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बिहार : सीवान में मिले बौद्धकालीन संस्कृतियों के अवशेष, पुरातत्व विभाग 22 जनवरी से करा रहा खुदाई

जीरादेई प्रखंड के तितरा टोले बंगरा में पुरातत्व विभाग 22 जनवरी से करा रहा खुदाई जीरादेई : सीवान जिले के जीरादेई प्रखंड के तितरा टोले बंगरा में पुरातत्व विभाग की खुदाई के दौरान प्राचाीन अवशेष प्राप्त हुए हैं. पुरातात्विक विभाग की मानें तो जितनी भी वस्तुएं मिली हैं, वे सभी बौद्धकालीन हैं. इस स्थल से […]

जीरादेई प्रखंड के तितरा टोले बंगरा में पुरातत्व विभाग 22 जनवरी से करा रहा खुदाई
जीरादेई : सीवान जिले के जीरादेई प्रखंड के तितरा टोले बंगरा में पुरातत्व विभाग की खुदाई के दौरान प्राचाीन अवशेष प्राप्त हुए हैं. पुरातात्विक विभाग की मानें तो जितनी भी वस्तुएं मिली हैं, वे सभी बौद्धकालीन हैं.
इस स्थल से अभी तक भवनावशेष, धूसर मृदभांड, एनबीपीडब्ल्यू (नॉदर्न ब्लैक पॉलिस वेयर) और कुषाणकालीन टेराकोटा (मिट्टी का पकाया हुआ) की बुद्ध की आकृति जैसी खंडित प्रतिमाएं, धूपदानी, खिलौने व हिरन की प्रतिमा मिली है. 22 जनवरी से भारतीय पुरातत्व विभाग पटना अंचल की ओर से सहायक पुरातात्विक शंकर शर्मा के नेतृत्व में तितरा स्थित बाणीगढ़ का उत्खनन किया जा रहा है. अभी तक मिश्रित संस्कृतियों के पुरातात्विक अवशेष मिल रहे हैं, जो काफी प्राचीन प्रतीत होते है.
सोमवार को एनबीपीडब्ल्यू के अवशेष मिले जो बौद्धकालीन बताये जाते हैं. साथ ही कुछ पक्की ईंटें मिली हैं, जो काफी प्राचीन है. टेराकोटा से निर्मित दर्जनों अवशेष प्राप्त हुए हैं, जो कुषाण कालीन बताये जाते हैं. गढ़ से पश्चिम सतह से मिला धूसर मृदभांड (ग्रे वेयर) लगभग 3000 वर्ष पुराना बताया जा रहा है.
होय के यात्रा वृतांत में िवशेष उल्लेख
सीवान के बारे में अंग्रेज पुरातत्ववेदा डब्ल्यू होय ने अपने यात्रा वृतांत में विशेष उल्लेख किया है. उन्होंने जीरादेई प्रखंड के राजस्व गांव तितरा टोले बंगरा में स्थित विशाल बौद्धस्तुपनुमा टीला को तितरा स्तूप बताया है.
उन्होंने लिखा है कि इसी स्तूप के नाम पर तितरा गांव का नाम पड़ा है. केपी जायसवाल शोध संस्थान, पटना के पूर्व निदेशक डॉ जगदीश्वर पांडेय ने अपने अभिलेख में लिखा है कि तितरा गांव के आसपास एक बहुत बड़ा स्तूप है, जो तितर स्तूप के नाम से जाना जाता है. यह चीनी यात्री ह्वेनसांग द्वारा वर्णित तितर स्तूप प्रतीत होता है, जिसके निकट महात्मा बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था. गढ़ से उत्तर दिशा में स्थित तालाब के पूर्वी किनारे पर प्राचीन भवनावशेष मिला है. उन्होंने बताया कि पक्की ईंटों से निर्मित फर्श युक्त दीवार संरचनाओं की ईंटों का आकार 37 सेंटीमीटर लंबा, 22 सेंटीमीटर चौड़ा और 5.5 सेंटीमीटर मोटा है. दीवाल की चौड़ाई 60 सेंटीमीटर है.
बौद्ध साहित्य में िजक्र
शोधार्थी व प्राचीन कुसिनारा के लेखक कृष्ण कुमार सिंह ने बताया कि त्रिपिटक, बौद्ध साहित्य तथा चीनी तीर्थ यात्रियों फाहियान, ह्वेनसांग, इतिसांग, ताइसांग के यात्रा वृतांत में वर्णित अधिकतर चीजें तितरा के आसपास उपलब्ध हैं. उन्होंने बताया कि बुद्ध की अंतिम यात्रा में पावा से कुसनारा जाने के दौरान दो नदी ककुथा व हिरनवती मिली थी, जो सीवान में मौजूद हैं.
इनका आधुनिक नाम दाहा व सोना नदी है. त्रिपिटक में वर्णित है कि भगवान बुद्ध का निर्वाण हिरनवती नदी के पश्चिमी किनारे मलों के सालवन में हुआ था. सालवन का मतलब बगवान होता है.
इसी का अपभ्रंश बंगरा है. सहायक पुरातत्व वेदा शंकर शर्मा ने बताया कि अब तक के उत्खनन में जो अवशेष प्राप्त हुए हैं, वे मिश्रित संस्कृतियों के हैं. अब तक तीन मीटर से अधिक खुदाई हुई है. इसके अंदर जो अवशेष प्राप्त हो रहे हैं, वह पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व से पांचवीं सदी के बीच की हो सकते हैं.

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