संवाददाता @ पटना
संगीतज्ञ पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह के निधन से बिहार का कला जगत मर्माहत है. सहरसा निवासी बिहार रत्न गजेंद्र नारायण सिंह ने शास्त्रीय संगीत की परंपरा को आज तक अपनी लेखनी के माध्यम से सहेजे रखा. संगीत के जानकारों में इनका नाम बड़े ही सम्मान के साथ देश के कलाकारों के बीच लिया जाता है. इन्हें 2007 में पद्मश्री मिला.
वरिष्ठ पत्रकार निराला बिदेसिया कहते हैं कि क्लासिक म्यूजिक के क्षेत्र में अपने यहां शून्यता थी. दरभंगा का मलिक घराना, बेतिया घराना, पूरब की ठुमरी उन्होंने ही बतायी. बिहार के संगीत का इतिहास और परंपरा के जरिये जो इन्होंने बताया, उतना किसी ने नहीं किया. उन्होंने ही बिहार की सांस्कृतिक परंपरा को पुनर्जीवित किया. ध्रुपद गायन, बिहार की पूरब अंग की ठुमरी, गुलाब बाई के बारे में बताया.
बिहार कला मंच के अध्यक्ष प्रो. श्याम शर्मा और सचिव बीरेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि गजेंद्र नारायण सिंह जितना प्रदर्श कला के कलाकारों के प्रिय थे, उतना ही चाक्षुष कला के कलाकारों के.
बीरेंद्र कुमार सिंह ने सरकार से मांग की कि संगीत के क्षेत्र में पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह के योगदान को देखते हुए उनके नाम पर बिहार संगीत नाटक अकादमी संगीत के कला समीक्षक को प्रतिवर्ष संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किये जाने की योजना शुरू करनी चाहिए. वैसे तो शास्त्रीय संगीत ध्रुपद के क्षेत्र में उन्हें ने काफी कुछ लिखा-पढ़ा है, संगीत के क्षेत्र में विशेष रुचि रहते हुए भी उन्हें चाक्षुष कला से काफी लगाव था.
सिंह ने कहा कि वे कला के पारखी थे और मेरा यह अनुभव रहा है कि कोई भी प्रदर्श कला का कलाकार उनके सामने अपनी प्रस्तुति देने से डरता था, क्योंकि अगर प्रस्तुति में थोड़ी-सी भी गलती हुई तो उसे वही फटकार लगाने लगते और अच्छी हुई तो वाहवाही. उनका आकर्षक पहनावा और व्यक्तित्व किसी भी कार्यक्रम की शोभा बढ़ा देता था. उनका मन निर्मल था. कोई छल-कपट नहीं. जो अच्छा नहीं लगता था, उसे भरी सभा में भी बोलने से पीछे नहीं हटते, किसी को अच्छा लगे या बुरा. कला अकादमी के प्रथम सचिव रहते हुए उन्होंने काफी काम किया. सचमुच ये बिहार के रत्न थे, जिन्हें हमलोगों ने खो दिया. जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती.
बिहार संगीत नाटक अकादमी के सचिव रह चुके थे गजेंद्र नारायण
बिहार संगीत नाटक अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष कुमार अनुपम ने पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि संगीत और ललित कला अकादमियों की स्थापना में उनकी सबसे बड़ी भूमिका थी. बेतिया में ध्रुपद महोत्सव के आयोजन से उन्होंने दरभंगा के अमता और बेतिया के ध्रुपद घराने को मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया था.
मशहूर तबला वादक श्याम शर्मा ने कहा कि उनका असमय जाना भी बिहार के सांस्कृतिक आंदोलन के लिए अपूरणीय क्षति है. बिहार आर्ट थिएटर इन दोनों सांस्कृतिक नक्षत्रों की स्मृति में हर वर्ष सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए प्रेक्षागृह उपलब्ध करायेगी.