याचिका में राज्यसभा के सभापति को पक्षकार कैसे बना दिया. न्यायमूर्ति विभु बाखरु नेशरद यादव की याचिका पर दलीलें सुनने के लिए कल का दिन तय करते हुए यह सवाल किया. इस याचिका में शरद यादव ने कल से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में शामिल होने की अनुमति के लिये अंतरिम आदेश देने का अनुरोध किया है.
शरद यादव की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उपराष्ट्रपति और राज्यसभा सभापति को पक्षकार इसलिए बनाया गया क्योंकि चार दिसंबर के अयोग्य ठहराने के आदेश के खिलाफ याचिका में उन्हीं पर विद्वेष के आरोप लगायेगये हैं. राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू की ओर से अतिरिक्त सालिसिटर जनरल (एएसजी) संजय जैन ने शरद यादव को किसी तरह की अंतरिम राहत देने का विरोध किया. इसके बाद अदालत ने इस मामले को कल के लिए सूचीबद्ध कर दिया. एएसजी ने कहा कि अगरशरद यादव को संसद के शीतकालीन सत्र में भाग लेने की अनुमति दी गयी तो यह उनकी बहाली जैसा होगा.
कपिल सिब्बल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने अतीत में इस तरह के मामलों में विधिनिर्माता को सत्र में भाग लेने की अनुमति दी है, बस उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं होता है. उन्होंने दलील दी कि भाजपा में शामिल होने के नीतीश कुमार के कदम की आलोचना करना स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ना नहीं होगा. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जो साबित करे कि मेरे मुवक्किल यादव ने पार्टी सदस्यता छोड़ दी.
अदालत पहले इस मामले में नोटिस जारी करने जा रही थी और इसे सुनवाई के लिए 20 दिसंबर के लिए रख रही थी, लेकिन बाद में अदालत ने कहा कि वह इस पर कल सुनवाई करेगी. सभापति ने चार दिसंबर के अपने आदेश में यादव के सहयोगी और सांसद अली अनवर को भी अयोग्य ठहराया था. उन्होंने जदयू की इस दलील पर सहमति जताई कि दोनों नेताओं ने पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन करके और विपक्षी दलों के कार्यक्रमों में शामिल होकर अपनी सदस्यता स्वेच्छा से छोड दी है.