पटनावासियों के पास जंगल की दो गज जमीन भी नहीं

शहर में है 45 लाख की आबादी पटना : पटना जिले वासियों के हिस्से में हरियाली (जंगल या वन )के नाम पर दो गज जमीन भी नसीब नहीं है. करीब 45 लाख की आबादी वाले पटना जिले के हिस्से में वन भूमि शून्य है. जहां भी पेड़-पौधे दिखायी दे रहे हैं, वह बिना वन भूमि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 4, 2018 9:05 AM
शहर में है 45 लाख की आबादी
पटना : पटना जिले वासियों के हिस्से में हरियाली (जंगल या वन )के नाम पर दो गज जमीन भी नसीब नहीं है. करीब 45 लाख की आबादी वाले पटना जिले के हिस्से में वन भूमि शून्य है.
जहां भी पेड़-पौधे दिखायी दे रहे हैं, वह बिना वन भूमि के ही लगे हुए हैं. यानी पटना जिले में आहर-पइन और सड़क का किनारा ही वृक्षारोपण का सहारा है. कुल जमीन में कम से कम 30 फीसदी जमीन वन भूमि होनी चाहिए. पूरे बिहार में महज छह फीसदी वन भूमि है. पटना जिले के हिस्से में एक फीसदी भी वन भूमि नहीं है. जबकि पटना जिले की आबादी 45 लाख है और जंगल के लिए एक धूर भी जमीन उपलब्ध नहीं है. हमारी सेहत के लिए यह स्थिति बेहद खतरनाक है और एक्सपर्ट कहते हैं कि लगातार कंक्रीट के खड़े होते जा रहे जंगल में आने वाली पीढ़ी भुगतान करने के लिए तैयार रहे.
आहर-पइन और सड़क के किनारे वृक्षारोपण का सहारा : वन भूमि नहीं होने का खामियाजा ना केवल आम लोग बल्कि वन विभाग भी भुगत रही है. वृक्षारोपण की तमाम योजनाओं के बावजूद पेड़ लगाने के लिए जमीन नहीं मिलती है. इसका विकल्प विभाग ने यह ढूंढा है कि आहर पईन और सड़क के किनारे वृक्षारोपण कर अपनी जिम्मेवारियों को पूरा कर रही है.
हमें शहर में पेड़ पौधों को ढूंढने के लिए सड़कों की खाक छाननी पड़ती है. वृक्ष लगाना तो हम सबका कर्तव्य भी है क्योंकि हमें ऑक्सीजन पेड़ों से ही मिलते हैं. इसे खरीदा नहीं जा सकता.
क्या कहते हैं वन प्रमंडल पदाधिकारी?
वन प्रमंडल पदाधिकारी सुधीर कुमार सिन्हा कहते हैं कि हमारे पास फॉरेस्ट लैंड नहीं होने के कारण हम परेशान होते हैं. हमें रोड का किनारा, नहर, बांध ढूंढना होता है. पटना में पेड़ों के अनुपात में बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण करने की आवश्यकता है लेकिन अफसोस जमीन हमें उपलब्ध नहीं है.
पर्यावरणविद अशोक घोष कहते हैं कि कुल जमीन पर कम से कम 30 फीसदी जंगल होने चाहिए लेकिन हमें वह नहीं उपलब्ध है. बिहार में छह फीसदी जंगल है और पटना में शून्य.
यह बहुत खतरनाक स्थिति है. हमें विकल्पों पर ध्यान देना होगा. गंगा के किनारे, दियारा में, नालों के किनारे, रेल पटरियों के किनारे स्पेस देखकर पेड़ लगाना होगा ताकि कुछ हिस्से में तो वृक्षारोपण का प्रतिशत बढ़े और लोगों को सांस लेने के लिए ताजा आक्सीजन मिले.

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