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जीतन राम मांझी का एनडीए छोड़ना क्यों बिहार में नये राजनीतिक समीकरण बनने की शुरुआत है?

बिहार के महादलित नेता व पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गंठबंधन को छोड़ने का एलान कर दिया. जीतन राम मांझी स्वयं बिहार में कोई बहुत बड़ी राजनीतिक ताकत नहीं हैं, लेकिन किसी के साथ उनकी मौजूदगी दलितों को लुभाने के […]

बिहार के महादलित नेता व पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गंठबंधन को छोड़ने का एलान कर दिया. जीतन राम मांझी स्वयं बिहार में कोई बहुत बड़ी राजनीतिक ताकत नहीं हैं, लेकिन किसी के साथ उनकी मौजूदगी दलितों को लुभाने के लिए प्रतिकात्मक मायने रखती है. जीतन राम मांझी का राजनीतिक उदय तब हुआ जब 2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश कुमार ने उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया. एक जमाने में बिहार कांग्रेस की धुरी रहे पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र द्वारा राजनीति में स्थापितकियेगये जीतन राम मांझी नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड में थे और मगध क्षेत्र से आने वाले एक महादलित चेहराहैं.


मांझी अबतक अपने राजनीतिक सहयोगियों के लिए कितने लाभप्रद रहे?

नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति व गवर्नेंस में सोशल इंजीनियरिंग का एक ऐसा प्रयोग किया, जो उनसे पहले इस रूप में किसी नेता ने नहीं किया था. जीतन राम मांझी का मुख्यमंत्री बनाया जाना नीतीश की सोशल इंजीनियरिंग की ही एक कड़ी थी, जिसके माध्यम से उन्होंने जहां हार के बाद उच्च नैतिक मानदंडों का प्रदर्शन किया, वहीं महादलितों को यह संदेश दिया किनसिर्फगवर्नेंसववेलफेयर की योजनाओं में बल्कि उनके वर्ग कोराज्य के शीर्ष पद पर पहुंचाने का निर्णय भी वहीं ले सकते हैं.

हालांकि शीर्ष पद पर बैठने के बाद जीतन राम मांझी के नीतीश कुमार से मतभेद उभर आये और उन्होंने नीतीश पर कई आरोप लगाये, जिन पर जदयू नेता या तो चुप रहे या फिर शालीन जवाब दिया. बाद के दिनों में जीतन राम मांझी अलग हो गये और मोदी लहर में एनडीए का हिस्सा बन गये, लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से बहुत मनुहार करवाया, लेकिन चुनाव परिणाम में वे अपने इस मनुहार को परिवर्तित नहीं कर सके और दो जगह से लड़े लेकिन अपनी हिंदुस्तान अवाम मोर्चा में सिर्फ स्वयं जीत सके. बिहार चुनाव के दौरान ही नीतीश कुमार ने अपने एक टीवी इंटरव्यू मेंपत्रकारकेसवाल पर माना था कि उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी भूल जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लेना था.

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एनडीए के अन्य दूसरे पार्टनर क्या करेंगे?

बिहार में राजनीतिक परिस्थितियां 2017 के शुरुआत में बदलने लगी. लालू प्रसाद के परिवार के राजनीति में सक्रिय सदस्यों पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगे और अंतत: तेजस्वी यादव के मुद्दे पर नीतीश कुमार ने राजद से नाता तोड़ लिया और भाजपा से फिर गठजोड़ कर लिया. बाद में नीतीश कुमार औपचारिक रूप से एनडीए में शामिल हो गये. एनडीए में नीतीश कुमार की मौजूदगी बिहार में उसके दूसरे सहयोगियों के लिए बेचैन करने वाली स्थिति थी. क्योंकि बीते दो दशक में बिहार की राजनीति में नीतीश-भाजपा का गठजोड़ एक ऐसी राजनीतिक किलेबंदी साबित होता रहा है, जिसे भेद पाना दूसरे प्रतिद्वंद्वियों के लिए लगभग असंभव-सा हो जाता है. जाहिर है, यह स्थिति एनडीए के दूसरे नेताओं के आभा मंडल व प्रभाव को कमजोर बनाती है.

महज एक साल बाद लोकसभा चुनाव होना है. बिहार में 40 सीटें हैं. एनडीए में भाजपा, जदयू के अलावा लोजपा, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और हिंदुस्तान अवाम मोर्चा जैसे दल अबतक शामिल थे. ऐसे में दो बड़े पार्टनर के बाद इनके हिस्से कितनी सीटें आएंगी इस सवाल पर भी लंबे समय से विमर्श चल रहा था. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा संकेतों में नीतीश कुमार सरकार पर सवाल उठाते रहे हैं, पिछले दिनों उन्होंने शिक्षा व्यवस्था पर बिहार में एक मानव चेन बनायी थी, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल के बड़े नेताशिवानंदतिवारी शामिल हुए थे, तेजस्वी व कांग्रेस ने उसके प्रति शुभेच्छा जतायी थी, वहीं असली राजनीतिक पार्टनर भाजपा-जदयू ने दूरी बनाये रखी. इससे यह संदेश भी गया कि कुशवाहा की राजद व यूपीए से नजदीकी आने वाले दिनों में और बढ़ सकती है जो चुनाव आते-आते नया स्वरूप ले ले.राजदनेता राबड़ी देवीने आज भी कहा है कि रालोसपा भी उनके संपर्क में है. वहीं, एनडीए के एक और पार्टनर लोजपा प्रमुख रामविलास पासवानके नीतीश कुमार से हाल के महीनों में नजदीकियां बढ़ने के कई मौकों पर संकेत मिले हैंऔर यह नजदीकी आने वाले दिनों में किसी बड़ी राजनीतिक पहल का कारण भी बन सकती है.


क्या मांझी राजनीतिक प्रासंगिकता साबित करने को बेचैन थे?

सत्ताधारी गंठबंधन में जीतन राम मांझी ने अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता साबित करने के लिए बीते दिनों एनडीए पर दबाव बनाया कि वे उन्हें राज्यसभा की सीट दे दें, तभी बिहार उपचुनाव में उनके पक्ष में प्रचार करेंगे. लेकिन, ऐसा होता नहीं दिखा तो वे राजद की ओर चल दिये. एनडीए छोड़ने के पीछे सम्मान नहीं मिलने को कारण बताया जा रहा है. सूत्रों के हवाले से खबर यह है कि राजद उन्हें राज्यसभा में भेज सकता है और खुद कोमहादलितों काशुभचिंतक बता सकता है. इस अहम राजनीतिक फेरबदल के बीच भाजपा नेता व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने दिल्ली में संगठन मंत्री से भेंट की है.

राजद ने राज्यसभा सीट के लिए पहले खुले तौर पर बसपा सुप्रीमाे मायावती को पेशकश की थी, जिसे वे ठुकरा चुकी हैं. बिहार में मौजूदा स्थिति में महादलित समुदाय का विश्वास नीतीश कुमार को ही हासिल है. इसके पीछे उनकी सरकार द्वारा इस वर्ग के लिए चलायी गयी कई सामाजिक कल्याणकारी योजनाएं अहम कारण हैं. अब लालू प्रसाद यादव व तेजस्वी यादव जीतन राम मांझी के बहाने नीतीश कुमार के इस आधार पर कब्जे की कोशिश कर रहे हैं और यह वक्त बताएगा कि वे इसमें कितने सफल होंगे.

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