भाजपा-जदयू गठबंधन के लिए परीक्षा है बिहार उपचुनाव

नयी दिल्ली : बिहार में लोकसभा की एक और विधानसभा की दो सीटों के लिए 11 मार्च को होने वाला उपचुनाव भाजपा-जदयू गठबंधन के लिए पहली चुनावी परीक्षा होगी. जेल में बंद राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने अगले आम चुनाव से पहले अपनी पार्टी की ताकत का प्रदर्शन करने के लिए इसे प्रतिष्ठा की लड़ाई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 24, 2018 5:34 PM

नयी दिल्ली : बिहार में लोकसभा की एक और विधानसभा की दो सीटों के लिए 11 मार्च को होने वाला उपचुनाव भाजपा-जदयू गठबंधन के लिए पहली चुनावी परीक्षा होगी. जेल में बंद राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने अगले आम चुनाव से पहले अपनी पार्टी की ताकत का प्रदर्शन करने के लिए इसे प्रतिष्ठा की लड़ाई में बदल दिया है.

क्या कहते हैं चुनाव विश्लेषक
चुनाव विश्लेषकों का कहना है कि इनमें से दो सीटें-अररिया संसदीय सीट और जहानाबाद विधानसभा सीट खासतौर पर महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वहां राजद का तथाकथित मुस्लिम-यादव (एमवाई) गणित मजबूत है. लेकिन, जदयू और भाजपा के मतदाताओं के पारंपरिक रूप से साथ आने से उनके उम्मीदवारों को लाभ मिल सकता है. दोनों सीटें राजद के खाते में थीं और मोहम्मद तस्लीमुद्दीन (2014 में अररिया से लोकसभा चुनाव जीतने वाले नेता) तथा जहानाबाद के विधायक मुंद्रिका यादव के निधन से उपचुनाव की जरूरत पड़ी.

अररिया : मोदी लहर के बावजूद तस्लीमुद्दीन जीते थे चुनाव
2014 में भाजपा से दूरी बनाने के बाद जदयू ने अकेले लोकसभा चुनाव लड़ा था और मोदी लहर होने के बावजूद तस्लीमुद्दीन चुनाव जीतने में सफल रहे थे. उन्हें 41 प्रतिशत वोट मिले थे और भाजपा एवं जदयू का मत प्रतिशत जोड़ा जाए तो वह 50 प्रतिशत था. अररिया लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता कुल मतदाताओं के 41 प्रतिशत से ज्यादा हैं और जदयू के अपने पाले में आने के बाद भाजपा हिंदू मतों के लामबंद होने की उम्मीद कर रही है. राजग सूत्रों ने कहा कि 2004 और 2009 के चुनावों में जब जदयू राजग का हिस्सा था, सीट पर भाजपा उम्मीदवारों को जीत मिली थी. 2009 में चुनाव जीतने वाले भाजपा उम्मीदवार प्रदीप कुमार सिंह दोबारा चुनाव मैदान में हैं और राजद के उम्मीदवार सरफराज आलम से भिड़ेंगे. आलम तस्लीमुद्दीन के बेटे हैं.

जहानाबाद में यादव, भूमिहार सबसे बड़े जाति समूह
जहानाबाद में यादव और भूमिहार सबसे बड़े जाति समूह हैं और आमतौर पर वे विरोधी दलों का समर्थन करते रहे हैं. दलित राजद या जदयू किसी के भी पक्ष में संतुलन झुका सकते हैं. 2010 में जदयू ने राजग का हिस्सा रहते हुए यहां से जीत हासिल की थी और उसके उम्मीदवार की जीत नीतीश के लिए मनोबल बढ़ाने वाली होगी.

भभुआ : भाजपा को सफलता की उम्मीद
भाजपा ने तत्कालीन राजद-जदयू-कांग्रेस महागठबंधन के पक्ष में जनसमर्थन के बीच 2015 में भभुआ विधानसभा सीट पर जीत हासिल की थी और उसे पूरा यकीन है कि वह विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के साथ मुकाबले में सीट बरकरार रखने में सफल होगी.

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