पटना : है अगर प्यार तो मत छुपाया करो, हम से मिलने को तो कभी आया करो, दिल हमारा नहीं है ये घर आपका रोज आया करो रोज जाया करो… प्रभात खबर अपराजिता पुरस्कार समारोह में कुछ इसी तरह शहरवासियों को शायरी का आमंत्रण मिला मशहूर शायरा डॉ अंजुम रहबर से. इसके बाद प्यार करना ना करना, अलग बात है. कम से कम वक्त पर घर तो आया करो की ताकीद और प्यार नजरों में आना नहीं चाहिए, रोज मिलना मिलाना नहीं चाहिए की सलाह के साथ बारिशों के इरादे खतरनाक है, अब पतंगें उड़ाना नहीं चाहिए का संदेश.
श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में कुछ इसी प्रकार राजधानीवासियों की शाम गुलजार हुई. अपने अंतिम मतले में मैंने ये सोचकर दे दिया दिल उसे, दिल किसी का दुखाना नहीं चाहिए. उन्होंने आगे फरमाया एक गमले में अंजुम कटे जिंदगी, हर जगह गुल खिलाना नहीं चाहिए. इसके बाद सभागार में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी. उन्होंने शायरी फिर से कही…अपनी बातों पर खुद गौर कर ले, और सोचे ये क्या कह रहे हैं? पहले अपने गिरेबां में झांकें जो पहले हमें बेवफा कह रहे हैं.
इसके बाद उन्होंने मशहूर शायरी पढ़ी, आग बहते हुए पानी में लगाने आई, तेरे ख़त आज मैं दरिया में बहाने आई, फिर तिरी याद नए ख्वाब दिखाने आई, चांदनी झील के पानी में नहाने आई, दिन सहेली की तरह साथ रहा आंगन में, रात दुश्मन की तरह जान जलाने आई. मैं ने भी देख लिया आज उसे ग़ैर के साथ, अब कहीं जा के मिरी अक़्ल ठिकाने आई, ज़िंदगी तो किसी रहज़न की तरह थी ‘अंजुम’, मौत रहबर की तरह राह दिखाने आई.
जमीन अच्छी फसलें देती है, औरत अच्छी नस्लें देती है
इसके पहले नसीम निकहत की शायरी पर खूब तालियां बजी. उन्होंने आते ही कहा..जमीन अच्छी फसलें देती है, औरत अच्छी नस्लें देती है. और फिर सवाल पूछा..जो हमपे गुजरी है जानां, तुम्हें बताएं क्या? ये दिल टूट गया है हम भी टूट जायें क्या? तुम्हारे बाद सफर में कोई मजा ना रहा, हर मोड़ पर सोच लौट आएं क्या? इन सवालों के बाद शायरी का दौर शुरू हुआ..मचल उठे यही मौजें तो कश्तियां उड़ जाएं, जरा सा बिगड़े समंदर तो बस्तियां उड़ जाएं..बड़े बड़ों की हकीकत छुपाये हैं, जुबां खोल दें अपनी तो धज्जियां उड़ जाये. फिर आगे कहती हैं…ढ़ली जो शाम तो मौसम भी सर्द सर्द हुआ, तमाम उम्रसफर में रहा मेरा चेहरा, इसीलिए तो आईना गर्द गर्द हुआ.
वो मेरे एेब गिनाता है आजकल जो आज मर्द हुआ है, नजर का नूर था पहले जो आज दिल का दर्द हुआ है. हमारे दिल को तो आदत थी चोट खाने की, ना जाने सीने में क्यों इतना दर्द हुआ? मुहब्बत के आज के फैशन पर वे कहती हैं आज कल मुहब्बत का कारोबार चलता है, ना था वफा जिसका बात वो पुरानी है. नाप तौल कर हैसियत पर मरती हैं, इश्क में कोई लड़की अब कहां दीवानी है? इसके बाद फिर से पढ़ती हैं. बंजारे हैं रिश्तों की तिजारत नहीं करते, हम लोग दिखावे की मोहब्बत नहीं करते, मिलना है तो आ जीत ले मैदान में हम को, हम अपने क़बीले से बग़ावत नहीं करते, तूफ़ान से लड़ने का सलीक़ा है ज़रूरी, हम डूबने वालों की हिमायत नहीं करते.
स्पॉन्सर का सम्मान
अपराजिता महिला सम्मान समारोह के दौरान कार्यक्रम के प्रायोजकों को उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने सम्मानित किया.
ये रहे प्रायोजक : टाटा शक्ति, एनएसआईटी, अपना आशियाना, किरण महिंद्रा, राकेश ग्रुप, आरएफएस, ज्ञानोदय गुरुकुल, बंसल क्लासेज, डॉ डीवाइ पाटिल, गोल, पटना डेयरी प्रोजेक्ट, कोमफेड एंड बहूराष्ट्रीय भूमि विकास बैंक समिति.
हिंदू-मुस्लिम बाद में हैं हम सबसे पहले हिंदुस्तानी हैं.
शबीना अदीब ने शुरूआत की. हम सब मिलकर आज चलो ये आज यहां ऐलान करें, हिंदू मुस्लिम बाद में हैं हम सबसे पहले हिंदुस्तानी हैं. इसपर जब तालियों से उनका स्वागत हुआ तो तुझे आरजू थी जिसकी वही प्यार ला रही हूं, मेरे गम में रोने वाले तेरे पास आ रही हूं. मुझे देखना है किससे, मेरा शहर होगा रोशन? वो मकां जला रहे हैं मैं दिल जला रही हूं. इसके बाद दूसरी शायरी…हाल क्या दिल का है इजहार से रोशन होगा, इनके अलावा डॉ सरिता शर्मा ने वीर रस तो डॉ कीर्ति काले ने हास्य रस की कविताएं पढ़ी जिसपर श्रोताओं ने काफी तवज्जो दीं.