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चुनावी समीकरण : बिहार की सियासत में जो नीतीश के साथ जुटता है, परिणाम उसी के पक्ष में आता है

शशिभूषण कुंवर नीतीश फेनोमेना ही निर्णायक पटना : बिहार की जनता पर नीतीश कुमार का फेनोमेना ही छाया हुआ है. चाहे वह 2005 और 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव हो या 2009 का लोकसभा चुनाव. 2014 के लोकसभा चुनाव की आंधी को छोड़ दिया जाये तो नीतीश कुमार के साथ जो भी गठबंधन में रहा, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 6, 2018 7:54 AM
शशिभूषण कुंवर
नीतीश फेनोमेना ही निर्णायक
पटना : बिहार की जनता पर नीतीश कुमार का फेनोमेना ही छाया हुआ है. चाहे वह 2005 और 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव हो या 2009 का लोकसभा चुनाव. 2014 के लोकसभा चुनाव की आंधी को छोड़ दिया जाये तो नीतीश कुमार के साथ जो भी गठबंधन में रहा, उसकी जीत हुई है.
सीटों की संख्या बदलने का मैजिक नीतीश कुमार के हाथ में ही रहा. जब वह एनडीए से हटे तो विधानसभा में भाजपा की संख्या 91 से घटकर 52 पर चली आयी और जब राजद नीतीश कुमार के साथ जुड़ा तो विधानसभा में उसकी संख्या 22 से उछल कर 80 पर पहुंच गयी. नीतीश कुमार के विकास का यह मैजिक है, जो हमेशा राज्य की जनता के दिलोदिमाग पर छाया रहता है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ एनडीए बिहार में 2009 में लोकसभा के चुनावी मैदान में उतरा था. उस वक्त एमवाई समीकरण की भी गोलबंदी थी. तब भी जदयू को 20 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि भाजपा को 12 सीटें मिली थीं. बिहार से एनडीए को कुल 32 सीटें मिली थीं. 2014 में जदयू जब एनडीए से अलग हो गया था, तब भी नीतीश कुमार को गुड गवर्नेंस के नाम पर उस चुनाव में 16% से अधिक वोट मिले थे.
वर्तमान दौर में न तो देश में और न ही बिहार में 2014 जैसे राजनीतिक हालात हैं. 2014 में चुनावी आंधी थी, जो धीरे-धीरे सब जगह कमजोर पड़ती जा रही है. इसके साफ संकेत उपचुनावों के परिणाम दे रहे हैं. एक यह भी सच्चाई है, जिसे सभी दल स्वीकार करते हैं कि बिहार में न तो राजद, न जदयू और न ही भाजपा अपने बलबूते पर विधानसभा चुनाव जीतने की स्थिति में है. 2014 के लोकसभा चुनाव में करिश्मा हुई थी, जब बिहार विधानसभा की 172 सीटों पर मोदी लहर में भाजपा को लीड मिली थी. लेकिन, 2015 में विधानसभा चुनाव में जदयू और राजद का महागठबंधन बन गया तो 172 सीटों पर लीड लेने वाली भाजपा लुढ़क कर 52 सीटों पर ही सिमट गयी.
दूसरी ओर 22 सीटों पर सिमटे राजद को नीतीश के साथ मिलने से उछाल मिली और वह 22 सीटों से 80 सीटों पर पहुंच गया. यह सब नीतीश कुमार फेनोमेना का असर है. यह एक ऐसा फेनोमेना है, जिसके बिना न तो भाजपा सरकार बना सकती है और न ही राजद. 2010 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और भाजपा में गठबंधन होने से जदयू को 118 व भाजपा को 91 सीटें मिलीं. इस चुनाव में राजद के सदस्यों की संख्या 75 से घटकर 22 पर चली गयी.
विधानसभा में इंसाफ के साथ सीटें मांगने पर लोकसभा में भी
इंसाफ के साथ सीटों का करना होगा बंटवारा : त्यागी
जदयू के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव केसी त्यागी का कहना है कि अभी लोकसभा चुनाव होनेवाला है. जब विधानसभा चुनाव होगा, तो वर्तमान एनडीए के घटक दल क्या अपनी वर्तमान सीटों में इजाफा नहीं चाहेंगे.
अगर वह ऐसा चाहेंगे और न्यायसंगत प्रयास करेेंगे, तो अभी जदयू को यह अधिकार क्यों नहीं है. अगर विधानसभा में इंसाफ के साथ सीटें मांगेंगे, तो लोकसभा में भी इंसाफ के साथ सीटें बांटनी होंगी. उन्होंने बताया कि एनडीए मजबूत है
वैसे भी अगर 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए और जदयू को मिले वोटों को जोड़ दिया जाये तो लोकसभा की 40 सीटों में से 38 सीटों पर एनडीए की जीत दिख रही है. सिर्फ किशनगंज और कटिहार सीटों पर यूपीए की बढ़त दिखती है.
उन्होंने बताया कि अगर 2014 के जदयू और एनडीए मिल कर विधानसभा चुनाव लड़ते हैं तो दोनों के संयुक्त वोटों के अनुसार राज्य की कुल 243 सीटों में से 228 सीटों एनडीए जीतता दिख रहा है. यही है जदयू की असली ताकत.
नीतीश के साथ गुड गवर्नेंस का वोट जाति या संप्रदाय का मत नहीं
नीतीश कुमार के पक्ष वाले वोट किसी जाति या संप्रदाय के मत नहीं हैं. ये गुड गवर्नेंस के वोट हैं. लोग भाजपा समर्थक हो सकते हैं या राजद समर्थक, पर बिहार में एक बड़ा तबका ऐसा तैयार हो गया है, जो हर हाल में बिहार में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहता है.
बिहार में आखिर 16% वोट किसके हैं? यह गुड गवर्नेंस के वोट हैं. 2014 की हवा तो 2019 में है नहीं. इधर, 2015 के विधानसभा चुनाव परिणाम ने एक और परिस्थिति पैदा कर दी. अगर लोकसभा में भाजपा ज्यादा है तो विधानसभा में जदयू की अधिक सीटें हैं. सवाल उठता है कि लोकसभा में भाजपा अधिक सीटों का दावा करती है तो विधानसभा में सीटों के बंटवारे का आधार क्या होगा. लोकसभा में जदयू को भाजपा कम सीटें देगी तो विधानसभा में जदयू की 71 सीटें हैं. लोजपा की एक सीट है और रालोसपा की दो सीटें हैं. बड़ा सवाल है कि लोकसभा में अधिक सीटें मांगने वाले विधानसभा में क्या चार-चार सीटों पर मान जायेंगे?

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