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बिहार : आईसीआईसीआई बैंक का मामला सामने आने से घटी बैंकों की विश्वसनीयता, जानें पूरा मामला
पटना : पंजाब नेशनल बैंक के बाद अब आईसीआईसीआई बैंक पर भी आर्थिक घोटाले का दाग लगने का मामला प्रकाश में आया है. इससे बैंकों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो गए हैं. देश के बड़े उद्योगपति बैंक से लोन लेकर कैसे अपने झोली में डाल रहे हैं. साथ ही साथ अपने को एनपीए के […]
पटना : पंजाब नेशनल बैंक के बाद अब आईसीआईसीआई बैंक पर भी आर्थिक घोटाले का दाग लगने का मामला प्रकाश में आया है. इससे बैंकों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो गए हैं. देश के बड़े उद्योगपति बैंक से लोन लेकर कैसे अपने झोली में डाल रहे हैं. साथ ही साथ अपने को एनपीए के दायरे में लाकर बैंक को करोड़ों-अरबों का चूना लगा रहे हैं. बैंकों में अनियमितता की इस तरह की घटना में सबसे अधिक आम आदमी प्रभावित होता है. जिसके पैसों को बड़े असरदार लोग डकार रहे हैं. दूसरे आम आदमी को सामान्य लोन लेने में काफी दिक्कत आती है.
निजी बैंकों की स्थिति सरकारी बैंकों से अच्छी नहीं है, उनको भी अपनी कार्य प्रणाली में सुधार करना हाेगा, तभी स्थिति में सुधार आयेगा
क्या है मामला
आईसीआईसीआई बैंक की शीर्ष पदाधिकारी चंदा कोचर ने अपनी हैसियत का फायदा उठाकर वेणुगोपाल धूत की कंपनी को लोन बांटा है. दिसंबर 2008 में धूत ने दीपक कोचर के साथ एक कंपनी शुरू की. दीपक कोचर कोई और नहीं बल्कि आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर के पति है.
2008 में धूत ने चंदा कोचर के पति दीपक कोचर और उनके दो रिश्तेदारों के साथ मिलकर एक ‘नूपावर’ कंपनी बनाई. धूत ने अपनी एक कंपनी सुप्रीम एनर्जी से नूपावर को 64 करोड़ रुपये का लोन दिया. बाद में धूत ने सुप्रीम एनर्जी का मालिकाना हक सिर्फ 9 लाख रुपये में एक ट्रस्ट ‘पिनेकल एनर्जी ट्रस्ट’ को दे दिया. जब वीडियोकॉन को आईसीआईसीआई बैंक से 3,250 करोड़ रुपये का लोन मिलने के छह महीने के भीतर ही सुप्रीम एनर्जी का ट्रांसफर हो गया. कुल 3,250 करोड़ रुपये के लोन में से 2,810 रुपये का लोन अब भी नहीं चुकाया गया है. 2017 में लोन की इस रकम को एनपीए में डाल दिया गया.
सरकारी और गैर सरकारी बैंकों में एनपीए एक लाईलाज बीमारी बन गयी है. अगर इसके मूल कारणों की तरफ ध्यान दें तो पता चलेगा कि सरकार की ऋण नीति और आरबीआई बैंक की लचर नियंत्रण सिस्टम इसके लिए जिम्मेवार है. बैंकों में जमा पब्लिक मनी को ऋण मेला या फिर लोन कैंप लगाकर ऋण के रूप में बांटने की कवायद भी अच्छी नहीं है.
—डी एन त्रिवेदी, यूनाइटेड फोरम ऑफ आरआरबी यूनियंस के संयोजक
आईसीआईसीआई बैंक और वीडियोकॉन मामले का असर शेयर बाजार पर खास नहीं पड़ेगा. अगर असर पड़ेगा तो केवल आईसीआईसीआई बैंक के शेयर पर पड़ेगा. वह भी तात्कालिक होगा. निवेशक मान कर चल रहे हैं कि बैंक अधिकारी आम जनता के पैसे को चंद उद्योगपति पर न्योछावर कर दिया है. नये प्रावधान के तहत बैंक को सारा डिटेल्स देना पड़ेगा.
—सुरेश रुंगटा, मगध स्टॉक एक्सचेंज के पूर्व अध्यक्ष
आईसीआइसीआई बैंक का मामला सामने आने से परिलक्षित होता है कि निजी बैंकों की स्थिति सरकारी बैंकों से अच्छी नहीं है. उनको भी अपनी कार्य प्रणाली में सुधार करना हाेगा. प्रमुख उद्योग संगठन को इस मामले में आगे आना चाहिए ताकि उद्योगपतियों को लोन लौटाने के लिए दबाब बनाया जा सके.
—उमा कांत सिंह, भारतीय स्टेट बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष
प्रायः यह देखा गया है कि जब बैंक के अधिकारी किसी निजी लाभ के लिए अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर गलत कागजातों के आधार पर या उसकी सत्यता को बिना जांचे हुए लोन कर देते हैं. ऐसे लोन के वापस होने की संभावना नगण्य हो जाती है.बैंक की अपनी क्रेडिट पालिसी और रिजर्व बैंक की गाइडलाइन्स की लगातार अनदेखी की जा रही है.
—राजेश कुमार खेतान, आईसीएआई पटना ब्रांच के पूर्व अध्यक्ष
चंदा कोचर विवाद का असर आईसीआईसीआई बैंक के म्यूचुअल फंड पर कोई असर नहीं पड़ेगा. अगर इसके शेयर का भाव गिरता भी है, तो इसके फंड के उस स्कीम पर प्रभाव पड़ता है, जिसमें बैंक का शेयर रहता है. हालांकि देखा जाये, तो इस मामले से वैसा
कुछ नहीं हुआ है.
—नवीन कुमार, म्यूचुअल फंड के विशेषज्ञ
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