बिहार : सुरक्षित हो रहा समाज, शराबबंदी के बाद हत्या, डकैती व अपहरण में आयी कमी
एक अप्रैल को शराबबंदी के दो साल पूरे हो रहे हैं. इस दौरान लोगों के जीवन में आये सकारात्मक बदलावों को प्रभात खबर पाठकों के सामने ला रहा है. पटना : शराबबंदी के बाद बिहार में अपराध काफी कम हुआ है. खासतौर पर बड़े अपराध जैसे फिरौती, हत्या व डकैती की वारदातों में उल्लेखनीय कमी […]
एक अप्रैल को शराबबंदी के दो साल पूरे हो रहे हैं. इस दौरान लोगों के जीवन में आये सकारात्मक बदलावों को प्रभात खबर पाठकों के सामने ला रहा है.
पटना : शराबबंदी के बाद बिहार में अपराध काफी कम हुआ है. खासतौर पर बड़े अपराध जैसे फिरौती, हत्या व डकैती की वारदातों में उल्लेखनीय कमी आयी है़ शराबबंदी से पहले चालू दशक के मध्य तक जहां डकैती के मामले बिहार में औसतन पांच सौ के आसपास रहे.
वहीं, अब यह आंकड़ा 325 के आसपास सिमट गया है.
इस तरह चालू दशक की शुरुआत में समूचे प्रदेश में हत्या की वारदातें औसतन तीन हजार के ऊपर ही दर्ज की गयीं, लेकिन अब यह आंकड़ा तीन हजार से काफी नीचे आ गया है. यही नहीं शराब पीकर उपद्रव करनेवालों की संख्या नगण्य रह गयी है. यह निष्कर्ष अपराध से जुड़े आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है. पुलिस अपराधों में आयी कमी का बड़े स्तर पर वैज्ञानिक और तार्किक अध्ययन कर रही है. अहम बात यह हैं कि गंभीर वारदातों को अंजाम देनेवालों ने पुलिस पूछताछ में स्वीकार किया है कि शराबबंदी के बाद वारदातों में नये लोगों को शामिल करना मुश्किल हो गया है़
हत्या : इन आंकड़ों पर अगर हम गौर करें, तो शराबबंदी के बाद ही 2016 में हत्या की 2584 घटनाएं घटित हुईं. जबकि शराबबंदी के पूर्व 2013 में 3441, 2014 में 3403 व 2015 में 3178 हत्या की घटनाएं घटित हुई. 2017 में 2803 हत्या की घटनाएं दर्ज की गयी. जब शराबबंदी नहीं थी तो हत्या का आंकड़ा तीन हजार से ऊपर ही रहता था. लेकिन, शराबबंदी के बाद यह आंकड़ा तीन हजार के अंदर ही सिमट गया और लगातार इसमें कमी आ रही है.
डकैती
अगर डकैती की घटनाओं पर गौर करें, तो यह भी लगातार कम होती गयी. 2016 में डकैती की 349 व 2017 में 325 घटनाएं हुईं, जबकि, शराबबंदी के पूर्व बिहार में डकैती का आंकड़ा 400 से कभी कम नहीं रहा. 2013 में 579, 2014 में 538, 2015 में 426 डकैती की घटनाएं घटित हुईं. आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि डकैती की घटनाओं में लगातार गिरावट रही और यह सब शराबबंदी के कारण संभव हुआ. शराब पीकर किसी के घर में आठ-दस की संख्या में प्रवेश कर जाना और फिर लूटपाट कर वहां से निकल जाने की घटनाओं पर बहुत हद तक अंकुश लगा.
फिरौती के लिए अपहरण
फिरौती के लिए अपहरण बिहार पुलिस के लिए समस्या थी, लेकिन सीएम नीतीश कुमार के पदभार ग्रहण करने के बाद इसमें कमी तो आयी, लेकिन लगातार नये गिरोह पैदा होते रहे और घटना को अंजाम देते रहे. लेकिन शराबबंदी के बाद फिरौती के लिए हुए अपहरण में भी काफी कमी आयी. फिरौती के लिए अपहरण का आंकड़ा जो हमेशा 50 से अधिक होता था, वह 50 के अंदर चला गया और उसमें भी लगातार कमी आयी. बिहार पुलिस के आंकड़ों से स्पष्ट है कि 2016 में 37 व 2017 में 42 घटनाएं हुईं और संबंधित थानों में मामले दर्ज हुए. लेकिन 2013 में 70, 2014 में 62, 2015 में 58 घटनाएं हुईं.
हत्या
वर्ष घटना
2017 2803
2016 2584
2015 3178
2014 3403
2013 3441
डकैती
वर्ष घटना
2017 325
2016 349
2015 426
2014 538
2013 579
वर्ष घटना
2017 42
2016 37
2015 58
2014 62
2013 70
कई अपराधियों ने अपराध की दुनिया से िकया िकनारा
शराब के नशे में छोटी-सी बात पर हंगामा, मारपीट, मर्डर तक होना आम बात थी. एक्सपर्ट के मुताबिक शराबबंदी के बाद कई अपराधियों ने अपराध की दुनिया से अपने आप को किनारा कर लिया. बिहार में अब स्थिति बेहतर हुई है़ व्यापारियों को भी राहत मिली है और उनसे शराब के लिए पैसे मांगने वाले नदारद हैं. शराबबंदी के पहले कोई चौक-चौराहे पर हंगामा करते हुए आसानी से दिख जाता था.
इसके कारण शरीफ आदमी व महिलाएं उस रास्ते से गुजरना भी छोड़ देती थीं. शराबबंदी के बाद इसतरह की घटनाओं पर अंकुश लगा है. अब भी हत्या, डकैती या फिरौती के लिए अपहरण की घटनाएं हो रही हैं, लेकिन इसमें काफी कमी आयी है. 2016 के अप्रैल में शराबबंदी होने के बाद संगीन अपराधों का ग्राफ गिरने लगा. यह बिहार पुलिस के आंकड़े से स्पष्ट है.