पर्यावरण दिवस पर विशेष : क्लाइमेट चेंज से घटा फलों का आकार, मिठास भी हुई कम

राजदेव पांडेय पटना : बिहार जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज ) की जबरदस्त चपेट में है. क्लाइमेट चेंज ने खासतौर पर बिहार की समूची आबोहवा को प्रभावित किया है. इसके चलते न केवल फलों का आकार घटा है, बल्कि गुणवत्ता, खासतौर पर उनकी मिठास पर ग्रहण लगा है. फल उत्पादक इस चिंता को लेकर डाॅ राजेंद्र […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 5, 2018 6:52 AM
राजदेव पांडेय
पटना : बिहार जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज ) की जबरदस्त चपेट में है. क्लाइमेट चेंज ने खासतौर पर बिहार की समूची आबोहवा को प्रभावित किया है. इसके चलते न केवल फलों का आकार घटा है, बल्कि गुणवत्ता, खासतौर पर उनकी मिठास पर ग्रहण लगा है.
फल उत्पादक इस चिंता को लेकर डाॅ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय की शरण में पहुंचे हैं. कृषि और उद्यानिकी से जुड़े विज्ञानियों ने इन सूचनाओं के आधार पर इसका वैज्ञानिक विश्लेषण शुरू कर दिया है. जानकारी के मुताबिक डाॅ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में क्लाइमेट चेंज पर अध्ययन और उससे निबटने के लिए नेशनल इनोवेशन यूनिट का अध्ययन शुरू किया गया है.
वैज्ञानिकों की प्रथमदृष्टया रिपोर्ट के मुताबिक लीची, आम सहित दूसरे रस भरे फलों के साइज पर असर पड़ा है. सबसे ज्यादा असर लीची पर है. इसकी मिठास प्रभावित हुई है. साइज घटा है. रस में भी कमी आयी है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक मौसम में इस साल लगातार हो रही उठापटक के चलते फलों पर यह असर पड़ रहा है. दरअसल, बिहार के रस भरे फलों के लिए शुष्क हवाओं की जरूरत होती है. पिछले तीन-चार साल में अप्रेल और मई माह में जहां तपना चाहिए. वहां मौसम नमी युक्त है. इस साल अप्रैल माह के उत्तरार्ध और मई में हवा में नमी की मात्रा 35-40% होनी चाहिए, वहां इसकी मात्रा 70-80% के बीच चल रही है. अधिकतम तापमान बढ़ा है, लेकिन न्यूनतम तापमान बेहद सामान्य-सा है.
दूध उत्पादन पर भी असर
क्लाइमेट चेंज का असर सिर्फ फलों पर ही नहीं, बल्कि दुधारू पशुओं पर भी पड़ा है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक उमस भरे वातावरण में दूध उत्पादन पर भी असर पड़ेगा. दरअसल, दुधारू पशुओं के हार्मोंस प्रभावित हाे रहे हैं. वह इन दिनों पशु खा भी कम रहे हैं.
मौसम के अनुसार खेती करें
रबी के सीजन में मौसमी अप्रत्याशित बदलावों के मद्देनजर कृषि वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि अब खेती माॅनसून आधारित नहीं, मौसम आधारित की जाये. बिहार में प्रत्येक एग्रो जोन में मौसम अब अलग-अलग हो गया है. अब उसी के आधार पर कृषि योजनाएं बनाने की सलाह उन्होंने दी है. किसानों को भी इसकी हिदायत दी जा रही है.
निश्चित तौर पर बिहार में जलवायु परिवर्तन के लक्षण अब स्थायी तौर पर दिखायी दे रहे हैं. अब उसका असर एक दम साफ हैं. इस साल लीची का आकार सामान्य से कम है. रस वाले फलों के स्वाद में कमी आयी है.
इसलिए सतर्क होने की जरूरत है. वैज्ञानिक इस मामले में अध्ययन शुरू कर चुके हैं, ताकि फलों का नेचर में बदलाव को रोका जा सके. अब किसानों को चाहिए कि वह मौसम आधारित खेती करें, न कि माॅनसून आधारित. बिहार के किसानों के सामने जबरदस्त चुनौती है. सरकार और कृषि विज्ञानी उनके साथ हैं.
डाॅ ए सत्तार, मौसम विज्ञानी एवं एक्सपर्ट जलवायु परिवर्तन
बिहार में क्लाइमेट चेंज के लक्षण
माॅनसूनी माह जून व जुलाई की जगह बारिश मई में शिफ्ट हो रही है. इस साल बिहार में मई में रिकाॅर्ड बारिश हुई है. ऐसा पिछले तीन से चार साल से हो रहा है.
किसानों को मक्का व गेहूं की बुआई भी अक्तूबर के उत्तरार्ध में करनी होगी, क्योंकि शीतकालीन बारिश अब फरवरी-मार्च में शिफ्ट हुई है.
रबी सीजन में मौसम में अप्रत्याशित बदलाव आया है. परंपरागत तापमान छिन्न-भिन्न हो गया है.

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