लालू की गैरमौजूदगी में RJD की बागडोर संभाल रहे तेजस्वी के सामने ये हैं चुनौतियां
पटना : चारा घोटाला मामले में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादवको सजा होने के बाद से वे रांची के होटवार स्थित बिरसा मुंडा जेल में सजा काट रहे हैं. इधर, उनकी गैरमौजूदगी में राजद की बागडोर उनके पुत्र और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को सौंप दी गयीहै. राजद का नेतृत्व कर रहे है […]
पटना : चारा घोटाला मामले में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादवको सजा होने के बाद से वे रांची के होटवार स्थित बिरसा मुंडा जेल में सजा काट रहे हैं. इधर, उनकी गैरमौजूदगी में राजद की बागडोर उनके पुत्र और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को सौंप दी गयीहै. राजद का नेतृत्व कर रहे है तेजस्वीयादव अपने संगठन को मजबूत करने की तैयारी में जुटे है. इसी क्रम में उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के आंतरिक कलह को खत्म करना माना जा रहा था, लेकिन जनरल सेक्रटरी अशोक सिन्हा के इस्तीफे के साथ उन्हें पहला झटका मिला है.
अपने इस्तीफे की वजह में अशोक सिन्हा ने साफ किया कि वह लालू की जगह पार्टी की कमान संभाल रहे तेजस्वी यादव की कार्यशैली से नाखुश हैं. ऐसे में साफ है कि राजद के अंदरखाने में उपजी कलह को खत्म करने के साथ ही तेजस्वी के सामने बिहार में पार्टी के परंपरागत वोट को भी साथ बनाये रखने की भी चुनौती है. उधर, चारा घोटाले में लालू प्रसाद के जेल जाने के बादराजद की सियासी अग्निपरीक्षा फरवरी में होनी है. अररिया लोकसभा सीट सहित दो विधानसभा सीटों जहानाबाद और भभुआ में उपचुनाव होने हैं. अररिया संसदीय सीट राजद सांसद मोहम्मद तस्लीमुद्दीन के निधन के कारण खाली हुई है. वहीं, जहानाबाद सीट राजद विधायक मुद्रिका सिंह यादव के निधन और भभुआ विधानसभा सीट भाजपा विधायक आनंद भूषण पांडेय के नवंबर में निधन होने से खाली है.
अररिया संसदीय सीट को बनाये रखनाराजद के लिए बड़ी चुनौती है. अररिया विधानसभा सीट से तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम अभी जदयू से विधायक हैं. राजद सरफराज को फिर से दल में लाने की कोशिश कर रही है और उन्हें ही इस सीट से लड़वाना चाहती है. वहीं, जदयू भी उन्हें अपने दल से ही टिकट दे सकती है.हालांकि पहले यह तय करना होगा कि यह सीट जदयूयाभाजपाके हिस्से रहेगी.
… तो लालू के हाथ से राजद अध्यक्ष का पद भी चला जायेगा
नयीदिल्ली: दागी नेताओं के पार्टी अध्यक्ष और पार्टी पदाधिकारी बनने पर रोक की मांग अगर सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर ली तो सजायाफ्ता होने के कारण चुनाव लड़ने के अयोग्य हो चुके राजदसुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के हाथ से पार्टी अध्यक्ष का पद भी चला जायेगा. ऐसा हुआ तो अयोग्यता के बावजूद राजनीति में सक्रिय लालू प्रसाद यादव का वास्तव में राजनैतिक सन्यास होना तय है. दरअसल, दागियों और सजायाफ्ताओं के पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर रोक के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में दो जनहित याचिकाएं लंबित हैं. एक में सजायाफ्ता के पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर रोक लगाने की मांग की गयी है और दूसरी में पांच साल की सजा के अपराध में अदालत से आरोप तय होने के बाद व्यक्ति को पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर रोक मांगी गयी है.
पहले मामले में कोर्ट ने गतएक दिसंबर को नोटिस जारी कर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था. इस पर अब 12 फरवरी को फिर सुनवाई होनी है. दूसरा मामला मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष विचाराधीन है. लालू प्रसाद के राजनैतिक भविष्य को संकट में डालने वाली ये दोनों ही याचिकाएं वकील और भाजपा नेता अश्वनी कुमार उपाध्याय की हैं. दोनों ही मामले लालू प्रसाद के खिलाफ जाते हैं. उन्हें तीन मामलों में सजा हो चुकी है और दो मामलों में आरोप तय होने के बाद ट्रायल चल रहा है.
क्याकहता हैं जनप्रतिनिधि कानून
चारा घोटाला के तीसरे मामले में पांच साल की सजा होने से लालू प्रसाद का चुनाव मैदान में उतर कर सक्रिय राजनीति करने का ख्वाब और दूर की कौड़ी हो गया है. उनका राजनैतिक वनवास लंबा हो गया है. तीन मामलों में उन्हें पांच साल, साढे तीन साल और बुधवार को फिर पांच साल की सजा हुई है. जनप्रतिनिधि कानून कहता है कि कोई भी व्यक्ति सजा काटने के छह साल बाद तक अयोग्य रहेगा.