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जानें चारा घोटाला RC 38A/96 की पूरी कहानी, कैसे और कहां दुरूपयोग किया गया था घोटाले के पैसों को

रुपयों से भरे सूटकेस के साथ दिवाकर सीएम आवास गये व खाली हाथ आये चारा घोटाले में दुमका ट्रेजरी से फर्जी निकासी मामले में सीबीआइ ने दो प्राथमिकी दर्ज की है. आरसी 38ए/96 सिर्फ दो महीने की निकासी से जुड़ा है. दुमका ट्रेजरी से जुड़े मामले में सीबीआइ ने तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त एसएन दूबे को […]

रुपयों से भरे सूटकेस के साथ दिवाकर सीएम आवास गये व खाली हाथ आये
चारा घोटाले में दुमका ट्रेजरी से फर्जी निकासी मामले में सीबीआइ ने दो प्राथमिकी दर्ज की है. आरसी 38ए/96 सिर्फ दो महीने की निकासी से जुड़ा है. दुमका ट्रेजरी से जुड़े मामले में सीबीआइ ने तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त एसएन दूबे को अभियुक्त बनाया था. क्योंकि उन्होंने डीसी के उस आदेश को बदल दिया था जिसमें डीसी ने पशुपालन विभाग के एक लाख से अधिक के बिल की निकासी पर रोक लगा दी थी.
इस बात के मद्देनजर सीबीआइ ने प्रमंडलीय आयुक्त को अभियुक्त बनाया था. पर हाइकोर्ट में उन्हें इस मामले से डिस्चार्ज कर दिया. हाइकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सीबीआइ अपील करना चाहती थी, पर मुख्यालय ने अनुमति नहीं दी.
पशुपालन विभाग के क्षेत्रीय निदेशक ओपी दिवाकर रुपयों के भरा सूटकेस लेकर लालू प्रसाद के आवास में गये. थोड़ी देर बाद वह खाली हाथ लौटे.
दुमका के प्रमंडलीय आयुक्त को फर्जी निकासी में से पांच प्रतिशत का भुगतान किया जाता था. क्षेत्रीय निदेशक के कार्यालय में स्टाफ वेरिफिकेशन ऑफिसर के पद पर पदस्थापित डॉक्टर सईद ने बतौर एप्रुवर अदालत को दिये गये अपने बयान में इस बात की उल्लेख किया है.
डॉक्टर सईद ने अपने बयान में कहा है कि 22 जनवरी 1996 को क्षेत्रीय निदेशक ओपी दिवाकर ने उसे पटना स्थित अपने आवास पर बुलाया. उनके आवास पर पहुंचने पर सईद ने देखा की ओपी दिवाकर काफी परेशान हैं.
पूछने पर बताया कि वित्त सचिव वीएस दूबे ने पशुपालन विभाग की फर्जी निकासी का मामला पकड़ लिया है. उन्होंने रांची महालेखाकार कार्यालय से निकासी से संबंधित विस्तृत ब्योरा भी मंगा लिया है. लालू प्रसाद के करीबी आरके राणा ने दिवाकर प्रसाद के मिलने के लिए लालू प्रसाद से समय लिया है. लालू प्रसाद को पैसा देना होगा.
इतना बताने के बाद दिवाकर ने उसे अपने बेड रूम में बुलाया और यह देखने के लिए कहा कि कमरे में रखे गये सूटकेस में 20 लाख रुपये हैं या नहीं. सईद ने सूटकेस की जांच के बाद दिवाकर को बताया कि सूटकेस में 20 लाख रुपये हैं. इसके बाद दिवाकर अपने कार में सूटकेस के साथ उसे लेकर लालू प्रसाद के सरकारी आवास पर पहुंचे. गेट पर पहुंचने के बाद गेट पर तैनात जवान ने दिवाकर से उसकी पहचान बताने के कहा. दिवाकर ने गार्ड को बताया कि वे लोग आरके राणा के आदमी हैं.
इतना सुनने के बाद गार्ड ने दिवाकर को अंदर जाने की इजाजत दे दी. वह रुपये से भरा सूटकेस लेकर आवास के अंदर चले गये. जबकि सईद कोरिडोर में खड़ा रहा. थोड़ी देर बाद दिवाकर खाली हाथ वापस लौटे. इसके बाद दिवाकर ने सईद को बताया कि लालू प्रसाद को रुपयों से भरा सूटकेस दे दिया गया. उन्होंने दुमका ट्रेजरी से हुई निकासी की जांच के मामले में टालमटोल करने का आश्वासन दिया है.
