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आपकी सियासत के ढोल मंजीरे-झाल बजते रहे और मैं तड़प-तड़प कर मर गयी, पढ़ें

पटना : जी हां, मेरे मरने से आपकी पार्टी, आपकी सियासत और राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा. मैं एक आम औरत थी. मेरी सांसें रुक गयी. क्योंकि उन सांसों को आपने थामने नहीं दिया. आपकी पार्टी ने बिहार बंद बुलाया, मेरी सांसें, आपके रोड जाम की वजह से रुक गयी. मैं जीना चाहती थी, […]

पटना : जी हां, मेरे मरने से आपकी पार्टी, आपकी सियासत और राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा. मैं एक आम औरत थी. मेरी सांसें रुक गयी. क्योंकि उन सांसों को आपने थामने नहीं दिया. आपकी पार्टी ने बिहार बंद बुलाया, मेरी सांसें, आपके रोड जाम की वजह से रुक गयी. मैं जीना चाहती थी, अपनों के लिए, अपने परिवार और बच्चों के लिए. आपके कथित बंद की वजह से मेरी वह इच्छा भी पूरी नहीं हो सकी. मेरी सांसें रुक गयी. मेरे अपने मेरे लिए तड़प-तड़प के भले रोते रहें. आपके कार्यकर्ता सड़कों पर बैठकर ढोल बजाते रहे. ढोल की थाप और झाल की ध्वनि में वह आपकी सियासत को बुलंद कर रहे थे. जब बंद खत्म होगा, तो आप भी उन्हें बेहतर कार्यकर्ता का पुरस्कार दे दीजिएगा, लेकिन आप यह याद जरूर रखियेगा कि आपने सांस की लाश पर सियासत की है.

मानवता जब शर्मसार हो जाये, इंसानियत अपना मुंह चुराने लगे और संवेदना पूरी तरह तार-तार हो जाये, वहां से आपके लिए राजनीति की शुरुआत होती है. लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन करने का हक आपको है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप सियासत का ढोल पीटते रहें और किसी की जान जाती रहे. मेरी जान तो चली गयी. मैं बिहार के किसी जिले के, किसी परिवार की महज एक महिला थी, लेकिन मेरा भी परिवार है, बाल-बच्चे और सगे संबंधी हैं. मेरे परिवार के पास करोड़ों में कौन कहे हजारों की नकदी संपत्ति भी नहीं. मैं तो बस आम नागरिक की तरह जीना चाहती थी. मेरा जीवन संकट में था और मुझे इलाज के लिए अस्पताल लाया जा रहा था, बीच रास्ते में आपके लोगों ने रोक दिया, मेरी सांसें ही रुक गयी.

मैं महनार की रहने वाली एक आम महिला, किसी की मां, बेटी, पत्नी और बुआ थी. मेरा नाम सोमारी देवी था. मेरे परिजन मुझे इलाज के लिए पटना लेकर जा रहे थे. आपकी पार्टी ने बंद बुलाया था, जिसके कारण एंबुलेंस जाम में फंस गया. मेरा बीमार शरीर गांधी सेतु के टोल प्लाजा पहुंचते-पहुंचते लाश में तब्दील हो गया. मेरी सांसें रुक गयी और मेरी मौत हो गयी. मेरे परिजनों ने पुलिस से भी मिन्नतें की लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा, मेरे एंबुलेंस का सायरन चीखता रहा और आपकी पार्टी के लोग ढोल बजाते रहे. जरा, गंभीरता से सोचिएगा, आपने इस बंद में कितने जीवन का सृजन किया है और कितनों को काल के गाल में डाला है. मेरी कहानी का अंत तो हो गया. बस मेरे सवाल पर ध्यान जरूर दीजिएगा.

यह सुलगते सवाल हर उस मरीज और उनके परिजनों के मन में उठ सकता है, जो किसी राजनीतिक दल द्वारा बुलाये गये बंद में अपनों को खो देते हैं. बंद करने वाले इतना क्रूर क्यों हो जाते हैं, किसी को पता नहीं. जबकि सभी राजनीतिक दल यह कहते हैं कि बंद के दौरान मरीजों और स्कूली बच्चों को परेशान नहीं किया जायेगा. गुरुवार को राजद द्वारा बुलाये गये बंद में इस बात का ख्याल नहीं रखा गया. आरा से लेकर हाजीपुर और बिहार के अन्य भागों से आम लोगों को परेशान करने वाली खबरें मिली. वह भी तब, बंद से 14 घंटे पूर्व सरकार ने नयी बालू नीति को वापस ले लिया था.

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