सिस्टम पर सवाल, दो दशक बाद भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है BIHAR का ‘नीरव मोदी’
II डॉ विष्णुदत्त द्विवेदी II बक्सर : आजकल पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी)में करीब 11500 करोड़ के घोटाले के कारण देश का बैंकिंग सिस्टम एक बार फिर सवालों के घेरे में हैं. पीएनबी की मुंबई शाखा से जुड़े इस घोटाले को अंजाम देनेवाले देश के प्रमुख हीरा कारोबारी नीरव मोदी प्राथमिकी दर्ज होने के पहले ही […]
II डॉ विष्णुदत्त द्विवेदी II
बक्सर : आजकल पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी)में करीब 11500 करोड़ के घोटाले के कारण देश का बैंकिंग सिस्टम एक बार फिर सवालों के घेरे में हैं. पीएनबी की मुंबई शाखा से जुड़े इस घोटाले को अंजाम देनेवाले देश के प्रमुख हीरा कारोबारी नीरव मोदी प्राथमिकी दर्ज होने के पहले ही परिवार समेत देश से भाग गये.
इसी तरह आज से 23 साल पहले 1995 में पीएनबी की डुमरांव शाखा में भी करोड़ों की घपलेबाजी को अंजाम दिया गया था. घपला करनेवाला कोई और नहीं, बल्कि बैंक का विशेष सहायक लाल बहादुर सिंह उर्फ लालजी सिंह था. इस घपलेबाजी से उजागर होते ही वह फरार हो गया. पुलिस उसे आज तक नहीं पकड़ पायी है. कई ग्राहकों की जीवन भर की गाढ़ी कमाई अचानक डूब गयी. उस समय बैंक में धोखाधड़ी के मामले बहुत कम हुआ करते थे.
मैनुअल बैंकिंग के कारण साइबर क्राइम बिल्कुल नहीं था. प्रखंड से हालिया अनुमंडल बने डुमरांव वास्तव में एक कस्बे के समान था. ऐसे में करोड़ों की घपलेबाजी न सिर्फ उपभोक्ताओं के लिए वज्र के समान थी, बल्कि बैंकिंग व्यवस्था को भी जड़ से हिला दिया था.
ये रहे पीड़ित : पुराना थाना निवासी दीनानाथ राम ने लालटेन फैक्टरी से रिटायर होने के बाद अपना सारा पैसा पीएनबी में जमा किया था, जो आज तक नहीं मिला. वहीं डुमरांव की रजई मिश्रा गली निवासी शंभुनाथ सिंह भी बैंक कर्मी के धोखाधड़ी के शिकार हुए. दवा दुकानदार सुदर्शन सिंह व उनकी पत्नी सुशीला देवी का भी पैसा बैंक में जमा होते हुए लेजर बुक पर नहीं चढ़ा और उनका पैसा लेकर लालजी सिंह फरार हो गया.
दो दशक बाद भी पुलिस की गिरफ्त से है बाहर
िरटायर्ड इंजीनियर िनकासी को गये तो हुआ खुलासा
नटवरलाल के नाम से मशहूर लालजी अपने पूरे कार्यकाल के दौरान एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली थी. डुमरांव के ही रहनेवाले रिटायर्ड इंजीनियर सरजू प्रसाद ने अपने रिटायरमेंट से मिले लाखों रुपये पीएनबी में जमा किये थे. जमा करने के तीसरे ही दिन उन्हें पैसे की जरूरत पड़ी, तो वे फिक्स डिपोजिट के कागजात के साथ बैंक पहुंच गये. उस वक्त लालजी बैंक में मौजूद नहीं था. इसके बाद उन्होंने प्रबंधक को कागजात देकर भुगतान की मांग की.
जब बैंक की लेजर बुक को भुगतान के लिए लाया गया तो प्रबंधक के होश उड़ गये, क्योंकि खाते में एक भी पैसा जमा नहीं किया गया था. इसके बाद बैंक घपले की सूचना जंगल में आग की तरह फैल गयी. भनक लगते ही लालजी भारी सूटकेस के साथ डुमरांव से फरार हो गया.
राशि लेकर कागजात देता था, पर लेजर बुक में नहीं करता था इंट्री
पीएनबी की डुमरांव शाखा में विशेष सहायक के पद पर यूपी के जौनपुर जिले के रहनेवाले लाल बहादुर सिंह उर्फ लालजी सिंह कार्यरत था. मेडिकल सर्टिफिकेट के आधार पर लालजी ने दो दशक से अधिक का समय एक ही शाखा में गुजारने के बाद भी अपना तबादला नहीं होने दिया था.
बैंक अधिकारियों द्वारा रोटेशन ऑफ स्टाफ भी नहीं किया गया, जिसका फायदा उठाकर एक ही काउंटर पर वर्षों-वर्षों तक काबिज रहा. छोटा शहर और बैंकों की गिनी-चुनी शाखाओं के चलते स्थानीय लोगों में लालजी की पहुंच बहुत अच्छी हुआ करती थी. इस बीच वह लोगों के पैसों को लेकर अपने जेबों में भरता चला गया, लोगों को वह असली कागजात उपलब्ध करा देता था, लेकिन लेजर बुक में उसकी इंट्री नहीं करता था.
अब तक पुलिस पकड़ से बाहर है लालजी
करोड़ों रुपये के घपलेबाज लालजी सिंह के खिलाफ तत्कालीन शाखा प्रबंधक महेश्वरी प्रसाद सिंह ने डुमरांव थाने में कांड संख्या 150/1995 दर्ज कराया. दर्ज प्राथमिकी में बैंक ने पुलिस को बताया कि बैंक अधिकारी होने का नाजायज फायदा उठाकर लालजी सिंह ने भोले-भाले उपभोक्ताओं के पैसों के साथ-साथ बैंक का करोड़ों रुपये गबन कर फरार हो गया है.
इतना बड़ा घपलेबाजी के बाद भी पुलिस कछुए की चाल से चलती रही. कई कमजोर उपभोक्ता न्याय की आस में चल बसे. वहीं दर्जनों उपभोक्ताओं ने न्यायालय में लंबी लड़ाई लड़ी, जिसके बाद उन्हें न्याय मिला. पुलिस ने 30 नवंबर, 2013 को लालजी सिंह के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर खानापूर्ति कर ली, लेकिन बिहार के समीपवर्ती यूपी के जौनपुर जिले का रहनेवाला लालजी अब भी पुलिस की पकड़ से बाहर है.