सईद ने अपने बयान में कहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव 1995 के समय ओपी दिवाकर को बुलाया. राणा ने दिवाकर से कहा कि उसे गोपालपुर विधानसभा के लिए टिकट मिला है. इसलिए दिवाकर उसे चुनाव खर्च के लिए रुपये दे. इसके बाद दिवाकर सूटकेस में 10 लाख रुपये लेकर उसके साथ राणा के घर गये थे. दिवाकर ने उसके सामने ही राणा को रुपयों से भरा सूटकेस दिया. राणा ने उसके सामने ही दिवाकर से और पैसों की मांग की.
दिवाकर ने कहा कि चुनाव के दौरान उसे 30 लाख रुपये खर्च करना होगा. सईद ने मंत्री चंद्र देव प्रसाद वर्मा के मामले का उल्लेख करते हुए अपने बयान में कहा है कि मंत्री ने ओपी दिवाकर को दुमका के अलावा भागलपुर और पूर्णिया के क्षेत्रीय निदेशक का अतिरिक्त प्रभार दिया था. इसके आलावा गोड्डा, भागलपुर और कटिहार के जिला पशुपालन पदाधिकारी का भी प्रभार दिया था. इसके बदले में दिवाकर ने मंत्री को रुपये दिये.
दिवाकर ने सईद को अपने घर पर बुलाया था और सात लाख रुपये गिनने को कहा. सईद ने रुपये गिनने के बाद उसे सूटकेस में रखा. इसके बाद दिवाकर रुपयों से भरे से सूटकेस के साथ सईद को लेकर मंत्री के कंकड़बाग स्थित आवास पर गये. दिवाकर ने उसके सामने ही मंत्री को रुपयों से भरा सूटकेस दिया.
मंत्री ने चुनाव खर्च के नाम पर दिवाकर से और पैसों की मांग की. इसके बाद मंत्री को चुनाव खर्च के लिए और आठ लाख रुपये दिये गये. सईद ने अपने बयान में कहा कि चुनाव के वक्त नेताओं पर 1.5 करोड़ रुपये खर्च किये गये. लोक लेखा समिति के अध्यक्ष जगदीश शर्मा पैसों के लिए दिवाकर को हमेशा अपने घर पर बुलाया करते थे.
सईद ने अपने बयान में तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त को निकासी की गयी राशि का पांच प्रतिशत कमीशन के तौर पर दिये जाने का उल्लेख किया है.
उसने अपने बयान में कहा है कि प्रमंडलीय आयुक्त एसएन दूबे ने दुमका ट्रेजरी का इंस्पेक्शन किया. इस क्रम में उन्होंने 29़ 9़ 1992 से 1993-94 तक की अवधि में की गयी निकासी का विस्तृत ब्योरा मांगा. इससे तत्कालीन क्षेत्रीय निदेशक शेष मुनिराम काफी परेशान हुए. हालांकि बाद मे उसने सईद को यह जानकारी दी कि प्रमंडलीय आयुक्त से बात हो गयी है. प्रमंडलीय आयुक्त को निकासी की गयी राशि का पांच प्रतिशत देना होगा. इससे जितना चाहे उतने कि निकासी कि जा सकेगी.
मई 1994 में प्रमंडलीय आयुक्त ने एक आदेश जारी किया. इसमें ट्रेजरी ऑफिसर को यह निर्देश दिया गया कि वह पशुपालन विभाग के पांच लाख और उससे अधिक के बिल को पास करे. शेष मुनि राम ने अपने तबादले के बाद प्रमंडलीय आयुक्त से नये क्षेत्रीय निदेशक ओपी दिवाकर का परिचय कराया. सईद ने अपने बयान में कहा कि ओपी दिवाकर अपने अधीनस्थ अधिकारियों से फर्जी आपूर्ति का रसीद लेते थे.
श्याम बिहारी सिन्हा अपने करीबी महेंद्र प्रसाद के माध्यम से आवंटन आदेश भेजते थे. दिवाकर के कार्यकाल में बिना सप्लाइ के ही दुमका ट्रेजरी से पैसों की निकासी की गयी. सिर्फ 20 लाख रुपये की सामग्रियों की आपूर्ति की गयी थी. बाकी निकासी फर्जी आपूर्ति के आधार पर की गयी थी. दिवाकर उसके पास से सारे रजिस्टर लोक लेखा समिति को देने का नाम पर ले लिया करते थे.
