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बिहार : लीज पर ली सरकारी जमीन, फिर भी निर्देश नहीं मानते हैं निजी स्कूल, दिखाते हैं धौंस

पटना : नामी-गिरामी समेत अधिकांश स्कूल सरकारी लीज भूमि पर अवस्थित हैं. बावजूद वे सरकारी आदेश व नियमों को ही नहीं मानते हैं. खुद को स्व वित्तपोषित या माइनॉरिटी स्कूल बता कर सरकारी नियमों तक को मानने से इन्कार कर देते हैं. हर साल फीस वृद्धि की जाती है. जबकि लीज के कागजात में इस […]

पटना : नामी-गिरामी समेत अधिकांश स्कूल सरकारी लीज भूमि पर अवस्थित हैं. बावजूद वे सरकारी आदेश व नियमों को ही नहीं मानते हैं.
खुद को स्व वित्तपोषित या माइनॉरिटी स्कूल बता कर सरकारी नियमों तक को मानने से इन्कार कर देते हैं. हर साल फीस वृद्धि की जाती है. जबकि लीज के कागजात में इस बात का उल्लेख होता है कि स्कूल या संबंधित ट्रस्ट अपने निजी फायदे के लिए भूखंड का उपयोग नहीं करेंगे. पिछले ही वर्ष दिल्ली उच्च न्यायालय का एक फैसला आया था.
फैसले के अनुसार जिन स्कूलों को सरकार से जमीन मिली है, वे सरकार की पूर्व अनुमति बगैर फीस नहीं बढ़ा सकते हैं. बगैर अनुमति कोई भी स्कूल फीस बढ़ाता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है. प्राइवेट स्कूलों की मनमानी से अभिभावक त्रस्त हैं. स्कूलों द्वारा सरकारी नियम-कानून भी दरकिनार किये जा रहे हैं.
बावजूद स्कूल बेखौफ हो कर अभिभावकों की जेब ढीली करने के साथ उन पर तरह-तरह से दबाव बना रहे हैं. स्थिति यह है कि अपने लाभ के लिए प्राइवेट स्कूल संबद्ध बोर्ड के दिशा-निर्देशों को भी नहीं मानते. इसका एक उदाहरण एनसीईआरटी की किताबें हैं, जिनके स्थान पर सभी संबद्ध स्कूलों में प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें चलायी जा रही.
दिया जाता रहा है निर्देश
शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम लागू होने के बाद से स्कूलों को समय-समय पर जिला प्रशासन की ओर से दिशा-निर्देश दिये जाते रहे हैं. उनका भी अनुपालन नहीं करते हैं. कमजोर एवं अभिवंचित वर्ग के परिवारों की संख्या भी यहां कम नहीं है, फिर भी आरटीई के तहत कोटे की सभी 25 प्रतिशत सीटों पर एडमिशन नहीं हो पाता है.
धौंस दिखाते हैं स्कूल
शिक्षा विभाग के एक पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कार्रवाई की चेतावनी का स्कूलों पर कोई असर नहीं होता. उल्टे स्कूल ऊंची पहुंच का धौंस दिखाते हैं. पिछले ही वर्ष एक स्कूल के खिलाफ जांच की जानी थी. कमेटी का गठन किया गया. लेकिन जांच हुई भी या नहीं, इसकी जानकारी नहीं है.
कहते हैं विशेषज्ञ
विशेषज्ञ व जानकार बताते हैं कि सबको समान शिक्षा मिले, यह सीबीएसई का उद्देश्य है. बावजूद इस बोर्ड से संबद्ध स्कूल मनमाना रवैया अपना रहे है और अभिभावकों से दोहन कर रहे हैं. फीस आदि से संबंधित मामला उच्च न्यायालय में लंबित है. उच्च न्यायालय ने सीबीएसई से रिपोर्ट मांगी है, जो अभी तक नहीं मिली है.
स्कूल शिक्षा की गुणवत्ता आदि के हिसाब से फीस वृद्धि करते हैं. इस पर विभाग का कोई नियंत्रण नहीं है. सरकार कानून बना रही है. इसके बाद प्राइवेट स्कूलों पर नकेल कसेगी. माइनॉरिटी स्कूलों के लिए भी एक स्कूल से जरूरी कागजात मांगे गये हैं, ताकि वास्तविकता की जांच हो सके.
रामसागर सिंह, डीपीओ, पटना
नहीं समझते अभिभावकों की परेशानी : संघ
अभिभावक संघ के संजीव कुमार पाठक, राकेश व अन्य ने बताया कि स्कूल अपने कायदे-कानून मानने को बाध्य करते हैं.स्कूल की शिकायत या विरोध में आवाज उठाने पर टीसी देकर बच्चे को स्कूल से निकाल देने की चेतावनी दी जाती है.
अभिभावकों ने बताया कि स्कूलों द्वारा शपथपत्र को काफी गोपनीय तरीके से रखा जाता है.

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