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TIME FRAME में पढ़ें, लालू और चारा घोटाले के साथ उनके जीवन का उतार-चढ़ाव

पटना : सियासत में अपने बेलाग, बेलौस, बिंदास और मस्तमौला अंदाज के लिए किसी एक राजनेता को जाना जाता है, तो वह लालू यादव हैं. राजद सुप्रीमो लालू यादव ने टीवी पर अपना ही मजाक बनाने को सपोर्ट किया, तो एक फिल्म में अभिनेता भी बने. गाय, भैंस और पशुपालन जैसे पेशे के साथ राजनीति […]

पटना : सियासत में अपने बेलाग, बेलौस, बिंदास और मस्तमौला अंदाज के लिए किसी एक राजनेता को जाना जाता है, तो वह लालू यादव हैं. राजद सुप्रीमो लालू यादव ने टीवी पर अपना ही मजाक बनाने को सपोर्ट किया, तो एक फिल्म में अभिनेता भी बने. गाय, भैंस और पशुपालन जैसे पेशे के साथ राजनीति में धुरंधर खिलाड़ी के रूप में जाने-जानें वाले लालू यादव का जीवन संघर्ष भरा रहा है. 11 जून 194 को जन्मे लालू यादव राजनेता व राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष हैं. वे 1990 से 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. बाद में उन्हें 2004 से 2009 तक केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में रेल मन्त्री का कार्यभार सौंपा गया.

जबकि, वे 15वीं लोक सभा में सारण से सांसद थे, उन्हें बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाला मामले में रांची स्थित केंद्रीय जांच ब्यूरो की अदालत ने पांच साल कारावास की सजा सुनाई थी. इस सजा के लिए उन्हें बिरसा मुण्डा केंद्रीय कारागार रांची में रखा गया था.सीबीआइकी विशेषकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखाथा, जबकि उन पर कथित चारा घोटाले में भ्रष्टाचार का गंभीर आरोप सिद्ध हो चुका था. अक्टूबर 2013 को न्यायालय ने उन्हें पांच साल की कैद और पच्चीस लाख रुपये के जुर्माने की सजा दी. दो महीने तक जेल में रहने के बाद 13 दिसंबर को लालू प्रसाद को सुप्रीम कोर्ट से बेल मिली. यादव और जनता दल यूनाइटेड नेता जगदीश शर्मा को घोटाला मामले में दोषी करार दिये जाने के बाद लोक सभा से अयोग्य ठहराया गया.

गौरतलबहो कि इसके बाद रांची जेल में सजा भुगत रहे लालू प्रसाद यादव की लोक सभा की सदस्यता समाप्त कर दी गयी. चुनाव के नये नियमों के अनुसार लालू प्रसाद अब 11 साल तक लोक सभा चुनाव नहीं लड़ पायेंगे. लोक सभा के महासचिव ने यादव को सदन की सदस्यता के अयोग्य ठहराये जाने की अधिसूचना जारी कर दी. इस अधिसूचना के बाद संसद की सदस्यता गंवाने वाले लालू प्रसाद यादव भारतीय इतिहास में लोक सभा के पहले सांसद हो गये हैं. बिहार के गोपालगंज में एक यादव परिवार में जन्मे यादव ने राजनीति की शुरुआत जयप्रकाश नारायण के जेपी आंदोलन से की जब वे एक छात्र नेता थे और उस समय के राजनेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा के काफी करीबी रहे थे. 1977 में आपातकाल केबाद हुए लोक सभा चुनाव में लालू यादव जीते और पहली बार 29 साल की उम्र में लोकसभा पहुंचे. 1980 से 1989 तक वे दो बार विधानसभा के सदस्य रहे और विपक्ष के नेता पद पर भी रहे.

लालू यादव को चारा घोटाला मामले में दोषी करार दे दिया गया है. 1990 में वे बिहार के मुख्यमंत्री बने एवं 1995 में भी भारी बहुमत से विजयी रहे. 23 सितंबर 1990 को, प्रसाद ने रामरथ यात्रा के दौरान समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया और खुद को एक धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में प्रस्तुत किया.