मंत्री को उपहार में मिला मोबाइल फोन जेल से बरामद हुआ था
बिहार के तत्कालीन मंत्री को उपहार में मिला उषा मोबाइल फोन बेऊर जेल से विधायक आरके राणा के पास से बरामद किया गया था. पटना जिला प्रशासन द्वारा 17 जून 1997 को बेऊर जेल में की गयी छापेमारी के दौरान मोबाइल फोन नंबर 9834001749 बरामद किया गया था. इस फोन से आरके राणा ने मुख्यमंत्री आवास में लगे फोन नंबर और लालू प्रसाद के पीए के फोन पर लगातार बात की थी.
मामले की जांच में पाया गया कि उषा फोन के एक वरीय अधिकारी ने मोबाइल फोन नंबर 9834001749 बिहार के एक मंत्री को उपहार में दिया था. यह फोन जेल में आरके राणा के पास से बरामद किया गया था. उस समय आरके राणा चारा घोटाले के एक मामले में जेल में थे. जेल से बरामद इस फोन से किये गये कॉल की जांच की गयी. इसमें यह पाया गया कि जेल से बरामद फोन से फोन नंबर 222079,224387,223394 ओर 224129 पर लगातार बात हुई थी. सभी फोन बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के आवास पर लगे थे. मोबाइल नंबर 8934000112 से आरके राणा के पास जेल में मिले फोन पर कॉल किया गया था. जिस मोबाइल से आरके राणा के पास मिले मोबाइल पर कॉल किया गया था वह लालू प्रसाद के पीए का था. इससे यह पता चलता है कि जेल में रहने के दौरान भी आरके राणा और लालू प्रसाद का संपर्क बना हुआ था.
लोक लेखा समिति के पूर्व अध्यक्ष ने घोटालेबाजों से कार ली थी
मिले सबूत : सीबीआइ ने जांच के बाद दायर आरोप पत्र में भी इसका उल्लेख किया है
वित्त विभाग द्वारा शुरू की गयी जांच को रोकने के लिए ध्रुव भगत ने दो पत्र लिखा था. उस समय वह लोक लेखा समिति के अध्यक्ष थे. घोटालेबाजों ने उन्हें एक एंबेसेडर कार दी थी. साथ ही उनकी हवाई यात्राओं और होटल में ठहरने का खर्च उठाया था. चारा घोटाले के कांड संख्या आरसी 38ए /96 की जांच के दौरान सीबीआइ के इससे संबंधित सबूत मिले. सीबीआइ ने जांच के बाद दायर आरोप पत्र में भी इसका उल्लेख किया है.
सीबीआइ ने चारा घोटाले की जांच के दौरान पाया कि अगस्त 1995 में वीएस दूबे वित्त सचिव बने. इसके बाद उन्होंने जांच के लिए पशुपालन विभाग द्वारा अक्तूबर 1995 से दिसंबर 1995 तक की अवधि में की गयी निकासी का ब्योरा मंगाया था. इस बात की जानकारी मिलने के बाद लोक लेखा समिति के अध्यक्ष ध्रुव भगत ने 20 जनवरी 1996 को वित्त सचिव को एक पत्र लिखा. वित्त सचिव को संबोधित पत्र में भगत ने लिखा कि समिति को इस बात की सूचना मिली है कि वित्त विभाग पशुपालन विभाग द्वारा की गयी निकासी की जांच कर रहा है.
लोक लेखा समिति भी इस मामले की जांच कर रही है. इसलिए वित्त विभाग निकासी से संबंधित मंगाये गये सभी मूल दस्तावेज लोक लेखा समिति के हवाले कर दे. जब लोक लेखा समिति किसी मामले की जांच कर रही हो तो एेसी स्थिति में उसी मामले की जांच किसी दूसरी एजेंसी या संस्था द्वारा करना समिति के अवमानना का मामला बनता है.
वित्त विभाग को पत्र लिखने के दूसरे ही दिन ध्रुव भगत ने दूसरा पत्र तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को लिखा. इसमें लालू प्रसाद से वित्त विभाग द्वारा की जा रही जांच को रोकने के लिए सुनिश्चित करने और वित्त विभाग द्वारा जुटाये दस्तावेज को समिति के हवाले सुनिश्चित कराने का अनुरोध किया गया.
