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महागठबंधन और एनडीए के लिए जीत-हार के मायने, क्या पड़ेगा असर

पटना : बिहार में अररिया लोकसभा सीट के साथ-साथ जहानाबाद और भभुआ विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में जीत-हार का असर महागठबंधन और एनडीए दोनों पर पड़ेगा. एक ओर जहां राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के जेल में रहने के कारण उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव का भविष्य तय होगा, वहीं दूसरी ओर वर्ष […]

पटना : बिहार में अररिया लोकसभा सीट के साथ-साथ जहानाबाद और भभुआ विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में जीत-हार का असर महागठबंधन और एनडीए दोनों पर पड़ेगा. एक ओर जहां राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के जेल में रहने के कारण उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव का भविष्य तय होगा, वहीं दूसरी ओर वर्ष 2019 में होनेवाले आम चुनाव को लेकर फॉमूले पर बहस छिड़ेगी.

महागठबंधन के प्रत्याशी अगर उप चुनाव में जीत हासिल करते हैं, तो राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बिना जीत दर्ज किये जाने से पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ले के साथ तेजस्वी यादव का भी पार्टी में कद तो बढ़ेगा ही, उनका भविष्य भी तय होगा. वहीं, मोदी लहर को रोकने का फॉमूला भी विपक्ष को मिलेगा. बिहार में राजद में पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के आने से मुस्लिम, यादव और दलित के फॉर्मूले का मुहर भी लगेगी. लेकिन, उपचुनाव में विपक्ष के प्रत्याशियों की हार होने पर महागठबंधन को 2019 में होनेवाले आम चुनाव के लिए नया फॉर्मूला खोजना होगा. साथ ही यह भी कहा जायेगा कि अब भी मोदी लहर बरकरार है. मोदी लहर को रोकना अभी मुश्किल है. वहीं, विपक्ष के लिए लालू प्रसाद यादव का जेल में रहना भी कारण बताया जायेगा और तेजस्वी यादव के भविष्य को लेकर भी सवाल उठने शुरू हो जायेंगे.

वहीं, भाजपा गठबंधन के प्रत्याशियों के जीतने पर केंद्र की भाजपा के साथ बिहार सरकार बनाने के हुए विकास कार्यों पर मुहर लग जायेगी. साथ ही बिहार में एनडीए मजबूत होगी. बिहार में नीतीश कुमार का भी कद बढ़ने के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दोस्ती पर मुहर भी लगेगी. वर्ष 2019 में होनेवाले आमचुनाव के लिए पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ेगा. अगर, उपचुनाव में एनडीए नेताओं को हार का सामना करना पड़ता है, तो बिहार में विकास के दावे पर भी सवाल उठने शुरू हो जायेंगे. विपक्ष बालू समेत अन्य कई मुद्दों को लकर और हमलावर होगा. एनडीए में मतभेद भी उभर सकता है. वहीं, केंद्र और बिहार सरकार के कामकाज पर भी सवाल उठेंगे. साथ ही 2019 में होनेवाले आमचुनाव के लिए नयी रणनीति बनानी होगी और नेताओं-कार्यकर्ताओं को कड़ी मेहनत करनी होगी.

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