बिहार : अशोक चौधरी के दाव से बिगड़ेगा कांग्रेस का राज्यसभा चुनाव का गणित, एनडीए को फायदा

पटना : बिहार की राजनीति में होली की छुट्टियों से पहले बुधवार को बड़ा उलट-फेर हुआ.पूर्व सीएम व हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी जहां एनडीए छोड़ राजद के साथ चले गये, वहीं पूर्व बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी ने अपने समर्थक एमएलसी के साथ कांग्रेस छोड़ने का एलान कर दिया और नीतीश […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 1, 2018 11:26 AM

पटना : बिहार की राजनीति में होली की छुट्टियों से पहले बुधवार को बड़ा उलट-फेर हुआ.पूर्व सीएम व हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी जहां एनडीए छोड़ राजद के साथ चले गये, वहीं पूर्व बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी ने अपने समर्थक एमएलसी के साथ कांग्रेस छोड़ने का एलान कर दिया और नीतीश कुमार को अपना आदर्श बताते हुए जनता दल यूनाइटेड में जाने का एलान कर दिया. उन्होंने बुधवार रात कांग्रेस छोड़ने का एलान करते समय प्रभारी महासचिव सीपी जोशी की निंदा की और कांग्रेस को बर्बाद करने का आरोप लगाया. हालांकि उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पार्टी छोड़ते समय भी प्रशंसा की. अशोक चौधरी अभी एमएलसी हैं और उनके साथ दिलीप कुमार चौधरी, तनवीर अख्तर, रामचंद्र बैठा ने भी कांग्रेस छोड़ी है.

अशोक चौधरी के इस एलान का सबसे बड़ा असर राज्यसभा चुनाव पर पड़ेगा. बिहार में छह सीटों पर राज्यसभा चुनाव की प्रक्रिया इसी महीने शुरू होनी है. विधानसभा में दलों की ताकत के अनुसार, यह माना जा रहा था कि छह में दो-दो सीट जदयू व राजद को मिलेगी और एक-एक सीट भाजपा व कांग्रेस की झोली में जायेगी. यानी सत्ता पक्ष तीन सीटें और विपक्ष भी तीन सीटें हासिल कर लेगा. लेकिन, कांग्रेस के 27 विधायकों में कई अशोक चौधरी के समर्थक हैं. ये ऐसे विधायक हैं जिन्हें 2015 के विधानसभा चुनाव में अशोक चौधरी ने टिकट दिलवाया था. ऐसे में ये आने वाले दिनों में जदयू का दामन अपने नेता के निर्देश पर थाम सकते हैं.


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हालांकि यह कहना अभी मुश्किल है कि कांग्रेस के कितने विधायक अशोक चौधरी के साथ जायेंगे, लेकिन उनके खेमे का संकेत है कि ऐसे विधायकों की संख्या 16 तक हो सकती है. हालांकि दल-बदल कानून के तहत भी एक तिहाई यानी कम से कम नौ विधायकों की इसके लिए जरूरत पड़ेगी और असंतुष्ट गुट का संकेत है तो इतने तो कम से कम हर हाल में हैं ही.

बिहार में राज्यसभा की एक सीट हासिल करने के लिए मोटे तौर पर 35 विधायकों का समर्थन चाहिए. राजद के पास 80 विधायक हैं और ऐसे में यह संभावना बनती है कि राजद के अतिरिक्त विधायकों के समर्थन से कांग्रेस राज्यसभा की एक सीट जीत जाएगी. लेकिन, कांग्रेस में टूट होने पर पार्टी के अपने किसी नेता को राज्यसभा भेजने के मंसूबे पर पानी फिर जाएगा. ऐसे में जदयू-भाजपा गठजोड़ राज्य में चार सीटें जीत सकता है. जदयू के पास 40 विधायक हैं. भाजपा के पास 52 विधायक हैं. ऐसे में जदयू-भाजपा गंठबंधन के लिए अशोक चौधरी के नेतृत्व वाले कांग्रेस के असंतुष्ट गुट के समर्थन से राज्यसभा की चार सीटें जीतना आसान हो सकता है.

अशोक चौधरी नीतीश की अगुुवाई वाले सरकार में शिक्षा मंत्री थे और वे हमेशा नीतीश कुमार की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते रहे हैं. जब राजद और नीतीश में खटपट चल रही थी तब भी वे नीतीश के साथ खड़े नजर आते थे, जब नीतीश एनडीए में शामिल हो गये तब भी वे कई मौकों पर नीतीश का बचाव करते दिखे. अशाेक चौधरी का नीतीश के प्रति नरम रुख राष्ट्रीय जनता दल को पसंद नहीं आता था. यही कारण था का नीतीश के महागंठबंधन जोड़ने के बाद अशोक चौधरी की स्थिति कांग्रेस में कमजोर हुई और उन्हें न सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया बल्कि राजनीति रूप से भी हाशिये पर धकेल दिया गया.

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