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Oct 1990 में कुछ ऐसा था लालू का बॉडी लैंग्वेज, अब आ गया है काफी अंतर, देखें वीडियो

पटना : चारा घोटाले में रांची के होटवार जेल में बंद लालू यादव की सजा का एलान आज होने वाला था, लेकिन कोर्ट ने कहा कि अब यह एलान कल यानी 4 जनवरी को होगा. रांची के होटवार जेल से कोर्ट पहुंचने के क्रम में लालू कोर्ट परिसर में कुछ दूर पैदल क्या चले. मीडिया […]

पटना : चारा घोटाले में रांची के होटवार जेल में बंद लालू यादव की सजा का एलान आज होने वाला था, लेकिन कोर्ट ने कहा कि अब यह एलान कल यानी 4 जनवरी को होगा. रांची के होटवार जेल से कोर्ट पहुंचने के क्रम में लालू कोर्ट परिसर में कुछ दूर पैदल क्या चले. मीडिया ने उनकी चाल और हाव-भाव को लेकर समीक्षात्मक रिपोर्ट पेश करनी शुरू कर दी. मीडिया ने कहा कि लालू के बॉडी लैंग्वेज में काफी निराशा है और लालू यादव के चेहरे पर सजा को लेकर काफी उदासी है. इतना ही नहीं कई उत्साहित संवाददाताओं ने यहां तक कहा कि लालू सजा के डर से काफी उदास और निराशा में चले गये हैं. आज रांची कोर्ट में लालू का हाव-भाव कुछ ऐसा ही दिख रहा है.

लालू के व्यक्तित्व के बारे में जानने वाले लोग मानते हैं कि लालू काफी जीवट इंसान हैं और वह जब-जब भी जेल गये, तब उधर से मजबूत होकर लौटे हैं. हालांकि, अब उम्र कुछ ऐसी हो गयी है और पार्टी के साथ राजनीति में उभरते बेटों की चिंता भले उन्हें सताये, लेकिन लालू के बॉडी लैंग्वेज में कभी निराशा नहीं दिखी है. पार्टी सूत्रों की मानें, तो लालू ने दो जनवरी को अपने दल के नेताओं-कार्यकर्ताओं को महत्वपूर्ण संदेश भिजवाया है.और इसे सख्ती से मानने की हिदायत भी दी है. लालू ने यह पार्टी के सभी नेताओं को यह समझाया था कि सजा सुनाये जाने के बाद अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के क्रम में ऐसी कोई टिप्पणी या प्रतिक्रिया नहीं दें जिससे न्यायालय के सम्मान पर कोई असर पड़े. ऐसे में लालू के बॉडी लैंग्वेज को लेकर उनके निराश होने का अंदाजा लगाना जल्दीबाजी होगी.

वह अक्तूबर 1990 का समय था. लालू सफेद कुर्ते में कई सारी पार्टियों की संयुक्त रैली में गांधी मैदान के मंच पर चढ़ते हैं. माइक संभालते ही लालू जिस अंदाज में लोगों को संबोधित करते हैं. वह बॉडी लैंग्वज उन दिनों बहुत कुछ कहता था. मंच से वह बोलते हैं. मैं इस मंच के माध्यम से पुनः श्री आडवाणी जी से अपील करना चाहता हूं, अपनी यात्रा को स्थगित कर दें. स्थगित करके वह दिल्ली वापस चले जाएं. देश हित में अगर इंसान ही नहीं रहेगा, इंसान ही नहीं रहेगा, तो मंदिर में घंटी कौन बजायेगा. कौन बजायेगा , जब इंसानियत पर खतरा हो. इंसान नहीं रहेगा, तो मस्जिद में इबादत कौन देने जायेगा.

लालू कहते आगे कहते हैं कि मैं 24 घंटा निगाह रखा हूं. हमने अपने शासन के तरफ से, अपने तरफ से पूरा उनकी सुरक्षा का भी व्यवस्था किया, लेकिन दूसरे तरफ सवाल है एक नेता और एक प्रधानमंत्री का जितना जान का कीमत है, उतना आम इंसान का भी जान का कीमत है. हम अपने राज में मतलब दंगा फसाद को फैलने नहीं देंगे. जहां, फैलाने का नाम लिया और बवेला खड़ा करने का नाम लिया. फिर हमारे साथ चाहे राज रहे, चाहे राज जाये, हम इस पर कोई समझौता करने वाले नहीं हैं.

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