साथ ही यह भी लिखा कि मुख्यमंत्री यह भी सुनिश्चित करें कि जब तक इस मामले में लोक लेखा समिति अपनी रिपोर्ट नहीं सौंप देती है तब तक कोई दूसरी एजेंसी पशुपालन विभाग की निकासी के मामले की जांच नहीं करें. जांच में यह पाया गया कि ध्रुव भगत ने घोटाले के किंग पिन श्याम बिहारी सिन्हा से एंबेसडर कार ली थी. इसे सप्लायर राकेश मेहरा के कर्मचारी नरेश जैन के नाम पर खरीदा गया था.
इस कार का इस्तेमाल घ्रुव भगत किया करते थे. बाद में इस कार को प्रमोद कुमार भगत के नाम पर हस्तांतरित कर दिया था. प्रमोद, ध्रुव भगत के ही गांव का रहनेवाला और उनका करीबी था. नरेश जैन के नाम पर खरीदी गयी कार को अपने नाम करने के बदले प्रमोद भगत ने किसी तरह का भुगतान नहीं किया था. प्रमोद ने अपने आयकर रिटर्न में कार का उल्लेख नहीं किया है. कार सर्विसिंग कराने से संबंधित कागजात में ध्रुव भगत का फोन नंबर लिखा था.
मंत्रियों व अफसरों ने घोटाले के पैसों से हवाई यात्रा का उठाया लुत्फ
लालू प्रसाद सहित पशुपालन विभाग के तत्कालीन मंत्रियों व अफसरों ने घोटाले के पैसों से हवाई यात्राएं की. कुछ नेताओं और अफसरों के पारिवारिक सदस्यों ने भी घोटाले के पैसों से हवाई यात्रा का मजा लिया. घोटालेबाजों को संरक्षण देने के बदले नेताओं और अफसरों व उनके पारिवारिक सदस्यों को यह सुविधा उपलब्ध करायी गयी थी.
चारा घोटाले की जांच के दौरान सीबीआइ को इसके सबूत मिले थे.जांच में पाया गया था कि था प्रमंडलीय आयुक्त के पद पर पदस्थापित रहने के दौरान आइएएस अधिकारी एमसी सुबर्नो ने घोटालेबाजों को संरक्षण दिया था. उन्होंने महालेखाकार की उस रिपोर्ट पर पर्दा डाल दिया था जिसमें स्कूटर, मोटरसाइकिल, जीप, कार का इस्तेमाल कर पशु चारा और सांड ढोये जाने का उल्लेख किया गया था.
इस प्रकरण में तत्कालीन उप महालेखाकार पीएस अय्यर ने वित्तीय वर्ष 1985-86 से 1988-89 तक की अवधि का ऑडिट करने के बाद प्रमंडलीय आयुक्त को ऑडिट रिपोर्ट भेजी थी. पांच अप्रैल 1990 को भेजी गयी उस ऑडिट रिपोर्ट में स्कूटरों पर गाय और सांढ़ को ढ़ोये जाने का विस्तृत ब्योरा पेश करते हुए मामले की उच्च स्तरीय जांच कराने की अनुशंसा की गयी थी. अगर प्रमंडलीय आयुक्त ने मामले की जांच करायी होती तो पशुपालन घोटाले से उसी वक्त पर्दा उठ गया होता.
पर उन्होंने महालेखाकार की उस रिपोर्ट पर चुप्पी साध ली. इसके बदले घोटालेबाजों ने उन्हें सुविधाएं उपलब्ध करायी. घोटालेबाजों ने उनकी हवाई यात्राओं का खर्च उठाया और बड़े बड़े होटलों में ठहरने की व्यवस्था थी.
उनकी हवाई यात्राओं और होटलों के खर्च की भुगतान सप्लायर आरके वर्मा ने किया.सुबर्नो के लिए सप्लायर दयानंद कश्यप ने भी हवाई टिकटों की व्यवस्था की.जांच में पाया गया था कि रांची के तत्कालीन आयकर आयुक्त एसी चौधरी ने भी घोटालेबाजों को संरक्षण दिया. उन्होंने घोटाले के किंगपिन श्याम बिहारी सिन्हा के इशारे पर घोटाले के जुड़े लोगों की मदद की. इस क्रम में उन्होंने श्याम बिहारी सिन्हा और उसकी पत्नी के असेसमेंट रिकाॅर्ड को कोलकाता स्थानांतरित करने का आदेश दिया.
