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दही के टीका लगाते ही रिश्ते में आयी थी खटास, जानें लालू परिवार के खट्टे अनुभव की दास्तां

पटना : कहते हैं सियासत में समय का बहुत महत्व होता है. समय ही सत्ता के साथ राजनीतिक समीकरण की धुरी तय करता है. कौन किसके साथ और कौन किसके हाथ. बिहार में मकर संक्रांति के मौके पर चूड़ा-दही के सामूहिक भोज के जरिये सियासत का होना आम बात है. ज्यादा दिन नहीं हुए जब […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 10, 2018 3:44 PM

पटना : कहते हैं सियासत में समय का बहुत महत्व होता है. समय ही सत्ता के साथ राजनीतिक समीकरण की धुरी तय करता है. कौन किसके साथ और कौन किसके हाथ. बिहार में मकर संक्रांति के मौके पर चूड़ा-दही के सामूहिक भोज के जरिये सियासत का होना आम बात है. ज्यादा दिन नहीं हुए जब पिछले साल महागठबंधन की सरकार थी और राबड़ी देवी के आवास पर चूड़ा-दही का भोज आयोजित हुआ था. स्वयं लालू की बड़ी बेटी मीसा भारती ने भोज के आयोजन की कमान संभाली थी. मिट्टी की हांडी में दही जमी थी और गया के तिलकुट से मेहमानों का स्वागत किया गया था.

इस वर्ष 10, सर्कुलर रोड स्थित पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के सरकारी आवास पर इस साल मकर संक्रांति के दिन चूड़ा-दही का भोज नहीं होगा. कहा, तो यह जा रहा है कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की बड़ी बहन गंगोत्री देवी के निधन के कारण चूड़ा-दही भोज को रद्द किया गया है. मगर कुछ नेताओं का कहना है कि बात यह नहीं है, बात है गत वर्ष के दही चूड़ा भोज के बाद निकला परिणाम. मकर संक्रांति के दिन 10, सर्कुलर रोड में राबड़ी देवी के आवास पर चूड़ा-दही का भोज चर्चित रहा है. काफी संख्या में नेता व कार्यकर्ता भोज में जुटते रहे हैं. भोज के दिन राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद खुद आनेवाले लोगों का स्वागत करने के साथ खिलाने के समय आग्रह करते रहे हैं.

उसके दूसरे दिन भी अल्पसंख्यकों के लिए भी चूड़ा-दही का भोज होता रहा है. परिवार की ओर से मिली जानकारी के अनुसार लालू प्रसाद के जेल में होने के कारण सदमे में उनकी बड़ी बहन गंगोत्री देवी का सात जनवरी को निधन हो गया. उनके निधन के कारण इस बार चूड़ा-दही का भोज रद्द किया गया है. लालू के आवास पर दो दिनों तक चहल पहल थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी भोज में शामिल होने पहुंचे थे. लालू यादव ने नीतीश कुमार और महागठबंधन को बुरी नजर से बचाने के लिए दही का तिलक लगाया था और दोनों गले मिले थे. उस वक्त किसी ने नहीं सोचा होगा कि दही का यह तिलक बाद में सियासी खटास के रूप में तब्दील हो जायेगा और गठबंधन पर ग्रहण लग जायेगी.

लालू ने नीतीश को तिलक लगाने के बाद कहा था कि भाजपा नीतीश के खिलाफ जितनी साजिश करेगी, उतना ही उसका नुकसान होगा और भाजपा को खटमल कहते हुए कहा था कि अब उसे बाहर निकालकर फेंक दिया जायेगा. महागठबंधन की सरकार बीस साल चलेगी. वक्त बदला और सियासी समीकरण बदल गये. दही का टिका काम नहीं आया. नीतीश और लालू की वह गले मिलती तस्वीर भी खूब देखी गयी थी. इस बार ऐसा कुछ नहीं है. राबड़ी आवास पर दही चूड़ा का भोज नहीं मनाया जायेगा. इस भोज को रद्द कर दिया गया है.

राबड़ी के आवास पर आयोजित भोज में शामिल होने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जदयू के आयोजित भोज में पहुंचे. वहां लालू यादव भी पहुंचे थे. यहां पहुंचकर लालू ने जदयू नेता वशिष्ठ नारायण सिंह को अपने हाथों से तिलकुट खिलाया. जदयू के भोज में कांग्रेस के नेता अशोक चौधरी भी पहुंचे और भाजपा नेता भी भोज में शामिल हो गये. जानकार कहते हैं, उसी भोज में राजनीतिक समीकरण ने करवट ली और सुशील मोदी ने कहा कि जदयू से हमारा रिश्ता 17 साल पुराना है. इतने सम्मान से बुलाया गया है, तो जरूर आऊंगा. उस वक्त लोगों ने कहा कि इस भोज का कोई राजनीतिक मतलब नहीं. फिर समय ने पलटी खाया और खटमल भाजपा नीतीश की पसंद साबित हुई और दोनों दलों ने हाथ मिलाकर दही के टीके को माथे से मिटा दिया.

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