पटना : हाल के लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों के परिणामों से भाजपा की बेचैनी बढ़ी है. हार पर भले ही पार्टी नेता उपचुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं का रट्टा लगा रहे हैं, लेकिन पार्टी से लेकर मातृ संगठन में खलबली है. उपचुनाव के परिणाम से सहयोगियों का भी प्रेशर बढ़ा है. पार्टी के चल रहे महासंपर्क अभियान में भी कार्यकर्ता पार्टी के प्रदर्शन पर सवाल उठा रहे हैं और इसके लिए सीधे-सीधे नेतृत्व पर सवाल दाग रहे हैं.
कार्यकर्ताओं का सीधा-सीधा कहना है कि अगर नेतृत्व कार्यकर्ताओं को इसी तरह नजर अंदाज करता रहा, तो 2019 कहीं भारी न पड़ जाये. सबसे बड़ी बात यह है कि लोकसभा में अब पार्टी अपने बूते सिर्फ सामान्य बहुमत पर आकर टिक गयी है. लोग कहते हैं कि इस बार मोदी लहर नहीं, उनके काम की समीक्षा होगी.बिहार, यूपी और झारखंड सहित अन्य राज्यों में लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव के जो परिणाम आया है वह भाजपा के लिए ठीक नहीं है. वहीं विपक्षी उत्साहित हैं. भाजपा के लोकसभा में बिहार से 22 सदस्य है. जानकार कहते हैं कि पार्टी में इसको लेकर मंथन शुरू हो गया है.
अब भोज की राजनीति का दौर शुरू
अब राज्य में भोज की राजनीति का दौर शुरू होने वाला है. सात जून को एनडीए की भोज है. मेजबान भाजपा है. भोज में मुख्यमंत्री भी शामिल होंगे. भोज के बहाने भाजपा व सहयोगी दल एकजुटता का संदेश देंगे. इधर उपचुनाव से उत्साहित महागठबंधन में भी भोज की चर्चा शुरू हो गयी है.
भाजपा के राष्ट्रीय सचिव रजनीश कुमार कहते हैं कि हमलोग रोज काम करनेवाले लोग हैं. जीत और हार दोनों की समीक्षा करते हैं. उपचुनाव स्थानीय मुद्दे पर लड़े जाते हैं, जो लोग उपचुवाव की जीत पर शोर मचा कर पीठ थपथपा रहे हैं, उन्हें 2019 में पता चल जायेगा कि देश की जनता किसके साथ हैं. नरेंद्र मोदी फिर प्रधानमंत्री बनेंगे. उनके काम और इमेज पर लोग वोट देंगे. भाजपा जनादेश का सम्मान करती है. उपचुनाव
के हार की समीक्षा हो रही है.
अनदेखी से नाराज हैं कार्यकर्ता
बताया जा रहा है कि पार्टी कार्यकर्ता अपनी अनदेखी से नाराज हैं. निचले स्तर के कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी में संवाद की स्थिति कमजोर होती जा रही है. कॉरपोरेट की तर्ज पर पार्टी को चलाया जा रहा है. कार्यकर्ताओं से फीडबैक नहीं लिया जाता है बल्कि उनको टास्क दिया जाता है. विस्तारक संगठन बना रहे हैं. कुछेक कार्यकर्ताओं की राय पर विस्तारक निर्भर हो गये हैं. आम कार्यकर्ताओं को कोई पूछ ही नहीं रहा है. ये लोग निराश हो गये हैं. जबकि, आम कार्यकर्ता ही हवा बनाते हैं. केंद्र व राज्य में सरकार रहने के बाद भी सामान्य कार्यकर्ता को कोई नहीं पूछ रहा.