हालांकि, घोटाले का पर्दाफाश हो जाने की वजह से फाइलें कोलकाता नहीं भेजी जा सकी.इस अधिकारी ने घोटाले के जुड़े अधिकारियों और सप्लायरों के असेसमेंट के दौरान गलत और तथ्यहीन ब्योरे को स्वीकार कर घोटालेबाजों को संरक्षण दिया. इसके बदले में घोटालेबाजों ने चौधरी और उनके पारिवारिक सदस्यों की यात्रा और होटल का खर्च उठाया. वह सप्लायर एके वर्मा के लगातार संपर्क में रहे.
जांच में पाया गया था कि लालू प्रसाद और उनके पारिवारिक सदस्यों ने भी घोटालेबाजों के पैसों से हवाई यात्राएं की थी. श्याम बिहारी सिन्हा के बेटे और जेपी वर्मा की पत्नी के फर्म के माध्यम से लालू और उनके पारिवारिक सदस्यों के लिए हवाई यात्रा की टिकटों की व्यवस्था की गयी थी. लालू व उनके पारिवारिक सदस्यों के लिए अक्तूबर 1995 में 44 हजार रुपये की एयर टिकट खरीदे गये थे.
घोटालेबाजों ने डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र के लिए भी हवाई टिकटों की व्यवस्था और घोटाले के पैसों से उसका भुगतान किया. डॉक्टर मिश्र ने श्याम बिहारी सिन्हा की बहू के घर में अपने विशेष कोटे से टेलीफोन लगाने के लिए चिट्ठी लिखी. श्याम बिहारी सिन्हा के अवधि विस्तार के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को अनुशंसा पत्र लिखा. इसमें श्याम बिहारी सिन्हा को कर्मठ अधिकारी बताया. उनके इस काम के बदले श्याम बिहारी सिन्हा ने पहले उन्हें पांच लाख रुपये दिये. बाद में सप्लायर एमएस बेदी ने 1995 में डॉक्टर मिश्र को 50 लाख रुपये दिये.
इसके बाद सप्लायर गणेश दुबे ने 25 लाख रुपये दिये. जांच में यह भी पाया गया कि श्याम बिहारी सिन्हा ने संरक्षण देने के बदले तत्कालीन मंत्री विद्या सागर निषाद के 50 हजार और भोला राम तूफानी को 30 हजार रुपये दिये. तत्कालीन क्षेत्रीय निदेशक ओपी दिवाकर ने तत्कालीन मंत्री चंद्र देव प्रसाद वर्मा को लाखों रुपये दिये. यह रकम दिवाकर को दुमका का अतिरिक्त प्रभार देने के बदले दिया गया था. घोटालेबाजों ने इन मंत्रियों के लिए भी हवाई टिकटों की व्यवस्था की और होटल में रखने और खाने का खर्च उठाया.
जगदीश शर्मा व आरके राणा और ‌उनके पारिवारिक सदस्यों ने भी घोटालेबाजों को संरक्षण देने के बदले पैसे लिये. साथ ही घोटाले के पैसों से हवाई यात्रा की लुत्फ उठाया. जांच में पाया गया कि फूल चंद सिंह ने घोटालेबाजों से 15 लाख रुपये लिये थे. घोटालेबाजों को संरक्षण देने के लिए महेश प्रसाद और बेक जूलियस ने भी अनुचित लाभ लिये. घोटालेबाजों ने वर्ष 1995-96 में बेक जुलियस के लिए 55 हजार रुपये की हवाई टिकटें खरीदी थी.
जिन लोगों ने घोटाले के पैसों से हवाई यात्राएं की
1. लालू प्रसाद, तत्कालीन मुख्यमंत्री
2. एससी सुबर्नो ,तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त
3. एसी चौधरी, तत्कालीन आयकर आयुक्त
4. बेक जूलियस, तत्कालीन पशुपालन सचिव
5. महेश प्रसाद वर्मा,तत्कालीन पशुपालन सचिव
6. आरके राणा, तत्कालीन विधायक
7. विद्यासागर निषाद, तत्कालीन मंत्री
8. चंद्र देव प्रसाद वर्मा, तत्कालीन मंत्री
9. जगदीश शर्मा, अध्यक्ष लोक लेखा समिति

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