विश्व गौरैया दिवस पर विशेष : संरक्षण के बाद भी कम हो रही गौरैया की संख्या
बढ़ती जागरूकता का भी नहीं दिख रहा असर पटना : गौरैया की घटती संख्या पटना व प्रदेश के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय है. पिछले 15-20 वर्षों में इनकी संख्या में काफी कमी आयी है. पटना जैसे बड़े शहरों में तो यह घट कर 25 फीसदी से भी कम […]
बढ़ती जागरूकता का भी नहीं दिख रहा असर
पटना : गौरैया की घटती संख्या पटना व प्रदेश के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय है. पिछले 15-20 वर्षों में इनकी संख्या में काफी कमी आयी है. पटना जैसे बड़े शहरों में तो यह घट कर 25 फीसदी से भी कम रह गयी है, ग्रामीण क्षेत्रों में भी 50 फीसदी तक की गिरावट आयी है.
इनको विलुप्त होने से बचाने के लिए 9 जनवरी, 2013 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे बिहार का राजकीय पक्षी घोषित किया. तब से हर वर्ष गौरैया दिवस पर वन विभाग की ओर से छोटे बड़े कार्यक्रम आयोजित कियेजाते रहे हैं और लोगों को गोरैया संरक्षण के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया जाता रहा है. लेकिन अफसोस है कि संरक्षण की जितनी बातें हो रहीं, उतनी ही तेजी से गोरैया कम हो रहे हैं.
खटालों के घटने का भी पड़ा विपरीत असर
खटालों के आसपास गोरैया अधिक संख्या में दिखते थे क्योंकि गाय, भैंस जैसे मवेशी के गोबर में विद्यमान अनाज के दाने उनके प्रिय भोजन हैं. लेकिन पटना में खटालों की संख्या घटने से गोरैया के लिए ऐसी सुविधा भी खत्म हो गयी.
पैक्ड अनाज के इस्तेमाल से घट गये भोजन के स्रोत
अनाजों यथा चावल, गेहूं आदि को पानी में धोकर पीसने से पहले सुखाने के लिए रखा जाता था. पानी में फूले हुए ऐसे दाने गोरैया के पसंदीदा भोजन थे. इसी तरह दाल के फटकन वे खाते थे. लेकिन पैक्ड अनाजों के इस्तेमाल से ये स्रोत भी खत्म हो गये जो भी गोरैया के लिए घातक साबित हो रही है.
पेस्टीसाइड बनी बड़ी वजह कमजोर पड़ गये अंडे के शेल
पेस्टीसाइड गौरैया की संख्या घटने की दूसरी सबसे बड़ी वजह है. अनाजों में रहनेवाले कीट और पिल्लू गौरैया का प्रमुख भोजन हैं.
व्यस्क गौरैया तो अनाज के दाने खाता है, लेकिन उसके बच्चे कड़ा होने की वजह से अनाज के दाने नहीं हजम कर पाते . ऐसे में पिल्लू और कीट ही उनके प्रमुख भोजन हैं जो प्रोटीन का बड़ा स्रोत होने की वजह से उनकी सेहत के लिए भी ये बहुत फायदेमंद होता हैं. लेकिन अनाजों में पेस्टीसाइड का इस्तेमाल बढ़ने से उनमें रहने वाले कीट और पिल्लू मर जाते हैं.
ऐसे में उनके भोजन का एक प्रमुख स्रोत खत्म होता जा रहा है. साथ ही, पेस्टीसाइड मिश्रित अनाज के दाने खाने की वजह से गोरैया के शरीर में भी हानिकारक रसायन का जमाव होने लगा है. इसके प्रभाव से उसके अंडों का शेल कमजोर पड़ने लगा है जिससे सेने के क्रम में ही वे टूटने लगती है और जन्म लेने से पहले ही बच्चा मर जाता है.
नयी शैली के मकानों में छप्पर न रोशनदान
दिन व दिन घटती हैबिटैट गौरैया के कम होने की सबसे बड़ी वजह है. पुरानी शैली के मकान गौरैया के लिए उपयुक्त होते थे क्योंकि उनके खपरैल छप्पर और रोशनदान में वे आसानी से अपना घोंसला लगा सकते हैं.
15-20 वर्ष पहले तक पटना में भी ऐसे मकान बड़ी संख्या में मौजूद थे, जिसके आसपास गौरैया दिख जाते थे. लेकिन अब ऐसे ज्यादातर मकानों को तोड़कर उसकी जगह अपार्टमेंट और बहुमंजिली मार्केट कांप्लेक्स बना दिये गये हैं. जो छोटे भवन बन रहे हैं उनका डिजाइन भी ऐसा है कि न तो छतों पर घोंसला लगाया जा सकता है.
गौरैया को बढ़ाने के लिए अपने घरों में डब्बों से बनाया हुआ नेस्ट बॉक्स लगायें. सिर्फ इतना ध्यान रखें कि नेस्ट बॉक्स का मुंह उतना ही खुला हो, जितने में मुश्किल से केवल गौरैया जा सके और बड़े पक्षी चाहकर भी प्रवेश नहीं कर सके.
डॉ समीर कुमार सिन्हा , उपनिदेशक, वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया गौरैया संरक्षण एक बड़ा मसला है जो पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण से जुड़ा हुआ है. एकांगी उपायों से इसे संरक्षित नहीं किया जा सकता है बल्कि इसके लिए पेड़ पौधे, वन, जलस्रोत आदि के व्यापक संरक्षण की जरूरत है.
डीके शुक्ला, प्रधान मुख्य वन संरक्षक