लालू यादव के जनाधार में एमवाई यानी मुस्लिम और यादव फैक्टर का बड़ा योगदान है और उन्होंने इससे कभी इन्कार भी नहीं किया है. लालू राजनीति के अलावा आर्थिक मामलों की पुस्तक पढ़ने के शौकीन हैं. जुलाई, 1997 में लालू यादव ने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल के नाम से नयी पार्टी बना ली. गिरफ्तारी तय हो जाने के बाद लालू ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया. जब राबड़ी के विश्वास मत हासिल करने में समस्या आयी तो कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने उनको समर्थन दे दिया. 1998 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी.

उसके बाद, दो साल बाद विधानसभा का चुनाव हुआ तो राजद अल्पमत में आगयी. सात दिनों के लिये नीतीश कुमार की सरकार बनी परंतु वह चल नहीं पायी. एक बार फिर राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं. कांग्रेस के 22 विधायक उनकी सरकार में मंत्री बने. 2004 के लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद एक बार फिर पूरी तरह मुख्य भूमिका में आये और रेलमंत्री बने. यादव के कार्यकाल में ही दशकों से घाटे में चल रही रेल सेवा फिर से फायदे में आयी. भारत के सभी प्रमुख प्रबंधन संस्थानों के साथ-साथ दुनिया भर के बिजनेस स्कूलों में लालू यादव के कुशल प्रबंधन से हुआ भारतीय रेलवे का कायाकल्प एक शोध का विषय बन गया. लेकिन अगले ही साल 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव में राजद सरकार हार गई और 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी के केवल चार सांसद ही जीत सके.

1990 के दशक में हुए चारा घोटाला मामले में राजद प्रमुख लालू यादव और जगन्नाथ मिश्रा को दोषी करार देने के बाद उनके राजनीतिक कैरियर पर सवालिया निशान लग गया. लालू पर पशुओं के चारे के नाम पर चाईबासा ट्रेजरी से 37.70 करोड़ रुपये निकालने का आरोप था.आज उन्हें दोषी करार दिया गया,जबकि जगन्नाथ मिश्रा को बरी कर दिया गया.
27 जनवरी 1996: पशुओं के चारा घोटाले के रूप में सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये की लूट सामने आयी. चाईबासा ट्रेजरी से इसके लिये गलत तरीके से 37.6 करोड़ रुपये निकाले गये थे.
11 मार्च 1996: पटना उच्च न्यायालय ने चारा घोटाले की जांच के लिये सीबीआई को निर्देश दिये.
19 मार्च 1996: उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश की पुष्टि करते हुए हाइकोर्ट की बेंच को निगरानी करने को कहा.
27 जुलाई 1997: सीबीआई ने मामले में राजद सुप्रीमो पर फंदा कसा.
30 जुलाई 1997: लालू प्रसाद ने सीबीआई अदालत के समक्ष समर्पण किया.
19 अगस्त 1998: लालू प्रसाद और राबड़ी देवी की आय से अधिक की संपत्ति का मामला दर्ज कराया गया.
4 अप्रैल 2000: लालू प्रसाद यादव के खिलाफ आरोप पत्र दर्ज हुआ और राबड़ी देवी को सह-आरोपी बनाया गया.
5 अप्रैल 2000: लालू प्रसाद और राबड़ी देवी का समर्पण, राबड़ी देवी को मिली जमानत.
9 जून 2000: अदालत में लालू प्रसाद के खिलाफ आरोप तय किये.
अक्तूबर 2001: सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद मामले को नये राज्य में ट्रांसफर कर दिया. इसके बाद लालू ने झारखंड में आत्मसमर्पण किया.
18 दिसंबर 2006: लालू प्रसाद और राबड़ी देवी को आय से अधिक संपत्ति के मामले में क्लीन चिट दी.
2000 से 2012 तक: मामले में करीब 350 लोगों की गवाही हुई. इस दौरान मामले के कई गवाहों की भी मौत हो गयी.
17 मई 2012: सीबीआई की विशेष अदालत में लालू यादव पर इस मामले में कुछ नये आरोप तय किये. इसमें दिसंबर 1995 और जनवरी 1996 के बीच दुमका कोषागार से 3.13 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी पूर्ण निकासी भी शामिल है.
17 सितंबर 2013: चारा घोटाला मामले में रांची की विशेष अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा.
30 सितंबर 2013: चारा घोटाला मामले में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव दोषी करार.
23 दिसंबर 2017 : मामले में लालू यादव दोषी करार, तीन जनवरी को सुनायी जायेगी सजा.


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