पटना : बिहार के सबसे बड़े सियासी परिवार के मुखिया और राजद सुप्रीमो लालू यादव अपने राजनीतिक जीवन में आधा दर्जन बार जेल जा चुके हैं. इसमें आपातकाल से लेकर चारा घोटाले के दौरान जेल जाने की बात शामिल है. अभी हाल में उन्हें साढ़े तीन साल की सजा सुनाई गयी है. लालू रांची के बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा में बंद हैं. अन्य मामलों में लगातार पेशी हो रही है. सजा का एलान भी हो सकता है, लेकिन लालू के तेवर में कोई कमी नहीं देखी जा रही है. बुधवार को लालू ने कोर्ट में पेशी के दौरान मीडिया से बातचीत में हज सब्सिडी को लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोला और प्रवीण तोगड़िया के वर्तमान हालात पर भी तंज कसा. लालू के हावभाव और बयान देने के स्टाइल से, कहीं से यह नहीं लगा कि लालू को जेल जाने से कोई दिक्कत है, या उनके राजनीतिक ठसक में किसी तरह की कमी आयी है. लालू के इस एटीट्यूड को समझने के लिए चारा घोटाले और उसके वादी की राजनीति को समझना होगा.
चारा घोटाले की उम्र 22 साल से ऊपर की है. इस दौरान लालू और उनके परिवार ने कई उतार-चढ़ाव देखे. खासकर लालू फ्रंट फुट की राजनीति करते रहे और परिवार इस दौरान आगे नहीं आया. अब जबकि चारों ओर से बेनामी संपत्ति को लेकर उनके ऊपर जांच चल रही है, विरोधी हमलावर हैं, तब भी लालू जेल में रहते हुए बयानबाजी से बाज नहीं आ रहे हैं. जानकारों की मानें, तो आज की तारीख आम लोगों की रुचि चारा घोटाले में उतनी नहीं रही, खासकर लालू के वोटरों को तो और भी नहीं. जो लालू के वोटर हैं, उनके लिए लालू ने गड़बड़ी की, तो सत्ता से हटे. यही काफी है. वह मानते हैं कि दूसरे घोटाले के आरोपियों को ऐसी सजा, जिसमें भाजपा शामिल है, क्यों नहीं दिलायी गयी. दूसरी ओर बिहार की सियासत करने वाले अन्य नेताओं को मालूम है कि जिस जातीय समीकरण की राजनीति लालू करते हैं, उन्हें अपनी ओर मिला पाना आसान नहीं है. वह जब भी सपोर्ट करेंगे, तो लालू यादव को ही करेंगे.
राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने प्रभात खबर डॉट कॉम को फोन पर बातचीत में बताया कि लालू के राजनीतिक ठसक में रहने का कारण एक ऑडियोलॉजिकल कंडीशन है, जिस पर लालू आज तक कायम रहे हैं. सोशल जस्टिस और मंडल कमीशन के दौरान लालू ने जमीन पर संघर्ष किया और आरक्षण की जमीन पर राजनीति करने वालों को तगड़ा झटका दिया. उन्होंने कहा कि लोगों को लगता है कि लालू यादव का आधार यादव और मुस्लिम वोट रहा है, तो वह मुगालते में हैं. देश की वर्तमान राजनीति जिस दिशा में जा रही है, उसे देखते हुए दलित, महादलित और पिछड़े भी लालू के साथ जुड़ गये हैं. उन्होंने साफ कहा कि आम लोगों और गरीबों को यह साफ लगता है कि लालू यादव के साथ नाइंसाफी हो रही है. खासकर ग्रामीण इलाकों में लोग मानते हैं कि लालू यादव को जान बूझकर परेशान किया जा रहा है. यह सारी बातें लालू को सबलता प्रदान करती हैं. शिवानंद तिवारी कहते हैं कि यदि राजनीति में लालू गौण हैं, या फिर चारा घोटाले की वजह से उनके वजूद में कोई कमी आयी है, तो रोजाना विरोधी दल के राजनेता लालू का नाम क्यों जपते हैं.
जानकार मानते हैं कि बिहार में चारा घोटाला 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद कभी मुद्दा नहीं बना. घोटाले के बाद से लालू यादव के समर्थक आज भी यह मानने को तैयार नहीं है कि लालू यादव ने कुछ गलत किया है. उनसे, जब भी कोई बात करेगा, तो वह तर्क देते हुए मिल जायेंगी कि आय से अधिक संपत्ति का जो मामला था, उसमें लालू यादव बरी हुए. उसके बाद भाजपा ने राजनीतिक कारणों से बिहार समेत अन्य राज्यों में लालू के खिलाफ हवा बनाती रही. इसका उदाहरण है कि चारा घोटाले में शामिल आर के राणा के बेटे को भाजपा ने अपने दल में शामिल किया, जबकि, जगन्नाथ मिश्रा से न नीतीश कुमार ने परहेज किया और न ही भाजपा ने. यहां तक नीतीश मिश्रा बिहार की एनडीए सरकार में मंत्री भी रहे. यह राजनीतिक ठसक का ही परिणाम है कि लालू यादव ने जेल में रहते हुए भी भाजपा के ऊपर करारा हमला किया और जेल से बाहर रहते हुए भी वह केंद्र सरकार पर लगातार हमले करते रहे.
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