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इलाका राजधानी का, हालात गांव से भी बदतर

अनिकेत त्रिवेदी पटना : कहने को तो हम राजधानी क्षेत्र में आते हैं, लेकिन इनके हालात गांव से भी बदतर है. यहां न पेयजल के लिए पाइपलाइन का विस्तार किया गया है. न बिजली को लेकर स्थायी पोल व ट्रांसफाॅर्मर की सुविधा है. घरों से निकलनेवाले सीवरेज के पानी का कोई स्थायी विकल्प नहीं है. […]

अनिकेत त्रिवेदी
पटना : कहने को तो हम राजधानी क्षेत्र में आते हैं, लेकिन इनके हालात गांव से भी बदतर है. यहां न पेयजल के लिए पाइपलाइन का विस्तार किया गया है. न बिजली को लेकर स्थायी पोल व ट्रांसफाॅर्मर की सुविधा है. घरों से निकलनेवाले सीवरेज के पानी का कोई स्थायी विकल्प नहीं है.
बारिश के दिनों में सैकड़ों घर जलमग्न हो जाते हैं. आधे से अधिक इलाकों में पक्की सड़क का निर्माण नहीं हुआ है. अगर कोई भी सामान्य बाहरी आदमी इन इलाकों में जाता है, तो कभी नहीं कहेगा की यह किसी सूबे की राजधानी का इलाका हो सकता है.
जी हां, हम बात कर रहे हैं शहर के बाइपास यानी एनएएच-30 के दक्षिण में बसे उन दर्जनों मोहल्लों की, जहां लगभग दस हजार घरों में 50 हजार लोग बीते 15 वर्षों से यहां रह रहे हैं, मगर उनकी स्थिति आज भी किसी गांव से खराब है.
निगम को टैक्स देते है, लेकिन बुनियादी सुविधा नदारद : लगभग पूरी आबादी नगर निगम के टैक्स के दायरे में अाती है. रिपोर्ट के अनुसार 80 फीसदी लोगों ने होल्डिंग टैक्स के लिए अपनी संपत्ति का पीटीआर फाइल कर दिया है. मगर सिर्फ कुछ इलाकों में सड़क बनाने का काम किया गया है.
लोग बुनियादी सुविधाओं का अभाव वर्षों से झेल रहे हैं. बरसात के दिनों में जलजमाव इनका रास्ता रोक देता है, तो गर्मी में पानी की कमी हलक को सूखा देती है. नाले के साथ ड्रेनेज सिस्टम की सुविधा नहीं है. घरों से निकलनेवाला गंदा पानी सड़कों व आसपास के जमीनों में लगा रहता है.
– पाइपलाइन
बिछी नहीं, बांस पर जाता है बिजली का तार : मोहल्ले में निगम ने कभी पेयजल सप्लाई के लिए पाइपलाइन नहीं बिछाया. निगम की ओर से पानी की सप्लाई नहीं की जाती. इसके अलावा कहीं कोई बोरिंग नहीं है. लोग अपनी सुविधा से पानी लेते हैं. इसके अलावा लगभग 80 फीसदी इलाकों में बिजली का पोल नहीं है. लोग बांस के सहारे मेन रोड से अपने-अपने घरों में बिजली का तार ले जाते हैं. इसके कारण आये दिन तार टूट कर गिरता रहता है.
– बरसात में
चलती है नाव : बरसात के दिनों में ये इलाके जलमग्न हो जाते हैं. कुछ घरों में तो जाना मुश्किल हो जाता है. लोग अस्थायी नाव के सहारे अपने घरों तक जाते हैं. कहीं कोई ड्रेनेज सिस्टम नहीं हैं. बादशाही पइन में पानी जाने की सुविधा को भी रोक दिया गया है.
मास्टर प्लान 2031 के तीसरे फेज में होना है विकास
पटना के मास्टर प्लान 2031 में राजधानी के विकास
के लिए कुल पांच फेज क्षेत्रों को बांटा गया है. इसमें एक फेज का विकास पांच वर्ष में किया जाना है. बाइपास के दक्षिणी इलाकों को फेज तीन में रखा गया है. ऐसे में जब मास्टर प्लान के तहत काम शुरू होगा, तो दस वर्ष बाद इस इलाके का नंबर आयेगा. यानी सब कुछ हवा में है.
घर बनते रहे, प्रशासन देखता रहा
इन मोहल्लों को बसने के पीछे बड़ा सवाल यह है कि आखिर कृषि योग्य भूमि पर जब घर बन रहा था, तो निगम या जिला प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गयी. इसके अलावा अधिकांश छोटे घरों का निगम से नक्शा पास नहीं कराया गया है. बाइपास से सटे मुख्य सड़क पर लोगों ने दुकानें खोल रखी है, लेकिन नियमों को देखनेवाला कोई नहीं है.
नगर विकास व आवास विभाग की ओर से इन इलाकों में हर घर नल जल योजना के तहत सर्वे कर पाइपलाइन बिछाने की योजना है, लेकिन सर्वे नहीं हुआ. इसके अलावा निगम होल्डिंग टैक्स वसूलता है, मगर कोई योजना विकास की नहीं बनी है.

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