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नीतीश और रामविलास पासवान की बढ़ रही नजदीकियों को लेकर बिहार में सियासी चर्चा शुरू

पटना : हाल के दिनों में लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक महीने के अंदर चार बार मिल चुके हैं. हालांकि, इस दौरान नीतीश कुमार से रालोसपा नेता उपेंद्र कुशवाहा और पप्पू यादव भी मिले हैं, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा रामविलास पासवान की अचानक नीतीश कुमार से बढ़ रही नजदीकियों […]

पटना : हाल के दिनों में लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक महीने के अंदर चार बार मिल चुके हैं. हालांकि, इस दौरान नीतीश कुमार से रालोसपा नेता उपेंद्र कुशवाहा और पप्पू यादव भी मिले हैं, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा रामविलास पासवान की अचानक नीतीश कुमार से बढ़ रही नजदीकियों को लेकर हो रही है. बिहार में सियासत के केंद्र में हमेशा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रहे हैं. मुख्यमंत्री से किसी नेता की मुलाकात और बातचीत भी राजनीतिक गलियारों में चर्चा को जन्म दे देती है. पप्पू यादव ने अपने राजनीतिक जीवनकाल में पहली बार नीतीश कुमार से मुलाकात की और उसके बाद तरह-तरह की चर्चा शुरू हो गयी. ठीक उसी तरह सियासी हलकों में रामविलास पासवान और नीतीश कुमार की बढ़ रही नजदीकियों को लेकर बी चर्चा शुरू है.

राजनीतिक जानकारों की मानें, तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं है. दोनों नेता अंबेडकर जयंती को एक मंच पर नजर आयेंगे और इस कार्यक्रम को लेकर भी उनकी मुलाकात हुई होगी. उसमें किसी और राजनीतिक कारणों को तलाशना दूसरी बात होगी. रामविलास पासवान कई बार कह चुके हैं कि वह आगामी चुनाव एनडीए के साथ मिलकर लड़ेंगे और वह एनडीए का हिस्सा हैं. राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह के उस बयान पर, जिसमें उन्होंने रामविलास के राजद के संपर्क में रहने की बात कही थी. उस पर पासवान ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए रघुवंश प्रसाद सिंह को नसीहत दे डाली थी कि राजद में ही टूट हो सकती है. उधर, अंबेडकर जयंती पर पासवान और नीतीश की मुलाकात पर जदयू नेताओं ने कहा है कि 14 अप्रैल का कार्यक्रम काफी ऐतिहासिक होगा.

जानकार कहते हैं कि यह जयंती इस मायने में महत्वपूर्ण है, जब पूरे देश में एससी-एसटी एक्ट में बदलाव को लेकर पूरी तरह से माहौल गर्म है. भारत बंद के दौरान से अभी मुख्य चर्चा में यह मुद्दा बना हुआ है. उस वक्त इस जयंती में दो बड़े नेताओं का शामिल होना बहुत बड़ी बात है. बिहार में एनडीए की तीसरी साथी राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी भी इस कार्यक्रम में शामिल होगी. उसके नेता और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश और पासवान के बयानों का समर्थन भी किया है. इन दोनों ने भड़काऊ बयानों को लेकर बीजेपी नेताओं की आलोचना की थी. दोनों ने समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की जरूरत पर जोर दिया है. रामविलास पासवान दलितों के मुद्दे पर नीतीश कुमार से पहले अलग राय रख चुके हैं. जब नीतीश कुमार ने 2007 में दलितों में महादलित नाम से एक अलग समूह बनाया था. उस समय पासवान का मानना था कि यह दलितों के वोट बांटने की कोशिश है.

बिहार में महादलित आयोग की सिफारिशों पर, 22 दलित जातियों में से 18, धोबी, मुसहर, नट, डोम और अन्य को महादलित का दर्जा दिया गया था. बिहार में दलितों का 16 प्रतिशत वोट हिस्सा है, जिसमें दुसाध समुदाय के पांच प्रतिशत वोट शामिल हैं. ये वर्ग राम विलास पासवान के साथ है. जानकार बताते हैं कि दोनों नेताओं का एक साथ, एक मंच पर होना सिर्फ और सिर्फ दलितों के मुद्दों और उनके कल्याण की बात के लिए है, इसमें कोई राजनीति नहीं है. वहीं जदयू के एक नेता मानते हैं कि नीतीश कुमार ने बिहार में दलितों और महादलितों के लिए बहुत सारे काम किये हैं और नीतीश कुमार के साथ उनका समर्थन बना हुआ है. रहा सवाल रामविलास पासवान के साथ मुलाकात का, तो नीतीश कुमार अंबेडकर जयंती के मौके पर पासवान के साथ मिलकर मंच साझा करेंगे. इसमें भला क्या राजनीति हो सकती है.

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