बिहार में मौसम की मार : कड़ाके की ठंड से मक्का हुआ ‘बांझ’, नहीं हो सकी जर्मीनेशन, फर्टिलाइजेशन की पूरी प्रक्रिया
ग्लोबल वार्मिंग के साथ अब दो शब्द रीजनल-कूलिंग और रीजनल-हीटिंग खासतौर पर खेती व आदर्श पर्यावरणीय दशाओं के लिए घातक बन गये हैं. कृषि अर्थव्यवस्था वाले बिहार राज्य की की खेती इन दिनों रीजनल कूलिंग और हीटिंग के खतरों से जूझ रही है. रीजनल कूलिंग का इसे असर ही कहा जा रहा है कि कई […]
ग्लोबल वार्मिंग के साथ अब दो शब्द रीजनल-कूलिंग और रीजनल-हीटिंग खासतौर पर खेती व आदर्श पर्यावरणीय दशाओं के लिए घातक बन गये हैं. कृषि अर्थव्यवस्था वाले बिहार राज्य की की खेती इन दिनों रीजनल कूलिंग और हीटिंग के खतरों से जूझ रही है. रीजनल कूलिंग का इसे असर ही कहा जा रहा है कि कई इलाकों में मक्के की फसल में दाने नहीं पड़े.
जबकि ग्लोबल हीटिंग का कहर इसी साल खरीफ सीजन में धान पर पड़ा था. इन विपरित पर्यावरणीय दशाओं के अलावा खेती के समक्ष बड़ा संकट बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरफ से भी है. सरकारी एजेंसियां चुप्पी साधे हुए हैं. अनुसंधान नयी चुनौतियों से निबटने में सक्षम नहीं दिख रहे. प्रभात खबर खेती पर छाये इन संकटों को सिलसिलेवार प्रकाशित करने जा रहा है, जिसकी पहली पेशकश हालिया मक्के की फसल में दाने न पड़ने से जुड़ी है.
क्लाइमेट चेंज की गिरफ्त में बिहार की खेती
राजदेव पाण्डेय
पटना : क्लाइमेट चेंजिंग ने बिहार को अपनी गिरफ्त में ले लिया है. ग्लोबल वार्मिंग के साथ रीजनल इन्वायरमेंटल कूलिंग ने खास तौर पर खेती को प्रभावित किया है.
इस साल न केवल मक्का बल्कि गेहूं और धान की फसलों में समुचित दाने नहीं अा सके हैं. इससे किसानों को आर्थिक तौर पर काफी नुकसान होने की आशंका है. मोकामा, दानापुर समेत कई क्षेत्रों से मक्कों में दाने नहीं आने की शिकायतें आने लगी हैं.
निषेचन की क्रिया नहीं सकी पूरी विशेषज्ञों की मानें तो कुछ खास समयावधि के दौरान इस साल तापमान सामान्य से काफी कम हो गया था.
यहां तक कि तापमान अभूतपूर्व ढंग से तीन से पांच डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा था जिसके चलते मक्के में जर्मीनेशन, फर्टिलाइजेशन (निषेचन) की क्रिया पूरी नहीं हो सकी और बीज नहीं बन सके. दूसरे शब्दों में कहें तो परागण के लिए जिम्मेदार पॉलिन (पराग) ब्रस्ट (फैल ) नहीं हो सके. ये क्रियाएं ही फसलो में दाने बनने के लिए जरूरी होती हैं.
सरकारी मशीनरी सकते में : फसलों में हुए इस नुकसान को लेकर फिलहाल बिहार की सरकारी मशीनरी प्रदेश के कुछ इलाकों में मक्के की फसल में दाने न आने (एक तरह से बांझपन ) से सकते में है. कृषि विज्ञानियों की टीम खेतों का दौरा कर रही है.
अक्तूबर से नवंबर तक हुई बोअनी की फसल अधिक प्रभावित
कृषि विज्ञानियाें का प्रारंभिक अध्ययन और इसी तरह के पिछले घटनाक्रमों का आकलन बताते हैं कि केवल उन्हीं इलाकों की मक्के की फसल प्रभावित हुई है जिनकी बोवनी अक्तूबर के अंतिम सप्ताह से लेकर नवंबर के प्रथम सप्ताह में हुई है. बिहार में इस साल सर्दी उसी समय चरम पर रही जब इस दरम्यान बोई गयी फसलों में फ्लाॅवरिंग और निषेचन की क्रियाएं होती हैं.
अत्यधिक ठंड के चलते न प्रकाश संश्लेषण हुआ और न पौधों में निषेचन क्रिया हो सकी. लिहाजा मक्के के दाने सेट नहीं हो सके और फसल बांझ हो गयी. सच्चाई यह है कि क्लाइमेट चेंजिंग का असर केवल मक्के पर ही नहीं पड़ा है, बल्कि इसकी जद में गेहूं और धान की फसलें भी आयी हैं. हालांकि इसको लेकर किसान अभी मुखर नहीं हैं. बता दें कि खासतौर पर मक्के में बीज न आने की सूचना मोकामा, दानापुर, समस्तीपुर आदि जिलों से आ रही हैं.
मक्के की बाली में नहीं आये दाने की होगी जांच
दानापुर : प्रखंड कृषि पदाधिकारी वीरेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि दियारे के दिलीपचक व रघुनाथ टोला में लगे 40 एकड़ मक्के की फसल में दाना नहीं आने की जांच की जायेगी.
श्री सिंह ने बताया कि आगामी सोमवार को जांच टीम दियारे के दिलीपचक व रघुनाथ टोला में भेज कर मक्के की फसल की जांच करायी जायेगी. उन्होंने बताया कि जांच में मक्के की फसल में दाना नहीं आने की पुष्टि होने के बाद रिपोर्ट विभाग को भेजी जायेगी. उन्होंने बताया कि किसानों को उचित मुआवजा विभाग द्वारा दिया जायेगा. श्री सिंह ने बताया कि बीज दुकानदार पर भी कार्रवाई की जायेगी.
खेती पर असर चिंता की बात
ये सही है कि कई इलाकों में मक्के की फसल में दाने नहीं बने हैं. इसकी वजह क्लाइमेट चेंजिंग है. क्लाइमेट चेंजिंग की जद में बिहार अब आ गया है.
वर्ष 2002 और इसके आसपास के सालों में कूलिंग के चलते निषेचन न हो पाने के कुछ लक्षण आये थे, लेकिन अब ये घटनाक्रम कुछ ज्यादा होने लगा है. ये चिंता की बात है. फिलहाल किसानों को चाहिए कि कृषि विज्ञानियों के बताये गए समय में ही बीज बोयें. मौसम के वैज्ञानिक भविष्यवाणियों पर नजर रखें. फिलहाल इस साल अत्यधिक ठंड के चलते फसलों में निषेचन की प्रक्रिया नहीं हो सकी है.
– डॉ मृत्युंजय कुमार चीफ साइंटिस्ट मक्का, डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पटना