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CM नीतीश की विधायी सदस्यता को अयोग्य ठहराने का मामला : सुनवाई टली, 19 मार्च को होगी अंतिम सुनवाई

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विधायी सदस्यता को अयोग्य घोषित करने के लिए जनहित याचिका की सुनवाई टाल दी है. अब इस जनहित याचिका पर अंतिम सुनवाई 19 मार्च को की जायेगी. मालूम हो कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अयोग्य करार देनेवाली याचिका एमएल शर्मा ने दाखिल की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 12, 2018 1:23 PM

नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विधायी सदस्यता को अयोग्य घोषित करने के लिए जनहित याचिका की सुनवाई टाल दी है. अब इस जनहित याचिका पर अंतिम सुनवाई 19 मार्च को की जायेगी. मालूम हो कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अयोग्य करार देनेवाली याचिका एमएल शर्मा ने दाखिल की है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग से हलफनामा दाखिल करने को कहा था. चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि जनहित याचिका सुनवाई के योग्य नहीं है. इसे खारिज किया जाना चाहिए. याचिका में गलत तथ्य होने की भी बात कही थी. साथ ही कहा था कि अदालत में दाखिल याचिका गुमराह करनेवाली है. चुनाव आयोग ने स्पष्ट करते हुए कहा कि नीतीश कुमार ने वर्ष 2012 और 2015 में विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा था. वहीं, 2013 में भी बिहार विधानपरिषद का चुनाव नहीं लड़ा. इसके बावजूद याचिकाकर्ता ने नीतीश कुमार के चुनावी हलफनामे हासिल किये.

वहीं, याचिकाकर्ता अधिवक्ता एमएल शर्मा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विधायी सदस्यता को अयोग्य करार देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर कहा है कि 2004 से 2015 के दौरान नीतीश कुमार ने हलफनामे में खुलासा नहीं किया है कि उन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. मालूम हो कि वर्ष 1991 में दर्ज एक हत्या की प्राथमिकी में नीतीश कुमार का भी नाम है. जनहित याचिका में दावा किया गया है कि नीतीश कुमार ने अपने हलफनामे में हत्या का मामला दर्ज किये जाने का जिक्र नहीं किया है. इसलिए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद के लिए अयोग्य ठहराया जाना चाहिए. साथ ही मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग भी की गयी है. याचिका में कहा गया है कि नीतीश कुमार ने 2004 और 2015 के बीच अपने हलफनामों में हत्या मामले में प्राथमिकी दर्ज किये जाने का मुख्यमंत्री ने खुलासा नहीं किया है. इसलिए उन्हें संवैधानिक पद के लिए अयोग्य ठहराया जाना चाहिए.

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