पटना : कहते हैं कि सियासत में पद प्राप्त करने के लिए अवसर का मिलना महत्वपूर्ण होता है. साथ ही अवसर मिलने के बाद उसका लाभ उठाने से चुकने वाले नेता को कमजोर खिलाड़ी भी माना जाता है. कुछ इसी तरह का अवसर केंद्रीय नेतृत्व की ओर से प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी को मिला. इस अवसर के मिलने के बाद पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अशोक चौधरी का विरोधी गुट काफी प्रसन्न हुआ और इसे अपनी जीत बताने लगा. कौकब कादरी को पार्टी के अंदर कुछ नेताओं ने पीठ थपथपा दी और यह कह दिया कि कांग्रेस के अध्यक्ष बनने की काबिलियत उनमें भी है, फिर क्या था. पार्टी के अंदर कौकब के भी दुश्मन पैदा हो गये. बिहार प्रदेश कांग्रेस के अंदर चल रही आंतरिक खींचतान अब धीरे-धीरे सतह पर भी आने लगी है.
राजनीतिक प्रेक्षक और बिहार की राजनीतिक को नजदीक से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त कहते हैं कि बिहार कांग्रेस के प्रभारी अध्यक्ष कौकब कादरी स्थायी अध्यक्ष बनने के लिए कौकस से घिर गये हैं.अशोक चौधरी को अध्यक्ष पद से हटाने की जल्दी बाजी में सोनिया गांधी द्वारा अध्यक्षीय प्रभार की अस्थायी जिम्मेदारी दिये जाने के साथ ही कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी में वे फंस गये हैं. महागठबंधन से नीतीश कुमार के निकल जाने के बाद तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी जब केन्द्रीय नेतृत्व के खिलाफ और नीतीश के पक्ष में लगातार बयान देने लगे, तब जल्दीबाजी में चौधरी को हटाया गया और उपाध्यक्ष के नाते कौकब को अध्यक्षीय काम संभालने की जिम्मेदारी दी गयी.
वहीं पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की माने तो कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में खुद को प्रोजेक्ट करने वाले कौकब को आलाकमान की मंशा तब समझ में आ गयी जब इनके द्वारा तैयार प्रदेश कमेटी की सूची पर मुहर नहीं लगायी गयी. दिल्ली से बैरंग लौटने के बाद कौकब कादरी अध्यक्ष बनने के लिए लॉबिंग करने लगे. जो कल तक अखिलेश प्रसाद सिंह को अध्यक्ष बनाने की लॉबी कर रहे थे, अब खुद एक दावेदार हो गये. स्वाभाविक तौर पर अखिलेश सिंह इनके विरोधी हो गये. इसी प्रयास में अखिलेश सिंह-विरोधी कौकस में वे घिर गये. पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा व विधायक दल के नेता सदानंद सिंह ने इनकी पीठ थपथपा दी. यह समझा दिया गया कि अल्पसंख्यक के नाते आपका दावा बनता है.
पार्टी के अंदर चल रही चर्चा और आंतरिक गुटबाजी को देखें, तो यह साफ दिखता है कि प्रदेश अध्यक्ष के मामले में राहुल गांधी शीघ्र फैसला लेंगे. इस पद के वैसे तो दावेदार कई हैं, लेकिन इनमें अखिलेश प्रसाद सिंह और प्रेमचन्द्र मिश्रा को सीरियस दावेदार माना जा रहा है. बिहार में बदली राजनीति,कांग्रेस में आया राहुल युग,2019 का चुनाव और सहयोगी दल राजद में आए संकट को ध्यान में रखते हुए राहुल गांधी को बिहार मामले में निर्णय लेना है.कौकब कादरी ने खुद को इस कदर सक्रिय कर लिया है जिससे राहुल गांधी को प्रभावित किया जा सके.
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